‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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खुदा

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    तेरी रहमत का मुझको कोई गिला नहीं है ये खुदा !

तेरे अंदाजे ब्यान के तो कायल हैं हम सभी  !
तेरे इतने करीब होके भी तुझसे दूर क्यु हैं हम !
तेरी इस हसीं अदा से आज भी वाकिफ क्यु नहीं है हम !
ये हम  जानते की सब कुच्छ तेरे रहमो कर्म पे है !
फिर क्यु  आपस में ही  लड़- झगड़ रहे हैं हम !
इसका एहसास तू सबको करा दे ये मेरे मालिक !
तेरे ही बनाये बन्दों में अक्ल  की थोड़ी कमी क्यु है!
एक बार फिर से आ कर ये एहसास जगा जा तू !
शायद वो भूली याद फिर से कोई कमाल कर जाये !
और तेरी रोज़ की परेशानियों का कुच्छ हल निकल आये !                                                                                                                                        
 
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