‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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नन्ही सी एक कली निर्जन वन में

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देखी एक नन्ही कली माली ने,
थाम ली जिसने अंगुलि निर्जन वन में,
कहने लगी चल चले भीड़-भरी तन्हायी से
कोमल-कोमल, गुमसुम-गुमसुम, चुप-चुप,
क्या करूँ, क्या ना करूँ सोचती,
वन की नन्हि सी कली थी वो..
इंतजार था उसे, पर किसका?
कैसी तड़प ये तन-मन में?
सायद अधूरे ख्वाब थे उसके
कुछ बनने के चाह थी मन में
पर,, कैसे करूं क्या करू?
माली ने कुछ विचार किया,
क्यू ना ले चलु इसे सुंदरवन में.
उसने कली संग पौधे को लेकर
कर लिया शामिल बगिया आँगन.
हो गई पूरी मन की उलझन
वही बगिया, वही साथी, वही मंजिल
ये ख्वाब पूरा हुआ, या ख्वाबों में थे वो?
आज खिलि वो, फूल बनी वो..
भटक रही थी निर्जन वन में
देखो, सुंदरता का ताज बनी वो..
 
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