महंगाई - महंगाई और सिर्फ महंगाई जहां देखो बस इसी का शोर सुनाई दे रहा है ! मिडिया , अखबार दूरदर्शन सब इसी का गुणगान कर रहे हैं ! क्या सचमुच इतने परेशां हैं हम इस बढती हुई महंगाई से या फिर ये सिर्फ किसी एक मुद्दे को लेकर उसमे बहस करने भर की ही बात तो नहीं हो रही है ! अब देखो न एसी कोंन सी चीज़ हमारी राह मै बाधा डाल रही है जिससे हमे इस बढती हुई महंगाई का आभास हो रहा है ! क्या सब्जियों के बड़ते दाम ? क्या दाल की बढती कीमते ? अगर ये सब हमे महंगाई का पता दे रही है तो ये सब सिर्फ एक मुद्दा है और कुच्छ नहीं ! क्युकी इन सब के बावजूद हमारे घर के बच्चे बड़े - बड़े स्कूलों मै बड़ी - बड़ी रकम दे कर शिक्षा ग्रहण कर ही तो रहें हैं और जब स्कूल मै भी वो पढाई ठीक से नहीं कर पाते तो हम एक और मोटी रकम देकर उन्हें स्कूल से बाहर किसी और अध्यापक के पास [ tution ] दे कर भी पढने भेजते ही हैं ! जब की यही लाड प्यार उन्हें उनकी राह मै आगे बड़ने से रोक रहा है वो अपने पर विश्वास कम और दुसरे की बात पर ज्यादा विश्वास करने लगे हैं ! हम उन्हें वो सारी सुविधा जेसे बड़ी - बड़ी गाड़ी , महंगे - महंगे मोबाइल फ़ोन जेसी सुविधा देने वाली चीजें आसानी से दिलवा देते हैं सिर्फ एक झूटी शान की खातिर जिसके बिना भी जीवन आसानी से यापन किया जा सकता है ! इन सब सुविधाओ की पूर्ति करते हुए भी अगर हम ये कहे की महंगाई बढ रही है ! तो फिर हमारे लिए तो ये सब सिर्फ और सिर्फ कहने भर की ही बात लगती है !
महंगाई का असल परिचय हम जानना चाहते हैं तो उन गरीब तग्बे के लोगो से पूछों .......... जो दिन - रात मेहनत तो करते हैं पर फिर भी दो वक़्त की रोती जुटा पाने के लिए बेबस हैं ! अगर जानना ही है तो उस रिक्शे वाले से पुछो........जो इन्सान को उसकी मजिल तक पहुंचा देने के बाद भी सिर्फ अपनी मेहनत का पैसा पाने के लिए उसके सामने गिड़गिडाता नज़र आता है ! क्या उसी वक़्त हमे महंगाई याद आती है जब हम किसी गरीब का हक छीन रहे होते हैं ! तब तो हम उस गरीब रिक्शे वाले की तुलना मै सच मै गरीब हैं और हमे ये बढती महंगाई सच मै परेशान कर रही है !
महंगाई भी अगर बढती है तो हमारे जीवन मै झांक कर ही बढती है क्युकी महंगाई बड़ाने वाले भी हमारी गतिविधियों पर नज़र गडाए रहते हैं की अगर हर सुविधा हर घर मै आसानी से परवेश कर रही है तो फिर थोडा सा और बड़ा देंगे तो क्या फर्क पड़ जायेगा ! तो फिर वो हमारे कदम से कदम मिलाती रहती है और हम थोड़े वक़्त तो जोर शोर से शोर करते हैं फिर अपनी निजी जिंदगी मै मस्त हो जाते हैं ! अगर इस बड़ती महगाई का असल जिंदगी मै सच मै फर्क पड़ रहा है तो वो है हमारे देश की गरीब जनता जो इसकी मार से इस कदर पिस रही है की तन ढकने के लिए कपडा तो क्या दो वक़्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल सा हो रहा है ! उनके पास तो उस वास्तविक दर्द को झलने और चुप रहने के सिवा अपनी बात को कह पाने का कोई माध्यम भी नहीं है ! जब पेट भरने को अनाज ही नहीं होगा तो जुबान मै अपनी बात कह पाने की ताकत भी कहाँ से आएगी जो वो इस दर्द.......... की उन तक आसानी से पहुंचा पाए जो की इस महंगाई को बडाते रहने के असल मै हकदार हैं ! कहते भी हैं न ......................
इन्सान भी उसी इन्सान से डरता है !
जिसके पास अपनी बात कहने की ताक़त होती है !
इन बेसहारा बेजुबानों के पास तो न शरीर की ताकत है और न ही जुबान की और न ही हमारी तरह कलम की फिर महंगाई भी उनकी क्यु सुनेगी वो तो सिर्फ उनसे डरती है जो पलटकर उन पर वार करने की हिम्मत रखता हैं ! गरीब जनता से उसको क्या लेना देना ! उनका तो हमारे समाज मै कोई आस्तित्व ही नहीं है उनके अच्छे होने या बुरा होने का हिसाब कोई क्यु रखे उनकी जिंदगी कब शुरू होती है और कब खत्म वो तो शायद वो भी ठीक से नहीं जान पाए हैं अब तक ! महंगाई किस बला का नाम है इससे तो उसका दूर दूर तक कोई परिचय ही नहीं हो पाता ! और हम एक दुसरे से कह कर अखबारों और कलम के माध्यम से अपनी भड़ास निकलते रहते हैं और अपनी जिंदगी मै आगे चलते जाते हैं और महंगाई हमारी दोस्त की तरह हमसे कदम से कदम मिला कर चलती रहती है !
महंगाई ही हमारे देश मै होने वाले एक बहुत बड़े तालमेल मै फर्क कर रही है ! जिससे आमिर लोग इतने आमिर हो गये हैं की उनके पास इतना पैसा है की उन्हें इस बात का पता नहीं है और गरीब जनता इतनी गरीब होती जा रही है की उसके पास दो वक़्त की रोटी भी उपलब्ध नहीं हो पा रही ! एक तरफ देश उन ऊँचाइयों को छु रही है जहां पहुचना बहुत गोंरव की बात है और दूसरी तरफ गरीब जनता कब भूख से अपनी जान दे रही है ! इअसका किसी को लेश मात्र भी इलाम नहीं क्या ये हमारे देश के लिए श्रम की बात नहीं है ! काश हम इस तालमेल को किसी तरह ठीक कर पाते और अपने देश की भूखी जनता को उपर उठा कर एक समृद्शील देश का निर्माण कर पाते ! हम मिलकर अपने देश के हर नागरिक के अन्दर एक जोश को भर कर बेकारी , भ्रष्टाचारी व् बेरोजगारी जेसे शब्दों का ही अंत कर पाते , और ये सब करना मुश्किल हो सकता है पर असंभव कभी नहीं !
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