राजीव खण्डेलवाल:
विगत दिवस ‘‘आम आदमी पार्टी’’ ने आगामी 2014 में होने वाले लोक सभा चुनाव में 20 उम्मीदवारो की प्रथम सूची जारी की है, जिससे देश के राजनैतिक क्षेत्र में एक नई हलचल, क्रिया व प्रतिक्रिया पैदा हुई है। यद्यपि एक वर्ष पूर्व गठित ‘आप’ पार्टी द्वारा लगभग 300 से अधिक लोकसभा क्षेत्रो में उम्मीदवार उतारने का निर्णय एक साहसिक कदम है। तथापि ‘‘आप’’ द्वारा उम्मीदवारो की घोषणा करना कोई नई बात नही है। इसके पूर्व भी अन्य राजनैतिक दल समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) ने भी कई उम्मीदवार एक वर्ष से अधिक पहिले ही घोषित कर दिये थे। लेकिन वे मीडिया की ब्रेकिग न्यूज नही बन पाये। इसके अनेक कारण हो सकते है।
Photo: The Hindu |
दिल्ली विधानसभा के चुनाव मे जो नई अनोखी प्रकिया अपना कर विधानसभा उम्मीदवारों की घोषणा ’’आप’’ द्वारा की गई थी उसके लिये उसकी काफी प्रशंसा की गई थी। लेकिन वह तरीका अपनाये बिना ही बीस उम्मीदवारो की घोषणा से आप को राजनेतिक क्षेत्र मे कटा़क्ष झेलना पडा है। लेकिन ’’आप’’ शायद उम्मीद्वारो की घोषणा करते समय जनता को यह बताना भूल गये की ये उम्मीद्वार उनकी पार्टी के सम्मानीय राज्यसभा सदस्य समान है। ‘राज्यसभा सदस्य’ कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे संसदीय लोकतंत्र मे यह परिपाटी चली आ रही है कि सामान्यतः वे संभ्रान्त नागरिक जिनकी संसद में देश के उज्जवल भविष्य के लिए आवश्यकता है लेकिन उनके व्यक्तिव को देखते हुए व वर्तमान राजनैतिक तंत्र की अवस्था को देखते हुए उनका लोकसभा में चुनकर जाना न तो शायद संभव है न ही व्यवहारिक है। ऐसे व्यक्तिव को राजनीति में ‘‘राज्यसभा’’ के माध्यम से भेजा जाता है। जहॉ सीधे जनता की चुनावी भागीदारी नही होती है। ऐसे ही बीस उम्मीदवार की घोषणा ‘आप’ ने की है। इसलिए उन्हे उस चुनावी प्रक्रिया से पार्टी ने नही गुजारा जिस प्रक्रिया से सामान्य रूप से अन्य उम्मीद्वारो को गुजरना होगा। इसलिए उन बीस उम्मीदवारो की घोषणा अन्य उम्मीदवारो की उम्मीद पर वार सिद्ध हो रही है। जो पार्टी के अन्य उम्मीदवारो के लिए एक विरोध का कारण बना। लेकिन जहां कुछ सैकडों और हजारो व्यक्तियो के द्वारा उम्मीद्वारो के चुने जाने की प्रकिया के प्रति घोषित उम्मीदवार को लायक उचित व जिम्मेवार नही माना गया। वहां पर सामान्यतः पन्द्रह से बीस लाख ( कुछ केन्द्र प्रशासित एवं छोटे राज्यो को छोडकर) मतदाता जो एक सांसद के मतदाता होते है के बीच उनको चुनावी मैदान में उतारने का मतलब साफ एक ही है कि ‘आप’ को इन बीस उम्मीद्वारो के व्यक्त्वि के साथ साथ ’’आप’’ पार्टी की लोकप्रियता के साथ विरोधी उम्मीद्वारो की गिरती खराब स्थिति के कारण इतना दृढ़ विश्वास है कि इन समस्त समीकरणो का अंतिम परिणाम इन बीस उम्मीद्वारो की विजय श्री के रूप मे आयेगा। यह विश्वास-अति आत्मविश्वास का सही आकलन भविष्य में हो पायेगा।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)
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