‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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मां तू कैसी होती है?

1 comments
कोई कहे मां ऐसी होती है। कोई कहे मां वैसी होती है।
मैं कैसे जानू तू कैसी होती है?
तू ही बता दे न मां, तू कैसी होती है?


सुना है रोते बच्चे के आंसू तेरी आंखो निकलते है।
पर उनका तो बता मां जो अनाथ पलते है?
तेरे दामन से लिपटकर सारे दर्द मिट जाते है?
हम इसी आश मंे दर्द का ‘सागर’ लेके तुझे ढूंडते है।
कहां मिलेगी तू, कैसे पहचानु मैं तुझे?
तू ही बता दे न मां, तू कैसी होती है?


बड़ा मुस्किल है इस जंहा में अपने और परायों में फर्क करना।
यहां अपने ‘कांख में दबे सांप’ और पराये ‘बिच्छु’ नजर आते।
किस से प्यार करें, किससे नफरत करे, किस पर भरोसा करें?
सुना है तेरा लाड़ तो अपने और पराये से भी आगे ‘सिर्फ मेरा’ होता है।
हम इसी आश में रिस्तों में आस्था लगाये बैठे है।
कहां मिलेगी तू, कैसे पहचानु मैं तुझे?
तू ही बता दे न मां, तू कैसी होती है?


सुना है तेरी उंगली पकड़कर चलने से भटकते नहीं।
मैं तो खुद अपनी उंगली पकड़कर चलता हू? मै क्या जानू कहा जा रहा हूं?
बड़ा मुस्किल है बिन सहारे के इस जीवन डगर पर चलना।
मुझे कौन बताएं कैसे चलना है मां?
बस इसी उम्मीद में की तू मिले कहीं और मेरा हाथ पकड़ लें।
कहां मिलेगी तू, कैसे पहचानु मैं तुझे?
तू ही बता दे न मां, तू कैसी होती है?


सुना है हर मां में तू ही बसती है, ?
पर यहां तो खुसियों में अपना और गम में पराया लगता है।
वो रूप तेरा जो सुना है वो तो ‘अपने’ बेटे के लिए होता है।
मैंने जिसे भी आजमाया वो नहीं पाया जो तेरे बारे में सुना है
मैं कैसे फर्क करूं कौनसी है तू और वो कौन है?
कहां मिलेगी तू, कैसे पहचानु मैं तुझे?
तू ही बता दे न मां, तू कैसी होती है?


देखता हूं उन्हे जिनकी मां होती है, मुझे बड़ी जलन होती है।
मैं कैसे सहन कर लूं रब का ये भेदभाव?
सबको दी तेरे जैसी मां बस मेरा हक छिन लिया,
मुझे लाया जग में और तेरा जीवन छीन लिया।
बस अब तो ठोकरे खाकर जीवन डगर की, इतना थक गया हूं,
कि कभी तू मिले और कहे बेटा चल मेरे साथ तू भी चल
इस दुनिया के पार जहां मैं हूं और तू भी हो!
जहां विश्वास है, सच्चा प्रेम है, करूणा है।
वो शांति हो जो तेरे आंचल की छाव में मिलती है।
कहां मिलेगी तू, कैसे पहचानु मैं तुझे?

तू ही बता दे न मां, तू कैसी होती है?

One Response so far.

  1. कुच्छ रिश्ते कभी ख़तम नहीं होते दोस्त वो हर पल किसी न किसी रूप मै हमारे साथ रहते हैं और माँ तो कभी भी हमसे जुदा नहीं रह सकती वो हर पल तुम्हारे साथ है बस महसूस करके देखो वो तुमसे दूर रह ही नहीं सकती माँ का इस कदर प्यार देखकर बहुत अच्छा लगा !
    होंसला मत हार गिर कर ये मुसाफिर ,
    अगर दर्द यहाँ मिला है तो दवा भी यही मिलेगी !

 
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