‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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भारतीय राजनीति के तीन ’’कूल ड्यूडस’’!

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व्यंग्यकार: कृष्णा बारस्कर
‘‘कूल ड्यूड’’ का वास्तविक मतलब चाहे कुछ हो पर उम्र से अभीप्राय लिया जाये तो ’’कूल ड्यूड’’ युवाओं की वह बढ़ती हुई उम्र होती है जिसमें वे जिन्दगी के एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव मतलब ’’बचपन से तरूनाई’’ में कदम रखते है। इस समय तक उन्हे न तो देश के इतिहास का ज्ञान होता है, न भूगोल का और न ही उनको देश की वर्तमान परीस्थियों की समझ ही होती है, इस समय वे या तो स्कूल की पढ़ाई से जूझ रहे होते है या कॉलेज को समझ रहे होते है। यह ऐसा समय होता है जब तरूण के मन में सैकड़ो-हजारों की संख्या में देश, समाज और स्वयं से सम्बंधित सवाल उत्पन्न होते रहते है और वे उन सवालों का जवाब पता करने के लिए दिनरात लालयीत रहते है। ऐसे लोगो के पास सवालों के जवाब नहीं होते। इनके पास केवल और केवल सवाल होते है। इस समय उनकी ऐसी स्थिति होती है कि जो सामने आया उसी पर सवाल दाग देंगे, उत्तर न मिलने पर अपनी कम समझ के हिसाब से कुछ भी अनुमान लगा लेंगे, कभी-कभी इनका व्यवहार असभ्यता की चरम सीमा तक भी पहुंच जाता है। इनके पसंदीदा सौक पढ़ने के अलावा लोगो को तंग करना, पापा से बेतुकी जिद करना, लड़कियों के पीछे घूमना, स्कूल बंक करके पिकनिक मनाना आदि आदि होते है। कहते है इन्सान की उम्र ऐसी होती है कि जन्म के बाद धीरे-धीरे बढ़ती है एक समय में अपनी चरम पर पहुचकर फिर पुन्ह घटना शुरू हो जाती है। मतलब की जो तरूनाई, बचपन, लड़कपन हम जी चुके है वो बुढ़ापे में फिर वापस आता है।
आज देश की राजनीति की दशा और दिशा दोनो ही बदल गये है, देश की राजनीति आज परीपक्वता की ओर अग्रसर होने की जगह वापस उसी उम्र में आ गई है, जिसे कुछ लोग प्यार से और कुछ लोग खिजकर उम्र का ’’कूल ड्यूड’’ पड़ाव कहते है। इसका श्रेय निश्चित ही हमारे देश के दो नवोदित नेताओं को जाता है अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी तीसरा शख्स भी है पर उसका जिक्र आपको व्यंग्य के आखरी में मिलेगा। आज जब पूरा देश इन राजनैतिक ’’कूल ड्यूड्स’’ की नादानियों पर हस रहा है तो फिर हम क्यूं पीछे रहे भई।

राहूल गांधीः 
हालाकि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहूल गांधी देश की सबसे पूरानी एवं वर्तमान सत्ताधारी पार्टी के सबसे ताकतवर नेता है, तो क्या हुआ? आज उनकी पहचान एक कद्दावर नेता की बजाय अपरिपक्व एवं नासमझ व्यक्तित्व यानी की ‘‘कूल ड्यूड’’ की अधिक हो गई है। वे क्या कहते है, क्या करते है, क्यों करते है, कैसे करते है, जैसे उनके सभी क्रियाकलापों को लोग गम्भीरता से लेने के बजाय अपने रोजमर्रा के हास-परीहास में शामिल करते है। 
अब इसमें न तो ‘‘राहुल बाबा’’ की गलती है और न ही लोगो की! गलती तो उन स्क्रीप्ट लाइटरों की है जो राहुल बाबा को ऐसे-वैसे नादानी भरे डायलॉग और हरकते लिख देते है और राहुल बाबा इसे पूरी सिद्दत और ईमानदारी से अपने किरदार में ढाल लेते है। कभी-कभी तो उनके लिए एक्शन सीन भी लिख दिये जाते है जैसे कि संसद और प्रधानमंत्री का अपमान करते हुए संसदीय बिल को फाड़ना, ‘‘गरीब के घर अचानक जाकर खाना खा लेना’’ टाईप का! जिस नेता को कभी ‘‘युवराज’’ की पदवी दी जाती थी आज सोचों उन्हे क्या-क्या कहा जाता है- ‘‘राहुल बाबा’’ ‘‘अमूल बेबी‘‘, ‘‘कूल ड्यूड’’। यह इमेज बनाने में राहूल बाबा की गलती कम उनकी पार्टी की ज्यादा नजर आती है। देखों न कांग्रेस द्वारा ‘‘मोदी चाय’’ के जवाब में दूधमुहे बच्चों को पिलाये जाने वाला ‘‘बेबी मिल्क’’ बांटा जा रहा है।

अरविंद केजरीवालः 
तरूणई में युवा के पास सबकुछ होता है जोश, खरोश, ऊर्जा, शक्ति, लगन ईमानदारी। फिर भी कुछ चीजे तो छूट ही जाती है जैसे समझदारी, कॉमन सिन्स, वर्तमान परिस्थितियों की समझ, इतिहास ज्ञान आदि आदि। आज ‘‘केजू बाबा’’ इसी प्रकार की हरकते करते नजर आते है। अरविंद केजरीवाल को ‘‘केजू बाबा’’ नाम ‘‘राहुल बाबा’’ से प्रेरित होकर दिया गया है, क्यूंकि दोंनो की हरकते और विचारधारा एक दूसरे से मिलती-जुलती है। ‘‘केजू बाबा’’ का इस समय ‘‘राजनैतिक कूल ड्यूड’’ समय चल रहा है, मन में हजारों शंकाये है, दिमाग में सैकड़ो सवाल कौंध रहे है, कहा से उत्तर मिले कहा सवाल करू, किस क्या कहूं कुछ समझ नहीं आ रहा। इसलिए जो सामने दिख जा रहा उसीपर सवाल दाग दिये, उसीके पीछे पड़ गये। 
कई बार ‘‘केजू बाबा’’ टाईप के लोग रैलवे स्टेशन के सामने मिल जाते है, रैलवे स्टेशन के मैन गेट के सामने खड़े होकर पूछते है भईया यहां से ट्रेन मिल जायेगी ना? अगर इन्हे बताओं की हां भाई मिल जायेगी। तो तपाक से इनके पास दूसरा सवाल होता है कि ’’तो क्या वो ट्रेन दिल्ली जायेगी?’’ आपने हॉ बोला तो फिर सवाल ’’क्या उस ट्रेन में शीट मिल जायेगी’’। अब हम खिसिया जाते है पर फिर भी हॉ बोल देते है तो फिर एक सवाल ‘‘भैया ये टेªन दिल्ली टाईम पर पहुच जायेगी ना, लेट तो नहीं हो जायेगी?’’ इतने सवालों में कोई भी समझ जाता है कि ये ‘‘अरविंद केजरीवाल’’ का कोई चेला है यहां से खिसक ही लो।
कई बार मॉ-बाप बच्चे के इतने सारे सवालों और आत्मविश्वास भरे तर्को से प्रभावित होकर यह समझ बैठते है कि बच्चा अब समझदार और योग्य हो गया है ऐसे में अपने घर की जिम्मेदारी उसे सौंप देते है। दिल्ली की जनता ने भी यही किया अरविंद के हाथों में प्रदेश की बागडोर सौंप दी। पर ‘‘कूल ड्यूड’’ जिसके सवालों की लिस्ट ही अभी खतम नहीं हुई वह जवाब कहां से लाये? उसे तो अभी भी बचपन की ही आदत होती है जरा-जरा सी बात पर रूठ जाना, खेल में शामिल नहीं करने पर खेल बिगाड़ना, रोड पर लेट जाना, खाना नहीं खाना, अपने आपको पापा से भी ज्यादा बड़ा और समझदार साबित करने की कोशीश करना इत्यादि।

अन्ना हजारेः 
अन्ना हजारे जी देश की वह महान शख्सीयत है जिनकी मैं इज्जत करता हूं, और उनके हौसले और जज्बे को सलाम करता हूं। उनके पीछे पूरा देश खड़ा है, चूंकि उन्होने इस देश को बहुत कुछ दिया है। उनके परीहास करने की मुझमें हिम्मत नहीं है, परन्तु कभी-कभी ऐसा लगता है कि उनकी उम्र घटते-घटते अब ‘‘कूल ड्यूड’’ अवस्था में आ गई है। ऐसा मेंरे नानाजी के साथ होता था अब तो वे इस दुनिया में नहीं रहे परन्तु उनके अंतिम वर्षो में उनमें मैंने ‘‘बचपना’’ देखा है। जिस नाना ने हमकों चॉकलेट, बिस्कुट, मिठाईयां फल-फ्रूट खिलाये हो वे अब ‘‘कूल ड्यूड’’ उम्र प्रभाव में वही चीजे हमसे मांगने लगते है। मामाजी ने उन्हे शाम को चाहे ‘‘गुलाब जामून’’ खिला दिये हो पर जैसे ही हम सुबह मेहमान के रूप में पहुंचे तो वे चुपके से हमारे कान में कहते बेटा तुमने ’’सेब’’ ले ही आये है। मेरा मन न बहुत दिनों से मीठा खाने का कर रहा है यहां तो कोई नहीं देता तुम मेरे लिये थोड़े से रसगुल्ले क्यों नहीं लाये?
कभी-कभी लगता है कि ‘‘अन्ना’’ की समझ भी कुछ-कुछ मेरे नानाजी की तरह हो गयी है। आज ‘‘अन्ना’’ की यह हालत है कि चाहे जो राजनीतिज्ञ जाकर एक ‘‘चॉकलेट’’ मंे अन्ना से अपने पक्ष में बयान करवा सकता है। अन्ना कभी कांग्रेस को देश की महाभ्रष्टाचारी पार्टी कहते है तो कभी सोनिया, राहुल की तारीफ ही कर बैठते है। कभी नरेन्द्र मोदी को समर्थन देते है तो कभी उनके खिलाफ फतवा जारी कर देते है। अब ममता बेनर्जी की तारीफ कर रहे है, कभी उनके खिलाफ बोल देंगे। मैं नहीं कह रहा पर कुछ लोग कहते है कि ढलती उम्र में जब पुनः ‘‘कूल ड्यूड’’ पड़ाव आता है न उसमें व्यक्ति कुछ-कुछ सठिया भी जाता है।

आज बस इतना ही- जय रामजी की।

 
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