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वक्फ संपत्तियाँ और उनके विवाद: "लैंड जिहाद" की वास्तविकता और प्रशासनिक परिप्रेक्ष्य

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भारतीय संसद द्वारा वक्फ संशोधन अधिनियम पर विचार हेतु उसे जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेजा गया था। उक्त समिति के सदस्यों के हवाले से अधिनियम के मुद्दों पर कभी-कभी असहमति या किसी विवाद की खबरें बाहर आती रहती हैं। आइए, हम भी इस वक्फ बोर्ड एवं उसके संचालन के लिए बने वक्फ बिल पर विचार करें:

भारत में वक्फ बोर्ड के गठन और उसके बाद की घटनाओं पर विचार करते हुए कई गंभीर सवाल उठते हैं, जैसे कि क्या इसके पीछे भूमि कब्जे, "लैंड जिहाद", और अनुचित लाभ उठाने की कोई साजिश है। वक्फ बोर्ड के पास लगभग 9 लाख 40 हजार एकड़ भूमि होने का दावा किया जाता है, जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी अचल संपत्ति संस्थाओं में से एक बनाता है। हालांकि, इसके साथ ही वक्फ बोर्ड पर यह आरोप भी लगते हैं कि वह अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर विभिन्न भूखंडों पर कब्जा कर रहा है और उन्हें "वक्फ की संपत्ति" घोषित कर रहा है। यह प्रक्रिया कई लोगों द्वारा "लैंड जिहाद" के रूप में देखी जा रही है, जहां जमीन हड़पने के तरीके अपनाए जा रहे हैं।

इन आरोपों के बीच, यह सवाल भी उठता है कि क्या राजनीतिक तत्व, खासकर कांग्रेस-शासित राज्यों में, इस अतिक्रमण को बढ़ावा दे रहे हैं। कई मामलों में वक्फ बोर्ड द्वारा गाँव-गाँव को अपनी संपत्ति घोषित किया जा रहा है, और वहां रहने वालों पर धर्मांतरण या गाँव छोड़ने का दबाव डाला जा रहा है। इस बीच, यह चिंता भी जाहिर की जा रही है कि क्या सरकारी और निजी स्तर पर इन जमीनों के सौदों में संलिप्तता हो रही है, जिससे वक्फ बोर्ड के कब्जे के पीछे किसी प्रकार के घोटाले की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इन घटनाओं के बीच, वक्फ बोर्ड के खिलाफ गंभीर जांच और निगरानी की आवश्यकता को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।

वक्फ बोर्ड का इतिहास और संरचना:

वक्फ शब्द अरबी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है "दान की गई संपत्ति"। यह संपत्ति धार्मिक, शैक्षिक या समाज कल्याण के कार्यों के लिए दान की जाती है। भारतीय संविधान और वक्फ अधिनियम 1995 के तहत वक्फ बोर्ड का गठन हुआ, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय द्वारा दान की गई सम्पत्तियों की देखभाल करना और उनका सही तरीके से उपयोग सुनिश्चित करना था। वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों का प्रबंधन करते हुए धार्मिक संस्थाओं, मदरसों और मस्जिदों के लिए संसाधन प्रदान करता है।

वक्फ बोर्ड पर सरकारी, निजी और ऐतिहासिक भूमि कब्जे के आरोप:

हाल के वर्षों में वक्फ बोर्ड पर कई आरोप लग रहे हैं कि वह सार्वजनिक और निजी भूमि पर अनधिकृत कब्जा कर रहा है। खासतौर पर कांग्रेस शासित राज्यों में वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की घटनाएँ अधिक देखने को मिली हैं। आरोप यह है कि वक्फ बोर्ड "वक्फ संपत्ति" का बोर्ड लगाकर भूमि पर कब्जा कर लेता है, जिससे स्थानीय लोगों को नुकसान पहुँचता है। इस प्रक्रिया को "लैंड जिहाद" के रूप में संदर्भित किया जा रहा है, क्योंकि इसे भूमि कब्जे की एक योजनाबद्ध कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

वक्फ बोर्ड ने हाल के वर्षों में कई प्राचीन स्थलों और जमीनों पर स्वामित्व का दावा किया है, जिससे विभिन्न विवाद उत्पन्न हुए हैं। इनमें प्रमुख स्थानों में ताजमहल शामिल है, जिस पर वक्फ बोर्ड ने दावा किया, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसे खारिज करते हुए इसे राष्ट्रीय संपत्ति माना। इसी तरह, दिल्ली की जामा मस्जिद और लाल किला के भीतर की मस्जिद और आसपास के हिस्सों पर भी वक्फ बोर्ड ने अधिकार जताया, हालांकि इन पर ASI का नियंत्रण है। तमिलनाडु के तिरुचेंदुराई जैसे कई गाँवों में वक्फ बोर्ड ने 389 एकड़ भूमि का दावा किया है, जिसे 1954 के सर्वेक्षण के आधार पर वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया है, जिससे स्थानीय लोग बिना अनुमति के इसे नहीं बेच सकते।

केरल के मुनम्बम और चेराई गाँव में करीब 600 ईसाई परिवारों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति के दावों के कारण अपने घरों और जमीन पर अधिकार खोने का खतरा है। चर्च संगठनों ने इसे संसद की संयुक्त समिति में उठाया है, और उनका मानना है कि वक्फ बोर्ड का दावा अवैध है। इसके अलावा, कर्नाटक राज्य के 53 संरक्षित पुरातात्विक स्थलों पर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा किया है, जिनमें विजयपुरा जिले के गोल गुम्बज और इब्राहिम रौजा जैसे महत्वपूर्ण स्मारक भी शामिल हैं।

इन स्मारकों पर वक्फ बोर्ड ने 2005 में विजयपुरा के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर और वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष मोहसिन द्वारा उन्हें वक्फ संपत्ति के रूप में अधिसूचित किया था। इसके बाद वक्फ बोर्ड ने विजयपुरा के 43 स्मारकों पर कब्जा कर लिया और कई संरचनाओं में आधुनिक सुविधाएं जैसे सीमेंट, प्लास्टर, पंखे, एसी, और फ्लोरोसेंट लाइट्स जोड़ीं, जिससे उनकी ऐतिहासिकता और प्राचीनता प्रभावित हुई। ASI ने इन पर अपने अधिकार की रक्षा करने के लिए कई बार प्रयास किए हैं, लेकिन यह मामला अभी तक अनसुलझा है। इस प्रकार, इन दावों को लेकर स्थानीय समुदायों, धार्मिक संस्थानों और सरकार के बीच विवाद जारी हैं, और कानूनी प्रक्रियाएँ भी चल रही हैं, जिनका समाधान अदालतों और सरकारी निकायों द्वारा किया जा रहा है।

वक्फ संपत्तियों का अनुचित इस्तेमाल:

वक्फ संपत्तियाँ विशेष रूप से धार्मिक उद्देश्यों के लिए निर्धारित होती हैं, लेकिन इसके प्रबंधन में कई बार भ्रष्टाचार और अनियमितताएँ देखने को मिलती हैं। उदाहरण के लिए, वक्फ बोर्ड द्वारा कब्जाई गई जमीनों पर व्यापारिक गतिविधियाँ या अवैध निर्माण कार्य करने के आरोप लगते हैं। यह असंतोष और विरोध की भावना पैदा कर रहा है, क्योंकि कई बार यह महसूस होता है कि इन संपत्तियों का सही तरीके से उपयोग नहीं किया जा रहा। ऐसे मामलों में पारदर्शिता की कमी और प्रशासनिक लापरवाही भी देखी जाती है।

राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक लापरवाही:

कई आलोचकों का मानना है कि वक्फ बोर्ड द्वारा भूमि कब्जे की घटनाओं में राजनीतिक दलों का भी हाथ है। खासतौर पर कांग्रेस शासित राज्यों में यह आरोप ज्यादा उठते हैं कि वक्फ बोर्ड को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है। कई स्थानीय समुदायों ने आरोप लगाया है कि उनकी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर उनपर धर्मांतरण के लिए दबाव डाला जा रहा है, या फिर अपनी जमीन छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इस प्रकार की घटनाएँ समाज में असंतोष का कारण बन रही हैं और इसे राजनीतिक साजिश के रूप में देखा जा रहा है।

न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता:

वक्फ बोर्ड के द्वारा भूमि पर कब्जे और उनके दुरुपयोग के बढ़ते मामलों ने यह सवाल उठाया है कि क्या यह संस्था संविधान और न्याय व्यवस्था के तहत सही तरीके से काम कर रही है। अगर वक्फ बोर्ड बिना उचित निगरानी के अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहा है, तो यह निश्चित रूप से एक गंभीर चिंता का विषय है। इस समस्या का समाधान केवल पारदर्शिता और प्रशासनिक सुधारों से ही संभव है। एक स्वतंत्र न्यायिक आयोग की स्थापना की आवश्यकता है, जो वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की न्यायिक समीक्षा कर सके और यह सुनिश्चित कर सके कि कब्जे वैध थे या नहीं।

वक्फ संपत्ति के घोटाले और सवाल:

वक्फ बोर्ड के कार्यों पर भ्रष्टाचार और घोटाले के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। कई रिपोर्टों में यह सामने आया है कि वक्फ संपत्तियों का अवैध रूप से व्यापार हो रहा है, और इसमें कई सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं की संलिप्तता हो सकती है। खासतौर पर, सरकारी संपत्तियों को बिना उचित प्रक्रिया के वक्फ संपत्तियों के रूप में घोषित किया जा रहा है, जिससे भूमि अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या वक्फ बोर्ड को "लैंड जिहाद" के रूप में राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण मिल रहा है।

उठते सवाल:

वक्फ बोर्ड द्वारा भूमि कब्जे और इसके दुरुपयोग के बढ़ते मामलों ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या इसे बिना नियंत्रण के कार्य करने की अनुमति दी जा रही है। भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार देने का प्रावधान है, लेकिन वक्फ बोर्ड के कार्यों में समानता की भावना की अनदेखी हो रही है। अगर यह स्थिति इसी तरह बनी रही, तो समाज में असंतोष और तनाव बढ़ सकता है, जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। इसके समाधान के लिए, वक्फ बोर्ड के कार्यों में पारदर्शिता और प्रशासनिक सुधार की आवश्यकता है, ताकि इस संस्था को संविधान के अनुरूप चलाया जा सके और इसके दुरुपयोग को रोका जा सके।

सम्भावित समाधान:

  1. स्वतंत्र जांच आयोग: वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों की जांच के लिए एक स्वतंत्र आयोग की स्थापना की जाए।
  2. कानूनी समाधान: वक्फ अधिनियम का विलोपन या ऐसे संशोधन जिनसे संपत्ति मालिकों के अधिकारों की रक्षा हो सके।
  3. सामाजिक जागरूकता: भूमि अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए, ताकि लोग अपनी संपत्तियों की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठा सकें।

वर्तमान स्थिति में वक्फ बोर्ड की शक्तियों और अधिकारों पर संतुलन लाना जरूरी है, ताकि यह संस्था संविधान के अनुरूप कार्य कर सके और सभी समुदायों के लिए भूमि अधिकारों की रक्षा कर सके।

 

Krishna Baraskar (Advocate)
Betul, Email: krishnabaraskar@gmail.com
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इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM): पारदर्शिता, सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण

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हाल ही में एलन मस्क ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) के उपयोग पर अपने विचार व्यक्त किए, जिसमें उन्होंने EVMs को खत्म करने की बात कही। उनका मानना है कि इन मशीनों में हैकिंग का जोखिम, चाहे इंसान द्वारा हो या AI द्वारा, छोटा ही सही लेकिन फिर भी मौजूद है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस जोखिम को कम करने के लिए EVMs का उपयोग बंद कर देना चाहिए। 

हालांकि एलन ने ये बाते अमेरिका के विभिन्न राज्यों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मसीनो पर कही लेकिन इस चर्चा ने EVMs की सुरक्षा और पारदर्शिता पर नई बहस छेड़ दी है, जिसमें दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी दृष्टिकोण से तर्क प्रस्तुत किए हैं। एलन के बयान का सबसे ज्यादा असर हमारे देश भारत मे ही हुआ है। ऐसे मे यह लेख उक्त बहस मे अवश्य ही तथ्यों को स्पष्ट करने मे मदद करेगा। 

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का उपयोग दुनिया भर में चुनाव प्रक्रिया को सरल, सुरक्षित और तेज़ बनाने के लिए किया जाता है। विभिन्न देशों में EVM की संरचना और डिज़ाइन में भिन्नताएं हैं, जिनमें भारतीय और अमेरिकी EVM प्रमुख उदाहरण हैं। जहां भारतीय EVM पूरी तरह से ऑफलाइन और VVPAT प्रणाली के साथ काम करती हैं, वहीं कई अमेरिकी EVM आंशिक रूप से इंटरनेट से जुड़ी होती हैं। इन अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोणों के बीच, एलन मस्क का बयान कि "EVM हैक हो सकती हैं" इस विषय को और भी चर्चा के केंद्र में ले आया है। इस लेख में, हम EVM की संरचना, सुरक्षा, पर्यावरणीय प्रभाव, और बेलेट पेपर आधारित चुनाव प्रणाली की वापसी के संभावित परिणामों का विश्लेषण करेंगे।

भारतीय और अमेरिकी EVM की संरचना और सुरक्षा

भारतीय EVM:

  1. ऑफलाइन डिज़ाइन: भारतीय EVM पूरी तरह से ऑफलाइन होती है, जिसका अर्थ है कि ये इंटरनेट से कनेक्ट नहीं होती। इससे रिमोट हैकिंग की संभावनाएं न के बराबर हो जाती हैं।
  2. डिवाइस संरचना: भारतीय EVM दो मुख्य यूनिट्स—वोटिंग यूनिट (VU) और कंट्रोल यूनिट (CU)—से मिलकर बनी होती है। मतदाता VU में बटन दबाते हैं और वोट CU में दर्ज होता है।
  3. VVPAT (Voter Verified Paper Audit Trail): VVPAT प्रत्येक वोट के लिए कागजी प्रमाण प्रदान करता है। यह मतदाता को आश्वस्त करता है कि उनका वोट सही ढंग से दर्ज हुआ है और किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में ऑडिट का विकल्प उपलब्ध होता है।

अमेरिकी EVM:

  1. ऑनलाइन कनेक्टिविटी: कई अमेरिकी EVM इंटरनेट से आंशिक रूप से जुड़ी होती हैं, जिससे साइबर हमलों का जोखिम बढ़ता है। हालांकि, चुनाव से पहले और दौरान सख्त सुरक्षा उपाय किए जाते हैं।
  2. मल्टीपल सॉफ़्टवेयर लेयर्स: अमेरिकी EVM में विभिन्न सॉफ़्टवेयर लेयर्स होते हैं, जो उन्हें अधिक जटिल बनाते हैं और अतिरिक्त वेरिफिकेशन की आवश्यकता होती है।
  3. पेपर बैलेट विकल्प: अमेरिकी चुनावों में पेपर बैलेट का भी उपयोग होता है, जिससे चुनाव परिणाम की पुष्टि और ऑडिट में सहूलियत मिलती है।

एलन मस्क का बयान और उसका विश्लेषण

सबसे पहले तो एलन मस्क का यह बयान कि "EVM हैक हो सकती हैं" भारतीय नहीं बल्कि अमेरिकी EVM मशीन के बारे मे था। यह बयान तकनीकी रूप से सही हो सकता है, क्योंकि किसी भी डिजिटल डिवाइस को हैक करना संभव है। लेकिन भारतीय EVM के संदर्भ में इसे वास्तविकता में लागू करना काफी कठिन है:

  • ऑफलाइन नेचर: भारतीय EVM के ऑफलाइन डिज़ाइन के कारण इन्हें रिमोटली हैक करना असंभव है। इसके लिए फिजिकल एक्सेस की आवश्यकता होगी, जो चुनाव के दौरान सख्त निगरानी के अधीन होती है।
  • कई सुरक्षा परतें: भारतीय चुनाव आयोग द्वारा EVM की हैंडलिंग, ट्रांसपोर्ट, और स्टोरेज के दौरान कई स्तरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। इससे बाहरी व्यक्ति द्वारा हैकिंग की संभावना काफी कम हो जाती है।


EVM हैकिंग के खतरे और VVPAT का महत्व

अगर, किसी कारणवश, EVM से छेड़छाड़ की भी जाती है, तो VVPAT प्रणाली महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है:

  1. कागजी पर्ची का प्रमाण: VVPAT से हर वोटर को यह प्रमाण मिलता है कि उनका वोट सही जगह दर्ज हुआ है। अगर किसी मतदाता को गड़बड़ी लगती है, तो वह तुरंत आपत्ति दर्ज कर सकता है।
  2. ऑडिट और री-काउंटिंग: चुनाव के दौरान या उसके बाद, VVPAT पर्चियों का ऑडिट किया जा सकता है। अगर VVPAT पर्चियों और EVM में दर्ज वोटों की संख्या में अंतर पाया जाता है, तो पुनः मतगणना की जाती है।


EVM से चुनाव के पर्यावरणीय प्रभाव

EVM से चुनाव कराने के कुछ फायदे हैं, जिनका सीधा संबंध पर्यावरण से है:

  1. पेपर की बचत: EVM के उपयोग से मतपत्रों (बैलेट पेपर) की आवश्यकता समाप्त हो जाती है, जिससे पेड़ों की कटाई कम होती है और पर्यावरण की रक्षा में मदद मिलती है।
  2. कम ऊर्जा खपत: EVM को संचालित करने के लिए सीमित ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जबकि बैलेट पेपर के उत्पादन में जल और ऊर्जा की अधिक खपत होती है।


बैलेट पेपर आधारित चुनाव और पर्यावरणीय प्रभाव

अगर भारत में बैलेट पेपर पर वापसी होती है, तो इसके कई नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं:

  • पेपर की भारी खपत: भारत की विशाल जनसंख्या के कारण, करोड़ों बैलेट पेपर की छपाई के लिए भारी मात्रा में कागज की आवश्यकता होगी, जिससे लाखों पेड़ों की कटाई हो सकती है।
  • ऊर्जा और जल की खपत: बैलेट पेपर उत्पादन में अधिक ऊर्जा और जल की खपत होती है, जिससे पर्यावरण पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
  • कचरे का प्रबंधन: चुनाव के बाद बैलेट पेपर का निस्तारण एक बड़ी चुनौती हो सकती है, क्योंकि इसका प्रबंधन समय और संसाधनों की मांग करता है।


समय और श्रम शक्ति की तुलना: EVM बनाम बैलेट पेपर

  1. गिनती का समय: EVM के उपयोग से वोटों की गिनती घंटों में की जा सकती है, जबकि बैलेट पेपर की मैन्युअल गिनती में कई दिन लग सकते हैं। इससे चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और त्वरितता आती है।
  2. श्रम शक्ति की आवश्यकता: बैलेट पेपर से चुनाव कराने पर बड़ी संख्या में कर्मचारियों की आवश्यकता होती है, जबकि EVM का उपयोग श्रम शक्ति की मांग को कम करता है।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) ने भारत में चुनाव प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, तेज़ और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाया है। हालांकि, EVM से जुड़े तकनीकी और सुरक्षा संबंधी सवालों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। VVPAT जैसी तकनीकें इन सवालों का प्रभावी समाधान देती हैं, जिससे EVM प्रणाली की विश्वसनीयता बढ़ती है। वहीं, बैलेट पेपर पर वापसी पर्यावरणीय दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण होगी, क्योंकि इससे कागज की भारी खपत, पेड़ों की कटाई, और ऊर्जा की बढ़ती खपत जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। अतः, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, EVM का उपयोग भारत के लिए एक व्यवहारिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से टिकाऊ विकल्प साबित होता है।


Krishna Baraskar (Advocate) (DHN, BCA, LLB, M.Sc.-CS)

Mob: 9425007690, Email:- krishnabaraskar@gmail.com 

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