हम किसका गुमान करते हैं ?
गोर से देखे तो यहाँ कुच्छ भी अपना नहीं
रूह भी तो खुदा की बख्शी नेमत है
जिस्म है की मिटटी की अमानत है
क्यु न एक जुट होके रहते हम
एसी क्या चीज़ है जिसपे गर्व करते हम
दोलत से क्या कुच्छ खरीद पाएंगे
क्या इसीके बलबूते पर दूर तलख जायेंगे
इसका तो आज यहाँ कल कही और ठिकाना है
ये मत भूलो, इसे तो हर घर मै जाना है
इसे तो पकड़ के न रख पाएंगे हम
फिर इंसा होके इंसा को ठुड़ते नज़र आयेंगे
तो फिर आज ही से ये वादा खुद से करते हैं
इंसा हैं तो इंसा की तरह ही रहते हैं
कभी गुमान के फेरे मै न ही पड़ते हैं !
well tried