‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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'योग' के माध्यम से क्या 'राजनैतिकयोग' नैतिक, उचित एवं सम्भव है ?

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देश के सबसे सफलतम आध्यात्मिक योग गुरू श्रद्धेय बाबा रामदेवजी का यह वक्तव्य कि अगले लोकसभा चुनाव में वे भी भाग लेंगे और वे अपने अनुयायियों को लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्देश देंगे यह वक्तव्य पढ कर शायद ही किसी को कोई आश्चर्य हुआ होगा। विगत एक-दो वर्षो से जबसे ''स्वाभिमान ट्रस्ट'' की स्थापना एवं उसकी सक्रीयता ''पतांजली योग समिति'' की तुलना में बढ ी है तथा पिछले कुछ समय से विभिन्न विषयो पर बाबा रामदेवजी द्वारा खुलकर जो विचार विभिन्न इलेक्ट्रानिक माध्यमों व मंच के माध्यम से दिये जा रहे है जैसा कि हाल में ही माओवादियो से वार्ता में मध्यस्तता की इच्छा संबंधी बयान आया है, तबसे यह आभास होने लगा था कि बाबा रामदेवजी भी कुछ अन्य आध्यात्मिक गुरूओं के समान राजनीति से सीधे या परोक्ष रूप से जुड ने का लोभ सवारने से दूर नही रह पायेंगे।
बात जब राजनीति से जुड़ने की है तो यह कोई नई बात नहीं है और न ही राजनीति में अच्छे लोगो को आने से निरूत्साहित किया जाना चाहिए! पूर्व का राजनैतिक इतिहास भी अच्छे लोगो के जमावड ा से भरा पड ा है। ''महात्मा'' व ''राष्ट्रपिता'' होते हुए भी स्व. मोहनदास करमचंद गांधी ''बापू'' ''राजनीति'' के युग प्रतीक थे लेकिन ''राजनीति'' की वह परिस्थिति आज की ''राजनीति'' से बिल्कुल अलग एवं विपरीत थी। ''राजनीति'' का वह जमाना फिरंगियो से लड ने का था जिसमें ऐसे लोगो की आवश्यकता थी, लेकिन क्या आज की राजनीति वैसी ही रह गई है? कुछ भद्रपुरूषो ने तो राजनीति की तुलना वैश्याओं एवं शराब से तक कर डाली है। ऐसी ''राजनीति'' में लुप्त होते हुए भद्रपुरूष का आना एक गंभीर विचारणीय विषय है। क्या हमने यह नही देखा है कि आज की राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है कि वह भद्र पुरूषो पर राजनैतिक स्वार्थ के चलते उंगली उठाने से रोक नही पायेगी। मुझे याद आता है पितृपुरूष स्व. कुशाभाउ ठाकरे जैसे व्यक्तित्व पर भी अनुशासन की जननी कही जाने वाली भाजपा के ही कुछ लोगों ने ''राजनीति'' के कारण उनके भोपाल में पुतले जलाये व पर्चेबाजी की। ऐसे कई उदाहरणो से ''राजनीति'' भरी पड ी है। तब ऐसे विषम राजनैतिक परिस्थितियो में एक भद्र पुरूष का आना क्या एक चिंतनीय विषय नहीं है?
'योग' कोई नई चीज नहीं है भारत को विश्व में 'योग' का प्रणेता माना जाता है। कई सदियों से हमारे देश में योग को अपने जीवन में भारतीयों द्वारा अपनाया जा रहा है। लेकिन इसका विस्तार और इसकी मान्यता हमारी अपनी संकीर्ण धारा के कारण हम भारतीयों ने उसको तब तक नही दी जब तक विश्व में ''योग'' को ''योगा'' के माध्यम से स्वीकार नहीं लिया गया और उसे प्रसिद्धि मिलने से हम भारतीयों ने उसके अस्तित्व और महत्व को स्वीकारा कि हम भारतीयो की एक आदत सी हो गई है कि हम अपनी कोई मूल चीज को चाहे वह कितनी ही उपयोगी व मौलिक क्यों न हो तब तक मान्यता नहीं देते है जब तक कि विदेशी लोग उसको अपना नही लेते है और तत्‌पश्चात्‌ ही हमें अपनी उक्त ''सम्पत्ति'' का महत्व उपयोगिता एवं विश्वसनीयता समझ में आती है। हमारी इस मूल सम्पत्ति 'योग' को पूरे देश में अधिकतम भारतियों के बीच फैलाव का श्रेय यदि किसी एक व्यक्ति को जाता है तो वे बाबा रामदेवजी है। इसलिये न केवल वे हमारे लिए अत्यधिक सम्माननीय एवं श्रद्धेय है, बल्कि इस कारण से वे हमारे राष्ट्र के शक्तिपुंज है व योग के माध्यम से हमें शारीरिक स्वास्थ्य लाभ व आध्यात्म के माध्यम से बुद्धि के विकास के लिये आज वे हमारे आशा के एकमात्र केन्द्र बिंदू है।
'योग' के माध्यम से बाबा ने न केवल हमें शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने का सबसे सस्ता नुस्खा बताया है बल्कि अपने आध्यात्मिक प्रवचन के माध्यम से हमारे बौद्धिक कौशल को भी तेज किया है। इस पूरे ''योग'' के प्रचार प्रसार में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बाबा ने ''योग'' को दूरस्थ प्रत्येक भारतीय तक पहुंचाने के प्रयास में अपने शिष्य बनाने के लिए कोई अरहर्ताए रेखांकित नहीं की है, अर्थात प्रत्येक भारतीय चाहे वह किसी भी वर्ग का हो कैसे ही चरित्र का हो चाहे वह किसी भी गुण का हो, चाहे वह किसी भी समुदाय का हो, प्रत्येक व्यक्ति भारतीय स्वाभिमान ट्रष्ट का सदस्य बनकर या उनके योग शिविरों में निर्धारित शुल्क देकर योग सीखने के लिए शामिल हो सकता है, और यही सबसे बड़ा फंडा 'बाबा' के राजनीति में आने में रूकावट है।
यदि बाबा एक अच्छे राजनैतिज्ञ बनने की दिशा में वोट बैंक बनाने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर रहे है जैसा कि उन्होने कथन किया है तो उसके लिए यह आवश्यक होगा की वे अपने शिष्यों को बनाने के पूर्व भी उनकी योग्यतांए अहर्ताएं, निर्धारित करें, ताकि राजनीति में एकमात्र योग्य, स्वच्छ छवि, चरित्रवान और क्षमतावान व्यक्ति ही जाकर उस तरह की राजनीतिक वातावरण बना सके जैसा कि बाबा की कल्पना है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या आज के परिवेश में यह सम्भव है ? क्या बाबा ने इसके पीछे छिपे हुए खतरे की ओर कोई ध्यान दिया है ? क्योकि आज की राजनिति की इतनी शर्मनाक स्थिति हो गई है जो भी अच्छे व्यक्ति धार्मिक नेता, आध्यात्मिक गुरू ''राजनिति'' में आये वे राजनीति को तो शुद्ध नहीं कर पाये, बल्कि अधिकांशो पर ''राजनीति'' ही हावी हो गई। उत्तरांचल के संत सतपाल महाराज, पूर्व केन्द्रीय मंत्री अयोध्या आंदोलन के स्वामीं रामविलास वेदांतीजी, पूर्व सांसद महंत अवैधनाथ सांसद जैसे अनेक उदाहरण हमारे सामने है। क्या राजनीति के इस पराभव के कारण ही देश के अन्य आध्यात्मिक एवं योग गुरू सर्वश्री श्रीश्री रविशंकरजी महाराज, डॉ प्रणव पण्ड्‌या युग निर्माण योजना गायत्री परिवार, पू. मोरारी बापू,सत्य साईं बाबा, इत्यादि सिद्ध संतो ने ''राजनीति'' में कोई रूचि नहीं दिखाई है? इसका मतलब यह नहीं है कि देश सेवा में वे किसी से पीछे है। इसलिए क्या यह आवश्यक नहीं है कि धर्म और राजनिति अलग अलग रहे। क्या आज एक देश की महत्वपूर्ण पूंजी बाबा रामदेव नहीं है और राजनिति में प्रवेश करने पर क्या हम उन्हे खोने का अवसर तो नहीं दे रहे है? आप यह कह सकते है कि राजनिति में यदि अच्छे लोग नहीं आयेंगे तो ''राजनीति'' का ''शुद्धिकरण'' कैसे होगा ? बात सैद्धांतिक रूप से अच्छी लगती है लेकिन वास्तविक धरातल पर क्या यह सम्भव है? बाबा आमटे से लेकर शरद जोशी जैसे प्रसिद्ध गांधीवादी लोग जिनके विचारों से कोई असहमति नहीं हो सकती है और जो हमारे देश के लिए उर्जा एवं उत्प्रेरक का काम करते है लेकिन जब वे अपने विचारों के फैलाव के लिए किसी संगठन या मंच के माध्यम से अपने कार्यक्रम करते है तो उन कार्यक्रमों के आयोजक कितने सैद्धांतिक होते है? क्या साध्य के लिए साधन का भी शुद्धिकरण का होना आवश्यक नहीं है? जैसा कि महात्मा गांधीजी ने कहा था क्योकि बात बाबा रामदेवजी से सबंधित है।
कहने का तात्पर्य यह है कि एक क्षमतावान साहसी लोहपुरूष जो देश के स्वास्थ्य एवं आध्यात्मिक बूद्धि को विकसित करने की क्षमता रखता है जिससे अंततः देश का सर्वांगीण विकास होगा, ''राजनीति'' में आने के बाद आज के कीचड़ भरे राजनैतिक वातावरण में वह कैसे अक्षुण रह पायेगा यह बहुत ही गंभीर प्रश्न है। इस प्रश्न का उत्तर तो अभी गर्भ में होगा लेकिन असफल होने पर हम एक अतुलनीय आदित्य व्यक्तित्व को अवश्य खो देंगे जो हमारे जीवन के उस महत्वपूर्ण भाग को सुधारने की क्षमता रखता है जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को संचालित करती है अर्थात बाबा राजनीति में सफल हो या न हो 'राज' भले ही मिले या ना मिले लेकिन ''बाबा'' ''नीति'' से अवश्य हट जायेंगे यह बात निश्चित है। अतः देश के स्वास्थ्य के लिये उनका ''आज की राजनीति'' में आना उचित नहीं है। अपने देश के संविधान एवं शास्त्रों में कार्यो का विभाजन किया गया है। एक न्यायाधीश से न्यायिक सुधार की उम्मीद की जाती है उसके सफल होने पर यह जरूरी नहीं है उस व्यक्ति को राजनीति में उक्त आधार पर लाया जाए अर्थात यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र में कोई व्यक्ति ने यदि अपनी उपयोगिता सर्वोच्च रूप से सिद्ध की है तब उसे उसी क्षेत्रो में काम करने दे व आगे और अवसर प्रदान करे ताकि वह उस क्षेत्र को सर्वोच्च स्तर पर ले जाये। कार्यक्षेत्र की सर्वोच्च स्तर पर अदला-बदली उचित नहीं होंगी।
अंत में आज की मूल्य विहीन, बिना चारित्रिक मूल्य (उवतंस) की निम्न से निम्न स्तर की ओर जा रही ''राजनीति'' में उक्त तथ्यों की जानकारी के बावजूद बाबा का राजनीति में कूदने के ''राजनैतिक साहस'' को नमन।

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी






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4 Responses so far.

  1. अच्छे लोग राजनीति से बाहर चले गये या भेज दिये गये, इसलिये देश की राजनीति का यह हश्र हुआ. अच्छा है, बाबा जैसे और लोग भी आयें.

  2. aap to yog shiviro me rajnitgyo ko ltadte rhte the fir ye kya sughi? aap bhi moh tyag nhi ske.

  3. samay apni gati se chalata rahata hai ,wah apna kary bakhubi karata rahata hai , pratyek manushy ka dimag hamesha unchaai ke taraf aasaman me rahata hai jamin par sirf pair hote hai , jo aasaman se gyan dimag me aata hai, usaka murt rup jamin par taiyar hota hai arthat jo gyan aasman me ishwar pradatt ud raha hai wahi jamin par murt me najar aata hai sanasar ka pratyek jiw usi gyan se karyrat rahata hai kitabi gyan , jubani gyan bhi aasaman se hi aaya huaa hai , isliye jo ho raha hai dekhate jaaiye ishwar usase ladane ki kshamata pratyek manushy me ya jiw me khud bikasit karata rahata hai |kya pata baba ramadew aadhunik ram ke pratik ho ?

 
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