‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
Powered by Blogger.
 

ये गर्व भरा, मस्तक मेरा

3 comments
ये गर्व भरा, मस्तक मेरा
प्रभू चरण धूल तक, झुकने दें,
अहंकार विकार, भरे मन को,
निज नाम की माला जपने दे
ये गर्व भरा ................

मैं मन के मैल को, धो ना सका,
 ये जीवन तेरा, हो ना सका, आ हो ना सका।।
मै प्रेमी हूं, इतना ना झुका,
गिर भी जो पड़ू तो, उठने दे,
ये गर्व भरा ................

मैं ग्यान की बातों में, खोया,
और करमहीन पढ़कर सोया,
जब आंख खुली, तो मन रोया,
जब सोये मुझ को, जगने दे,
ये गर्व भरा ................

जैसा हूं मैं, खोटा या खरा
निर्दोष शरण में, आ तो गया, आ... आ तो गया,
इक बार ये, केहदे खाली जा,
या प्रीत की रीत, झलकने दे
ये गर्व भरा ................

3 Responses so far.

  1. ये भजन हरिओम शरण जी की आवाज में सुनने पर बहुत आनन्द देता है..

  2. बहुत खुबसूरत कविता पड़ कर अच्छा लगा जेसे हर शब्द हमसे ही कुच्छ कह रहे हो !

 
स्वतंत्र विचार © 2013-14 DheTemplate.com & Main Blogger .

स्वतंत्र मीडिया समूह