ख़बरे कहती हैं की? युवापीढ़ी बिगड़ गई है !
कितना आसां है किसी को दोष देना
और इतना कहना की वो बिगड़ गया है
हाथ पकड़ कर चलना तो उसने हमसे ही सिखा है
घर में रह कर ही तो कदम बढाना जाना है
फिर उसका दोष पहले कहाँ आता है ?
वो तो सिर्फ हमारे ही नक़्शे कदम पर जाता है
उसको दोष देने से पहले अपने गिरेबान को तो देखो
कही अपनी की गई गलती की सजा उसको न दे डालो
वो जो हमे सम्मान देना चाहता है
वो सब हमसे ही सिख के जाता है
क्युकी जब अच्छी आदतों की बात आती है ?
वो सब हमारी विरासत हो जाती है
और जो गलत काम वो करता है
तो वो उसके हिस्से में चली जाती है
तो मेरा तो बस इतना ही मानना है
की जब ऊँगली पकड़ के चलना सिखाया है तो
हाथ पकड़ के बढना क्यु नहीं ?
क्युकी जिन्दगी का सफ़र तो ?
तमाम उम्र सहारा खोजता ही रहता है
फिर युवा वर्ग दोषी कैसे हो सकता है
वो तो सिर्फ सही राह की तलाश में है
हाथ थामे रहोगे तो तलाश भी ख़तम होगी !
और उसके सर लगा इलज़ाम भी ?
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