किसी भी सम्प्रदाय के लिए एक प्रणेता, एक पूजा पद्धति, एक धर्मग्रंथ एवं एक प्रार्थना स्थल आवश्यक होता है। ईसाइयत के लिए ये ईसा मसी, बाइबिल एवं चर्च है तथा इस्लाम के लिए मोहम्मद साहब, कुरान शरीफ एवं मस्जिद है। ये दोनो मजहब है। हमारे यहाँ भी वैष्णव, कबीर पंथी दादू पंथी, आदि अनेक सम्प्रदाय है। ईश्वर के बारे में हमारी और उनकी मान्यताओं में भारी अन्तर है। एकेश्वरवाद में तो सभी का विश्वास है। किन्तु अन्य धर्मावलम्बियों की ईश्वर की धारणा केवल अल्लाह एवं गॉड तक सीमित है। राम और कृष्ण में उनका विश्वास नहीं है। हिन्दुत्व जीवन पद्धति में ईश्वर सर्वव्यापक है, जीव, जन्तुओं एवं वनस्पतियों सभी में ईश्वर का अंश हैं। कणकण में परमात्मा की दिव्यता की, अनुभूति का उद्घोष हमारे पूर्वजों ने किया है। भक्त प्रहलाद के द्वारा खम्बें में ईश्वर के कहने का प्रसंग हम सब को ज्ञात है। शास्त्रों में अनेक प्रसंग है। अन्य धर्म वाले मानते है कि केवल हमारे पंथ मे आने पर ही मुक्ति मिलती है। लेकिन भारतीय विचार के अनुसार किसी भी मार्ग से जाने पर व्यक्ति को मुक्ति मिल सकती है। लेकिन उसमें निष्ठा, समर्पण का भाव होना आवश्यक है। एकलव्य ने मिट्टी की मूर्ति बनाकर धनुर्विद्या का अद्वितीय ज्ञान प्राप्त किया था। पिछले दिनों पोप ने कहा था कि अन्य सम्प्रदायों के माध्यम से मुक्ति नहीं मिल सकती। अन्य धर्मो की सेवाओं की सीमा केवल अपने पंथ तक ही सीमित है। दूसरे सम्प्रदाय के लिए उनका सेवा भाव नहीं होता है। नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा का सेवाभाव मात्र ईसाइयत तक ही सीमित था। हमने सम्पूर्ण जगत में परमात्मा का स्वरूप देखा है। सर्वे भवन्तु सुखिन......... का उद्घोष सम्पूर्ण विश्व के मल्याण की कामना लिये हुए है। आत्मवत सर्वभूतेषु जैसे अनेक शाश्वत वाक्यों का प्रवक्ता है हमारा धर्म। समूची दुनियाँ को एक नई दिशा नया चिंतन, हमारी संस्कृति ने ही प्रदान किया है।
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अन्य धर्म वालों ने अपने मजहब के अनुयायी एवं विरोधियों के रूप में सम्पूणर्् विश्व को दो भागों में बांटा है लेकिन हमारा भाव तो वसुधैव कुटुम्बकम का भाव है। हमारे यहाँ तो जीव जन्तुओं के प्रति भी करूणा का भाव है। आप सबको विदित है। संत रकनाथ एक बार नदी में स्नान कर रहे थे। एक बिच्छू पानी में बह रहा था, उसे बार-बार बचा रहे थे, और वह काट रहा था। काटने पर भी उसे बचाने का प्रयास करना एक अद्भुत उदाहरण है। आपको विदित ही है। एक बैल को डण्डे से मारने पर स्वामीं रामकृष्ण परमहंस की पीठ पर निशान पड़ने का उदाहरण आश्चर्य जनक है। अन्य मजहब की मान्यताओं को हमने कभी भी गलत नहीं बताया। जहाँ इसाई और मूसलमान गये वहाँ की मान्यताओं को उन्होने समाप्त किया। भारत में विदेशी आक्रांता बनकर जब-जब मुसलमान आये उन्होने प्रमुख तीर्थ स्थानों के मंदिरों को तोड़ा मूर्तियो को तोड़ा हमारे मान बिन्दुओं के प्रतिकों को खण्डित किया। इसी कालखण्ड में आपको ज्ञात है अफगानिस्तान में बामियान की बुद्ध मूर्तियों को तोड़ा गया। बख्तमार खिलजी के द्वारा नालन्दा विश्व विद्यालय के पुस्तकालय में आग लगाई गई, जिसमें समूचे विश्व को मार्गदर्शन प्रदान करने वाला साहित्य था, जो महिनों तक जलता रहा। हिन्दू चिन्तन की आलोचना करने वालों को कभी भी हमने दण्डित नहीं किया। आपको ज्ञात है। पश्चिम में गैलिलियों को मीनार से गिराने का उदाहरण। हमारी नीति तोः-
‘‘निन्दक नियरे राखिये ..................‘‘ वाली रही है।
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‘‘निन्दक नियरे राखिये ..................‘‘ वाली रही है।
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अपने पंथ की संख्या बढ़ाने के लिए ईसाईयों ने क्रूसेड़ तथा मुसलमानों ने जेहाद किये। हमारे लोग विश्व में सेना लेकर नहीं बल्कि प्रेम का संदेश लेकर गये। जर्मनी की एक पत्रिका ने एक निष्कर्ष निकाला है कि भारत ने पिछले 10 हजार वर्षो में कभी मतान्तरण नहीं किया, एक भी हत्या नहीं की एवं किसी भी देश पर हमला नहीं किया। संघमित्रा एवं महेन्द्र का बाहर देशों में जाना सच्चे अर्थो में विश्व मानवता को विश्व बन्धुत्व का पावन संदेश देना था। विधर्मियों का प्रकृति को नष्ट करने एवं उपयोग करने में विश्वास है। लेकिन हम समन्वय करते है। हमने अपनी शाश्वत धारा को नहीं छोड़ा एवं उसमें युगानुकूल परिवर्तन भी करते चले गये। एक दिन निश्चित रूप से पशुबल परास्त होगा। सामाजिक समरसता के लिए सम्प्रदाय की सीमाओं को तोड़कर हमें अपना कर्तव्य निभाना होगा। हमें भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण जगत के कल्याण के लियें अपने कर्तव्य का निर्वहन करना है।
अच्छा विश्लेषण है ....शुभकामनायें
बहुत से अच्छे विचारों और देश की छवि को उभरते हुए दिखाने का एक खुबसूरत प्रयास !
बधाई दोस्त !