''भगवा आतंकवाद'' पर पूरे देश में संसद से लेकर टीवी चैनल्स पर जो प्रतिक्रिया हुई वह स्वाभाविक ही होनी थी। शायद इसीलिए कांग्रेस के महासचिव श्री जनार्दन द्विवेदी ने बाकायदा विज्ञप्ति जारी करके भगवा आतंक शब्द से न केवल असहमती जताई बल्कि उसे आगे और स्पष्ट करते हुए कहा कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता आतंकवाद का केवल एक रंग होता है काला। यह बयान निश्चित ही न केवल स्वागत योग्य है बल्कि इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है। लेकिन इसके विपरीत तत्समय ही कांग्रेस के दूसरे महासचिव श्री दिग्विजय सिंह ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी से किये गया यह प्रश्न कि यदि भगवा आतंकवाद नहीं है तो आर.एस.एस. के लोग क्यों पकड़े गये है? कांग्रेस की नीयत पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाता है।
जुमलो का उपयोग कर पूर्व में भी प्रसिद्धि पाते रहे है। उनका श्री नितिन गडक़री से उक्त प्रश्र्न निहायत बेतुका, खोखली धर्मनिर्पेक्षता की आढ़ में सांम्रदायकवादी राजनिति करने में माहिर व्यक्ति का एक फेंका हुआ ''पाश मात्र'' है। सर्वप्रथम तो उन्हे यह प्रश्र्न आर.एस.एस. के प्रमुख माननीय मोहनजी भागवत से करना चाहिए न कि श्री नितिन गडकरी से क्योंकि वे आर.एस.एस. के प्रवक्क्ता नहीं है। दूसरे किसी संगठन के किन्ही सदस्यों के अपराध/आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने मात्र से उस पुरे संगठन को आरोपित नहीं ठहराया जा सकता। अभी तक तो वे तथाकथित व्यक्ति सिर्फ आरोपित है जिनके विरूद्ध न्यायिक कार्यवाही लंबित है। अंतिम रूप से देश के किसी न्यायालय या आयोग ने यह निर्णित नहीं किया है कि वे व्यक्ति आतंकवादी गतिविधियों के अपराधी है या आरएसएस का उन आतंकवादी से कोई संबंध है या उक्त कथाकथित आतंकवादी घटनाओ में आरएसएस का हाथ है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी उन व्यक्तियो से अपने किसी भी तरह के सबंधों को नकारा है। अभिनव भारत जैसी संस्था को भी आरएसएस से जोडक़र आरएसएस पर आरोप लगाये गये है। माननीय दिग्विजय सिंह यह बताये कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में अभी तक क्या मात्र तीन आंतकी घटनाए अजमेर, मालेगांव, गोवा, जिनमें व्यक्तिगत रूप से कारित अपराधिक व्यक्तियों में से कुछ का आरएसएस से सबंध जोड़ा गया। क्या स्वतंत्र भारत में आतंक की आज तक मात्र तीन घटनाएं ही हुई है? स्वतंत्र भारत स्वतंत्रता के बाद से लगातार आतंकी घटनाओं को अपने सीने पर झेलता आ रहा है। शेष घटनाओं में कौन लोग थे वो कौनसे 'रंग' के थे कौनसे संगठन थे यह बतलाने का कष्ट दिग्गी राजा करें। पंजाब केञ् ८० के दशक में आतंकवाद का जनक भिंडरा वाला के सिर पर सरपरस्ती किस पार्टी की थी? यह पूरा देश जानता है। जिसकि परणीति भस्मासुर के समान इंदिरा गाधी की दुखद हत्या के साथ हुई जिससे देश ने (कुछ कमियों के बावजूद) एक मजबूत लोह महिला को खो दिया ये क्षति शायद एक अपूर्णिय है।
माननीय दिग्विजय सिंह भगवा शब्द का उच्चारण कर यह भूल गए कि यह केवल राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि उनकी कांग्रेस पार्टी का ध्वज भी तिरंगा झंडा है जिसमें भगवा रंग शामिल है भगवा रंग झण्डे में सब रंगो से उपर है। अब इस भगवा रंग के लिये वे कौन सा जुमला उपयोग में लायेंगे। यदि यह भगवा अलग अर्थ लिए हुये हो तो वे भी इस बात को क्यों नहीं स्वीकार कर लेते कि व्यक्ति विशेष की व्यक्तिगत कार्यो से पूरे संगठन को उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता जब तक कि व्यक्ति अपने संगठन के निर्देशों के पालनार्थ कार्ययोजना को अंतिम रूप न दे देवे जिसके आधार पर वह आरएसएस पर आक्षेप लगा रहे है। नक्सलवाद इस समय देश के कुछ प्रभावित क्षेत्रो में किस तरह तोड़ फोड़ व जान माल की हानि पहूंचा रहा है जिसे पूरा देश देख रहा है। क्या यह आंतरिक आतंकवाद नहीं है जो देश की नीव को खोखली कर रहा है। उक्त आतंकी घटनाओं को करने वाले नक्सलवाद को भारतीय नागरिक मानकर उनको आम माफी की बात तृणमूल कांग्रेस जो कि कांगे्स की सरकार का ही भाग है कर रही है व उन्हे मुआवजे के रूप में २ लाख रूपये व ३००० पेंशन की पेशकश की केंञ्द्र सरकार की योजना प्रस्तावित है। तब उक्त तीनों घटनाओं में संलग्र आरएसएस से संबधित व्यक्ति (श्री दिग्विजय सिंह की नजर में) क्या भारतीय नागरिक नहीं है? जिनके तथाकथित संगठन के घोषित या अघोषित उद्वेश्य तो नक्सलवाद के समान तो नहीं है। कुछ दिन पूर्व ही उडि़सा की सभा में मंच पर नक्सलवादी व्यक्ति की उपस्थिति की खबर न्यूज चैनलों ने उजागर की है जिसने सभा को संबोधित भी किया था तो क्या कांग्रेस पार्टी को नक्सलवादियो गतिविधियों का केंद्र या हिमायती मान लिया जाए? इसका दिग्विजय सिंह जवाब दे? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी उन व्यक्तियो से अपने किसी भी तरह के सबंधों को नकारा है। अभिनव भारत जैसी संस्था को भी आरएसएस से जोडक़र आरएसएस पर आरोप लगाये गये है। माननीय दिग्विजय सिंह यह बताये कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में अभी तक क्या मात्र तीन आंतकी घटनाए अजमेर, मालेगांव, गोवा, जिनमें व्यक्तिगत रूप से कारित अपराधिक व्यक्तियों में से कुछ का आरएसएस से सबंध जोड़ा गया। क्या स्वतंत्र भारत में आतंक की आज तक मात्र तीन घटनाएं ही हुई है? स्वतंत्र भारत स्वतंत्रता के बाद से लगातार आतंकी घटनाओं को अपने सीने पर झेलता आ रहा है। शेष घटनाओं में कौन लोग थे वो कौनसे 'रंग' के थे कौनसे संगठन थे यह बतलाने का कष्ट दिग्गी राजा करें। पंजाब केञ् ८० के दशक में आतंकवाद का जनक भिंडरा वाला के सिर पर सरपरस्ती किस पार्टी की थी? यह पूरा देश जनता है। जिसकि परणीति भस्मासुर के समान इंदिरा गाधी की दुखद हत्या के साथ हुई जिससे देश ने (कुछ कमियों के बावजूद) एक मजबूत लोह महिला को खो दिया ये क्षति शायद एक अपूर्णिय है।
यदि दिग्विजय सिंह के आरोपो पर विश्र्वास कर लिया जाये कि सभी भगवाधारी आतंकी है या आतंकवादी गतिविधियों से जुडे़ हुए है इसलिए वो उसे भगवा आतंकवाद का नाम दे रहे है तो देश का प्रत्येक हिन्दू आतंकवादी माना जावेगा क्योंकि भगवा रंग न तो किसी संस्था का प्रतीक है और न ही कोई राजनैतिक पार्टी का प्रतीक है। यह आदिकाल से हिन्दुओं की इश्र्वर के प्रति आस्था की भावना का प्रतीक है। इसलिए प्रत्येक हिन्दू जो भगवा के प्रति आस्था रखता है आरएसएस का सदस्य, सहयोगी है या उसके प्रति उसकी फील गुड की भावना है। क्योंकि वह भगवा आतंकवादी है (दिग्विजय सिंह की नजर में) तो उनके इस दावे के लिए उनके मुह में घी शक्कर क्योंकि आरएसएस संस्था जिसकी राष्ट्र भक्ति राष्ट्र भावना, देश सेवा व राष्ट्र के आत्म समान की भावना के प्रति संदेह उनके घोर विरोधी भी नहीं कर सकते है। जो कुछ आपात्तिया है वे उनकी कार्यप्रणाली पर की गई है। उनके उद्वेश्य को लेकर कभी भी कोई शंका नहीं की गई। इसलिए जिस दिन पूरा राष्ट्र श्री दिग्विजय सिंह जी की परिभाषा में भगवा के प्रति पे्रम रखने के कारण आरएसएसमय हो जाएगा व आरएसएस जब तक सामान्य रूप से संगठनों में फैल रही बुराईयों को अपने में आत्मसात करने से रोकने मे सफल रहेगा तब उस दिन अखण्ड भारत की जो कल्पना नागरिकों ने की है वह पूर्ण होगी और तब देश को विभाजित करने वाली शक्तियों का नाश हो जाएगा। यह एक तथ्य है कि किसी भी संगठन, संस्था, राजनैतिक पार्टी सामाजिक या धार्मिक संगठन में काम करने वाले व्यक्ति के द्वारा जब कोई भी असवैधानिक अवैधानिक, कार्य या अपराध किया जाता है तो उसके लिए उस संगठन को जिसका कि वह सदस्य है उसे तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक घोषित या अघोषित रूप में उस संगठन की अपराध में संलग्रता सिद्ध न हो गये या महसूस न की जाए। मैं नहीं समझता की देश का कोई भी नागरिक आरएसएस पर यह आरोप लगायेगा कि वह आतंकवादी गतिविधियों में संलग्र है।
अतः दिग्गि राजा जी को यही सलाह है कि वे अपने चश्में का नबर बदले और हर चीज को सांप्रदायिक नजर से न देखकर राष्ट्रहित में अपना सहयोग प्रदान करें और यदि वास्तव में वे राष्ट्रहित के लिए कार्य करना चाहते है तो वे उन संगठनों पर जिन पर माननीय न्यायालयों ने सांप्रदायिकता के आरोप सिद्ध पाये है के खिलाफ कार्यवाही अपने शासन से करायें तो निश्चित रूप से यह एक अच्छा कदम होगा जो देश में अमन शांति के वातावरण का और विस्तार करेगा।
क्या कहें ... अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग ... अपने हित चिंतन के अतिरिक्त राजनीति मे कुछ बाकी नहीं है ...
आतंकवाद का किसी धर्म विशेष से सम्बन्ध नहीं होता है, या यूँ कहें की आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता है. ऐसे लोगों को आप धर्म के व्यवसायी कह सकते हैं, जो अपने फायदे के लिए धर्म को इस्तेमाल करते हैं.
atankbad atankbad kaise aatanki yah sirf duniya ka ek rajinitik khel hai fut dalo raj karo ki den hai apne desh me kangresh hi isaki mukhiya hai dekha dekhi kuchh chhutbhaiye rajnitik log bhi is byawastha ko ajamane lage hai kyoki is byawastha se janata ko gumrah kr kamaai ke naye naye hatha khande kam aate hai sabhi ko jyada chahiye , aarakshan chahiye iske liye aatankbad ek sahara hai sarakar sabhi nagariko ko ek saman darja de de aur kanun byawastha sabhi ke liye ek saman kr de to yah byawastha apne aap nichale paydan pr chali jayegi
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