‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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मीडिया का खौफ सब पर भारी:

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देश का चौथा स्तम्भ मीडिया कि पावर के बारे में तो दुनिया जानती है... पर मैं नहीं जनता था... मेरे बॉस जो कि प्रतिष्ठित वकील, बिजनेसमेन, और राजनीतिज्ञ है] ये मीडिया वालो को इतना ज्यादा भाव देते मुझे बिलकुल पसंद नहीं आता... मै तो यही सोचता था कि ये मुझ जैसे छोटे आदमी के किस काम के .... पर इस मीडिया का असर जब मैंने खुद अपनी आप पर महसूस किया तो मै भी इसकी पावर का मुरीद हो गया..और समझ गया कि अमीर आदमी, छोटा आदमी, माध्यम हो या सबसे गरीब हो उसे लाईट में आने के लिए उसका वास्ता मीडिया से
तो कभी ना कभी पड़ता ही है अगर मीडिया उसकी लाइफमें ना हो तो उसे कोई पहचान ही नहीं सकता .. एक कथा है बहुत छोटी सी सच्ची घटना सायद आपको उतनी इंट्रेस्टिंग ना लगे लेकिन मेरे लिए तो शिक्षाप्रद है ....
अभी हाल  ही में हुवा ये कि मेरे बड़े जीजाजी जबलपुर में सिफ्ट हो गए... अब ट्रान्सफर हो गया तो निश्चित है कि उनका बोरिया बिस्तर, बच्चे सहित पूरा परिवार सिफ्ट होने जा रहा था.. अब जीजाजी ने तो न्यू जॉब ज्वाइन भी करली और सारा सामान भी सिफ्ट कर लिया पर फिर भी उनके ३ बच्चे जिसमे नीलम बड़ी बेटी, नीलेश बेटा और उस से छोटी वैष्णवी और मेरी दीदी यही रुक गयी... बात ये थी कि उनका एक काम जो सिर्फ २ दिन में पूरा हो जाने वाला था... तो उन्होंने सोचा कि जैसे ही काम पूरा हो जायेगा वो यहाँ से निकल जायेंगे...
    बात ये थी कि मेरी जो बड़ी भांजी है नीलम उसका स्थानांतरण प्रमाण पत्र उसके स्कूल से २ दिन बाद मिलने वाला था.. उसके स्कूल का नाम है विद्यासागर हाई स्कूल.. इस स्कूल का वास्तव में अब हमारे बैतूल शहर में नामोनिशान नहीं है क्योंकि ये एक प्राइमरी स्कूल था लेकिन इनके प्रिंसिपल देशमुख ने धडाधड ९-१० तक एड्मिसन करवा लिए थे और फिर पता नहीं क्या हो गया तो उन्होंने अपना बोरिया बिस्तर उठाया और एक अन्य स्कूल रविन्द्र नाथ टैगोर स्कूल में अपनी क्लासेस चालू कर दी... ये सब तो ठीक है पर जब परीक्षा कि बारी आयी तो मेरी भांजी कि परीक्षा एक और अन्य स्कूल संदीपनी विद्या निकेतन में हुई ... चलो ये भी बर्दास्त कर लिया ... फिर माह मार्च में परीक्षा होने और ३० मार्च को मार्कशीट आ जाने के बाद हमारी सही परेड चालू हुई.. उस शिक्षा के दलाल ने हमे अभी नहीं साम ४ बजे आना .. फिर ४ बजे नहीं कल सुबह ८ बजे आना .. फिर १२ बजे आना .. फिर कल आना.. ऐसे ही ऐसे हमारे सब्र का इन्तेहाँ ले लिया .. उसने तो सायद कसम खाई थी कि वो सिर्फ मुझे तंग करके छोड़ेगा ... तो हमने थोडा लेट आना चालू कर दिया .. अगर वो शाम को बुलाता तो हम दुशरे दिन बुलाता .. दुसरे दिन कहता आप कल टाइम पर नहीं आये अब सामको आना .. ..ऐसे ही ऐसे करके उसने ५ जुलाई ला दिया ... आप यकीन नहीं करेंगे कि अप्रैल, मई, जून के इन तीन महीने में हमने करीब ८० चक्कर उसके ऑफिस के चक्कर काट लिए... यहाँ तक कि उसने टीसी कि फीस १०० रुपये पहले ही जमा करवा लिए ...मेरा तो जवान और गर्म खून खुल उठा लेकिन कर भी क्या सकता था  .. भांजी का मामला था दाग अपनी पे ले नहीं सकता था कि मेरे कारन सब गड़बड़ हुई तो मै भी उसे बर्दास्त करता गया..  हम तो सिर्फ सब्र करना चाहते थे ताकि कभी तो उसे सरम आये और वो हमे टीसी देदे.... क्योंकि कुछ कर तो सकते नहीं थे क्योंकि सरकारी लोगो से तो हम पहले ही वाकिफ थे कि वो उसके खिलाफ करते भी तो क्या करते.. बेचारे १०0-२०० में बिकने वाले लोग क्या किसी पे कार्यवाही करेंगे .. ... तो हमने सब्र करना ही उचित समझा ... .. हम तो बस बोखला ही सकते थे उसके पास कुछ बोलते तो उसकी बातो में तो मनो वाक् सिद्धि थी .. .वो हमारी एक दलील के जवाब में अपनी १०० परेसानिया गिना देता था हमे अपनी परेशानी बताने का मौका ही नहीं मिलता था.. और हमारा गुस फुर्रर्रर्र होकर हम ठंडे पड़ जाते थे ..
           लेकिन इधर ५ जुलाई होने को आया और जबलपुर में एड्मिसन करने का टाइम ख़त्म होने वाला था . तब फिर मेरे दिमाग ठनका और मैंने घर में बैठे बैठे एक प्लान बनाया कि अब जब भी मै उस मास्टर का सामना करू तो उसे बोलने का मौका नहीं दू .. ताकि वो मेरी भावनावो का फायदा न ले सके (जब भी हम उसके पास जाते तो वो हमे बोलने का मौका दिए बिना हमे अपनी बातो मै भ्रमित कर देता था .).... समाश्या ये थी कि मै अपनी राजनीतिक पहुच कि ताकत कि आजमाइश भी नहीं करना चाहता था क्योंकि ये सब तो वो पहले ही जनता था.... और बिना लड़ाई झगडा किये मै उस से अपना काम भी निकलना चाहता था .. अगर कुछ ऐसी वैसी बात होती तो मै उसका कुछ भी नहीं कर सकता था.... मै तो फसा था उसे कुछ करता तो मेरा काम तो अटक ही जाता ...
          फिर मैंने सोचा कि ऐसा कौनसा रास्ता है जिस से उस मास्टर से काम भी निकल लू और मेरी और उसकी ताकत कि आजमाईश भी नहीं करनी पडे.. तब मेरे दिमाग में २ ही चीजे आयी कि या तो मै किसी "भाई" कि मदद लू या फिर "मीडिया" कि मदद क्योंकि सिर्फ ये दो ऐसे माध्यम है जिनसे अगर मदद ली जाये तो सामने वाला बिना किसी सवाल किये आपके सामने घुटने टेक देता है .....  मै पहले ही सीके परिणाम तो देख ही चूका था आखिर एक राजनीतिज्ञ का असिस्टेंट था मै ...
           भाई के पास जावो तो पेशगी लेकर जाना होता है.. इसलिए मैंने मीडिया आप्शन चुना.... अब मैंने सोचा कि मीडिया भाइयो को जमा करके अपनी कहानी सुनाऊंगा तो मीडिया भाइयो को कुछ खिलाना भी पड़ता है ... जैसा कि मैंने देखा ही है.... अब फिर मेरे खुरापाती दिमाग में एक आईडिया आया ... क्यों न खुद ही मीडिया वाला बन जाऊ... मेरे पास मीडिया का कोई खुपिया कैमरा तो था नहीं तो ..मैंने जो मेरे पास कंप्यूटर का सामान था उसीका इस्तेमाल किया...
           एक पेन ड्राइव था  वो लिया और एक बिना कैमरा वाला मोबाइल था मेरे पास वो अपनी पास रखा और जा धमका उस मास्टर के घर पर उसे सँभालने का मौका ही नहीं दिया ... और अपनी प्लानिंग के हिसाब से सुरु हो गया..
            मै: सर मुझे आज किसी भी हालत में टीसी चाहिए.. वरना मै इतनी दिन से आपसे जो भी बात होती थी सब रिकॉर्ड करता था,, वो मै आज दैनिक भास्कर और सभी न्यूज़ पेपर में दे दूंगा .. आपको यदि यकीन ना हो तो ये देखलो मै इतनी दिन से आपसे हुई सारी बाते रिकॉर्ड करता था (उसे usb ड्राइव और बिना कैमरा का मोबाइल दिखाते हुए बोलने लगा).
          मास्टर: तुम मेरा कुछ नहीं कर सकते मेरी पहुच के बारे में तुम कुछ नहीं जानते .मै मेरा आज तक कोई कुछ नहीं बिगड़ पाया और ना ही बिगड़ पायेगा..
           मैं: सर मुझे उस से कोई मतलब नहीं है मै तो इतना जनता हू कि मेरी भांजी कि टीसी आज नहीं मिली तो मै आपकी सारी स्टोरी जो मै रिकॉर्ड कर चूका हू . पेपर में छपवा दूंगा और मीडिया वालो को दे दूंगा.. तुम कहो तो दिखाऊ तुम्हे मोबाइल में तुम्हारी सारी करतूत ? (बिना कैमरा का मोबाइल दिखाते हुए )
           मास्टर: अरे फिर तो तुमने मेरी बीबी कि भी बाते रिकॉर्ड कि होगी वो सरकारी नौकरी में है ... देख तुझे टीसी ही चाहिए ना ... ये ले मै तुझे दे देता हू ...पर मेरी वाइफ कि जो ही रेकॉर्डिंग तुमने कि है वो मुझे दिखावो  (२ मिनिट में वो टीसी लेकर आया और मुझे दे दी)
           मै: सर मेरा काम ख़त्म हो गया ना तो पुराणी बात भी ख़त्म हो गयी ... अब आपकी सीक्रेट ना तो मै आपको दिखाऊंगा ना ही मीडिया को दिखाऊंगा (हा हा हा जो चीज है ही नहीं मै उसे कैसे दिखता ..)
         बस yahi है sahab मीडिया का khauf मेरे तो काम aa गया aap भी try kijiye sayad आपके काम aa जाये kahi ?



jara sochiye sahab hamare desh में कैसे कैसे shikshan sansthan chal rahey है और कैसे log shiksha के name पर loot rahey है और हमे khabar ही नहीं है ...
नोट:- ये कहानी सत्य है और जरुरत पडने पर मै इसकी पुस्ती भी कर सकता हू...
 
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