‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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समाज जागरण की प्रक्रिया

3 comments

आज हम सांस्कृतिक संक्रमण के ऐतिहासिक दौर से गुजर रहे है, भौतिकवाद अपनी चरम सीमा पर है, दिशाहीनता, दुष्चिंतन, भटकाव, दुष्प्रवृत्तियॉं, आंतकवाद, जातिवाद, अलगाववाद, क्षेत्रवाद, जनसंख्या वृद्धि, धर्मांन्तरण, पश्चिमी कुसभ्यता का भीषण आक्रमण राष्ट्र की सृजनात्मकता को घुन की तरह खोखला करते जा रहे है। उस पर नशा,बेरोजगारी हमारी राष्ट्रीय प्राणचेतना का शोषण कर रही है। ऐसे भीषण संकट के दौर में राष्ट्र की युवा तरूणाई को हिन्दू समाज को आत्मबोध एवं अपने सांस्कृतिक गौरव से परिचित कराना आवश्यक है। विश्व में जितने भी जीवंत इतिहास है, वे तरूणाई की रचना है। संस्कृति की दुर्दशा से मर्माहत तारूण्य ही ’’ निशिचर हीन करहुॅ मही ’’ का संकल्प बन बैठा है। गीता के तारूण्य ने पार्थ के तारूण्य को झकझोरा तो महाभारत की विजयश्री वरेण्यं हो गई। मानवीय करूणा के तारूण्य ने राजकुमार सिद्धार्थ को भगवान बुद्ध बना दिया। गुरू गोविन्दसिंह जी का तारूण्य आतताईयों के लिए चुनौती बन गया। जब तारूण्य तपा तो आत्मजयी भगवान महावीर स्वामी बन गया। दयानंद, विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ की तरूणाई राष्ट्र की सुप्त कुण्डलीनी जागरण का उद्घोष बन बैठी। शहीदांे की बलिदानी तरूणाई से ही भारत माता की परतन्त्रता की जंजीर चटक गई। परम पूज्यनीय डॉ. हेडगेवार जी की अंतर वेदना की तरूणाई ने विराट संघ परिवार की आधार शिला रख दी । आज विश्व विभिषिकाओं का समाधान सिर्फ संघ शाखाओं की तरूणाई को निहार रहा है, राष्ट्र के जाज्ज्वल्य तारूण्य को भारत माता पुकार रही है। वस्तुतः राष्ट्र का भविष्य, स्वयं सेवकों के हाथ में ही है। स्वयं सेवक जिधर चल पडेंगे, समूचा राष्ट्र भी उसी दिशा में चल पडेगा। राष्ट्रवादी विचारकों स्वयं सेवकों और उनकी गतिविधियों का सही नियोजन आज की प्रथम आवश्यकता है। इतिहास साक्षी है।
संघ के स्वयं सेवकों की बौद्धिक मेधाशक्ति साहस, शौर्य और अदम्य ऊर्जा ने संकल्प बल के सहारे सदैव नये कार्य के कीर्तिमान स्थापित किये है। संघ की संघीय शक्ति ने समूची दुनिया के समक्ष त्याग और बलिदान के अनेकानेक उदाहरण प्रस्तुत किये है। शिविरो के माध्यम से, संघ शिक्षा वर्गों के माध्यम से या संघ की शाखाओं में जो भी गतिविधियॉ चलती है, उसमें भारतीय समाज को, राष्ट्रीय चेतना को राष्ट्रभक्ति के रूप में निखारने की प्रक्रिया मात्र है। संघ शाखा राष्ट्रव्यापी, आंदोलन और अभियान का रूप ग्रहण कर सकें,इस दिशा में हम सबकों तन, मन, धन की आहूतियॉ देने हेतु सदैव तत्पर रहने का प्रयास करना चाहिए। संघ शक्ति, राष्ट्रशक्ति बनकर राष्ट्र को समृद्धि, उन्नति एवं प्रगति के मार्ग पर ले जा सकती है। किसी भी राष्ट्र का विकास बहुसंख्यक भीड़ के सहारे नही, बल्कि ऊर्जावान, सेवाभावी मूर्धन्य नागरिकों के सहारे होता है। वरिष्ठ वे हैं जो अपनी समस्या का समाधान आप कर सकें, साथ ही बचे हुई पराक्रम का उपयोग दूसरों को उबारने में कर सकें। उनका कृतित्व और व्यक्तित्व असंख्यों में प्राण संचरण कर सके। संघ शिविर राष्ट्र के कर्णधारों के नैतिक, बौद्धिक सांस्कृतिक जागरण का रचनात्मक प्रयास होते है।

3 Responses so far.

  1. Ajeet Rahane says:

    Sach hai bharatiya samaj so chuka hai use jagane ki aawashykta hai...

  2. समाज जागेगा देश जागेगा..
    सुन्दर अभिव्यक्ति

 
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