ये गर्व भरा, मस्तक मेरा
प्रभू चरण धूल तक, झुकने दें,
अहंकार विकार, भरे मन को,
निज नाम की माला जपने दे
ये गर्व भरा ................
मैं मन के मैल को, धो ना सका,
ये जीवन तेरा, हो ना सका, आ हो ना सका।।
मै प्रेमी हूं, इतना ना झुका,
गिर भी जो पड़ू तो, उठने दे,
ये गर्व भरा ................
मैं ग्यान की बातों में, खोया,
और करमहीन पढ़कर सोया,
जब आंख खुली, तो मन रोया,
जब सोये मुझ को, जगने दे,
ये गर्व भरा ................
जैसा हूं मैं, खोटा या खरा
निर्दोष शरण में, आ तो गया, आ... आ तो गया,
इक बार ये, केहदे खाली जा,
या प्रीत की रीत, झलकने दे
ये गर्व भरा ................
ये भजन हरिओम शरण जी की आवाज में सुनने पर बहुत आनन्द देता है..
बहुत खुबसूरत कविता पड़ कर अच्छा लगा जेसे हर शब्द हमसे ही कुच्छ कह रहे हो !
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chenyingying20170407