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‘‘भाजपा‘‘ से ‘‘गुमसुम’’ हुई साध्वी ‘‘भारत स्वाभिमान‘‘ की ‘‘गर्जना बनकर उभरे तो?

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भाजपा की पूर्व कद्दावर नेत्री सुश्री उमाश्री भारती ने अपने लगभग 1 वर्ष के छोटे से मुख्यमंत्रित्वकाल में मध्यप्रदेश को विकाश की नई दिशा देकर वे सपने दिखाएं जो मध्य प्रदेश को समृद्ध प्रदेश बना देते। सुश्री भारती की स्वर्णिम प्रदेश की कल्पना को पूरा करना उनके वंसज ‘‘मामाओ‘‘ के बस की बात नहीं लगती। यदि इस समय मध्य प्रदेश का शासन उनके हाथ में होता तो निश्ंिचत ही आज वे मध्य प्रदेश में गुजरात के माननीय नरेन्द्र मोदी बिहार के माननीय नीतिश कुमार की तरह होती और मध्य प्रदेश आज क्रमशः गुजरात और बिहार की कतार में खड़ा होता। परन्तु उन्हे उनकी कर्मठता और ईमानदारी ही खा गई ऐसी तेज तर्रार पूर्व मुख्यमंत्री के लम्बे राजनैतिक अवकाश के बाद वापसी किस तरह हो?

                                        मध्यप्रदेश में पूर्व दबंग मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सामने मृत भाजपा को प्राण देकर सत्ता सुख दिलाने वाली तेज तर्रार नेत्री सुश्री उमा भारती का जीवन बहुत ही उतार चढ़ाव भरा रहा है। ‘‘श्रीराम मंदिर’’ मुद्दे के घोड़े पर सवार होकर भाजपा की अगुआ बनी नेत्री ने राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के एक विचाराधीन मामले में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके के बाद से ही उनके राजनैतिक जीवन का सूर्य अस्त होता चला गया। उन्होने बहुत पेचीदा और गरम राजनैतिक धटनाक्रम के बाद भाजपा से निष्कासन पर अपनी नई पार्टी ‘‘भारतीय जनशक्ति’’ का गठन किया। उसमें उन्हे वो सफलता नहीं मिली जिसकी वे हकदार थी। जनमानस की शक्ति तो सदा ही उनके साथ थी पर वे इस शक्ति का संयोजन ’’भारतीय जनशक्ति पार्टी’’ के रूप में करने में असफल रही। उन जैसी साफ स्वच्छ छवि वाली नेत्री की प्रशासनिक नीतियों को देश का भ्रष्ट ‘‘राजनैतिक सिस्टम’’ कभी स्वीकार नहीं कर पाया। जनमानस में आज भी सुश्री भारती का कद देश के सबसे बड़े जनाधार वाले नेताओं में से एक है। आज भी उनके नाम पर जनमत का ज्वार खड़ा हो सकता है, बसर्ते उन्हे वहीं आजादी और पावर मिले जो भाजपा में होते हुए हुआ करता था। अपने छोटे से मुख्यमंत्रित्वकाल में हमेशा अपनी गतीविधियों से मीडिया की आंखो का तारा रही। अपने कठोर निर्णयांे के कारण भ्रष्ट प्रशासनिक और राजनैतिक प्रशासकों के लिए उन दिनों आंखो की किरकिरी रही नेत्री यूं कई दिनांे से एक-दम देश और दुनिया से कट सी गई है, इससे आश्चर्य होता है। वैसे तो देश में बहुत कम साधु-सन्यासी है जिनको राजनैतिक जीवन भाया हो, चूंकि ’’संत-चरित्र’’ और ’’राजनीति-चरित्र’’ में बहुत बड़ी खाई है, जिसे पाटना काफी मुस्किल है। यदि देश की भ्रष्ट और निकम्मी राजनीति को सही पटरी पर लाने के जूनूनी संकल्प के साथ साध्वी की वापसी धमाकेदार अंदाज में हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। दैनिक समाचार पत्रों में एक बार फिर जोरशोर से उनके भाजपा वापसी की खबरे प्रकाशित हो रही है, उनकी वापसी तो सभी चाहते है पर प्रश्न तो यह उठता है कि क्या फिरसे भाजपा के साथ वापसी उचित है?

                                      आज की भारतीय राजनीति में जहा झूठ, फरेब, भ्रष्टाचार और आपराधिक चारित्रिक लोगो के लिए बहुत कुछ है। वहीं साधु-सन्त, सत्य, ईमानदारी, परहित और अहिंसा सिर्फ पुस्तकों का गहना है। इस कारण साधु और राजनीति का वैचारिक आधार पर मेल होना असम्भव है। ‘‘साधु चरित्र’’ की तुलना यदि राजनीति की ‘‘कूटनीति एवं छलावे’’ वाली रणनीतियों से किया जाये तो कहीं भी संतुलन नहीं बैठेगा। राजनेता साधु बनकर शायद जीवन धन्य कर लें पर साधु राजनेता बनकर ज्यादा दिन टिक नहीं सकता। यही कारण है कि सुश्री भारती को देश की राजनैतिक ढर्रे में फिट होने से पहले ही इसके आकाओं ने उन्हे राजनैतिक कारावास मंे भेज दिया। साध्वी चाहे जितनी भी साफ स्वच्छ और लोकप्रिय नेता रही हो परन्तु पार्टी चलती है ‘‘राजनैतिक सिस्टम’’ के तहत। उन्होने जब नई पार्टी बनाई तो पार्टी को नीव से बनाने के बजाय उन्होने भाजपा का बटवारा किया इस कारण उनके पार्टी के ऊपर से लेकर नीचे तक के कार्यकर्ता उसी पुरानी ‘‘राजनैतिक सिस्टम’’ के तहत रंगे बसे थे। वे साध्वी के ‘‘साधु चरित्र’’ से संतुलन नहीं बैठा सके और इसका परिणाम उमाश्री को अपनी प्रतिष्ठा खोकर चुकानी पड़ी।

                                     वर्तमान में जब सुश्री भारती अपनी ही बनाई पार्टी से त्यागपत्र देकर मुक्त हुई तो उनके भाजपा में पुनः शामिल होने के कयास जोर-शोर से लगाये जाने लगे। फिरसे बीच में वही राजनैतिक सिस्टम आ गया और साध्वी जी की वापसी टल रही है। एनकेन प्रकारेन साध्वी को वापस आने से रोक दिया गया।

                                    अब अगला प्रश्न उठता है कि साध्वी के लिए अगला कदम क्या होना चाहिए? मेरी नजर में वे अगर भाजपा में वापसी करती है तो अपने तेवर बदलकर वर्तमान ‘‘राजनैतिक चरित्र‘‘ को अंगीकार कर उसी पुराने राजनैतिक सिस्टम में काम करे या फिर अपनी विचारधारा का कोई नया मजबूत रास्ता तय करें। यदि वे अपनी विचारधारा और साधुचरित्र को साथ लेकर ही वापसी करना चाहती है तो मेरे मस्तिस्क में समस्त शंकाओं के लिए एक ही उत्तर है ‘‘भारतीय स्वाभिमान’’। अगर हम गौर से सोचे तो योगऋषि स्वामीं रामदेव का ‘‘भारत स्वाभिमान‘‘ जो आगे चलकर कभी न कभी भारतीय राजनीति में सक्रीय भूमिंका निभाने वाला है। सुश्री उमाश्री भारती और भारत स्वाभिमान की विचारधारा निश्चित ही किसी न किसी बिंदु पर मेल खाती है। भ्रष्टाचार, निकम्मापन, गैरजिम्मेदारी, देशद्रोह, अपराध, आतंकवाद, गरीबी, अशिक्षा आदि कई मुद्दो से देश की जनता एकदम उकता चुकी है और उसीका परिणाम योगऋषी स्वांमी रामदेव के नेत्रत्व में ‘‘भारत स्वाभिमान’’ के रूप में सामने आया है, वहीं सुश्री भारती के भी ऐसे ही अभियान के कारण उन्हे आज ये दिन देखने पड़ रहे है। ‘‘भारत स्वाभिमान’’ आज धीरे-धीरे जन-जन की आवाज और विश्वास बनता जा रहा है यह देश का ऐसा संगठन है जिसकी नीतियों में ही आज के ’’राजनैतिक सिस्टम’’ के लिए कोई जगह नजर नहीं आती। ऐसा नहीं है कि ‘‘भारत स्वाभिमान पूर्ण रूप से स्वच्छ है और उसमें ईमानदार लोग ही है, उसमें भी ऊपर से नीचे स्तर तक आते आते कई रंग की परते नजर आ ही जाती है, परन्तु योगश्रऋि बाबा रामदेव के दृण संकल्प के कारण विश्वास किया जा सकता है कि निश्चय ही यह संगठन अपने-आप को स्वच्छ रखते हुए अपने गठन का उद्वेश्य पूरा करेगा। ’’भारत स्वाभिमान’’ राजनीति में उतरता है तो स्वामींजी द्वारा राजनीति में आने से इनकार और श्री राजीव दीक्षितजी के बाद स्वर्गवास के बाद उसके पास राजनीति और स्वदेशनीति में पारंगत ऐसा कोई प्रभावशाली और योग्य व्यक्तित्व नजर नही आता, जो राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ’’भारत स्वाभिमान’’ जैसे संगठन का राजनैतिक नेतृत्व कर सकें। इस स्थिति में यदि ‘‘भारत स्वाभिमान’’ का नेतृत्व सुश्री भारती के हाथों में आ जाये तो निश्चित ही देश और जनमानस को उमाश्री का वो योगदान फिर से मिल जाएगा जो उनके केन्द्रीयमंत्रित्वकाल में देश और लगभग 1 वर्षीय मुख्यमंत्रित्व काल में मध्यप्रदेश की जनता ने पाया है।

One Response so far.

  1. इसी खेल का नाम तो राजनीति है जिसका काम देश के हित मै होना शुरू हुआ नहीं की समझो उसका अंत अब करीब है ! काश इस बात को हमारी जनता समझ सकती और एसे नेता को बार - बार सता मै आने का का मोका देती !
    सुंदर लेख बधाई दोस्त !

 
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