‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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अमन का पैगाम

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हर किसी की जिंदगी मै एक मकसद होता है !
खुद बेवफा हो लेकिन तलाश वफ़ा की रखता है !!
                                     अगर हम दिल से ये चाहते हैं की हम अपने देश मै अमन का पैगाम लाये तो हमें सबसे पहले अपने आप को बदलना होगा सिर्फ किताबो मै पड़ कर लिख कर या मुहं  से कह देने भर से हम अमन हरगिज़ नहीं ला सकते ! अब देखो न हमारा देश तो पहले से ही इतने बड़े विद्वानों , ज्ञानियों से भरा पड़ा है फिर अब तक हम पूरी तरह से अपने देश मै  अमन क्यु  नहीं ला पा रहे हैं  ! शायद हमरा देश के प्रति दिए  गये  योगदान मै कमी तो इसका कारण नहीं ? क्युकी जब हम किसी अच्छे और शंतिपुरण देश की कामना करते हैं , तो उन सब मै हमारी गिनती खुदबखुद हो जाती है और उसे सुंदर बनाने और  बिगड़ने का काम हमारा भी होता है फिर वो गलती कितनी भी छोटी क्यु  न हो ! फिर हम ओरों से अलग केसे हो सकते हैं हम भी तो उसी अंश का हिस्सा हैं  ! अब देखो न किसी की तरफ इशारा करके ये कहना की वो शख्श खराब है , वो गंदा है , उसे तमीज़ नहीं या फिर उसे किसी की फ़िक्र ही नहीं कितना आसान  सा होता है ! क्या हम इतनी आसानी से अपने दोष गिनवा पाएंगे हरगिज नहीं क्युकी एसा करना हमारे लिए बहुत कठिन हो सकता है ! इसीलिए जब किसी अच्छे  या बुरे  देश की बात होती है तो तो उस देश की नीवं  हमारे अपने घरों से ही हो कर निकलती है ! सबसे पहले हम ........ हमारे रिश्तेदार ........हमारा समाज .....और फिर देश की बात आती है ! क्या हम अपने परिवार मै वो संस्कार , प्यार , सम्मान  हर तरह का फ़र्ज़  बखूबी निभा पा रहें हैं क्युकी अच्छे और बुराई की शुरुवात तो हमारे घर से ही होने वाली है अगर हमारा व्यव्हार घरके हर सदस्य के प्रति  प्रेम पूर्ण होगा और उनमे समर्पण की भावना होगी तभी तो हम अपने समाज मै खूबसूरती ला पाएंगे ! और अगर हमारा व्यव्हार उनके प्रति क्रूर होगा तो वो बाहर जाकर उस नफ़रत से समाज मै जा कर  चोरी , लूटपाट  , बलात्कार और उग्रवाद को जन्म देंगे ! क्युकी इन सब बीमारियों की नीव तो घर से रखी गई है न ..............जो वो अपने अन्दर के तूफान को शांत  करने के लिए समाज वालो को परेशान  करके करता है ! जिससे अमन और शांति जेसे शब्द अपने आप ख़तम  होने लगते हैं ! तो हम तो ये भी कहते हैं !...............
                       सच है की तहजीब ही एक लाख की जान होती है !
                             फूल खिलते हैं तो आवाज़ कहाँ होती है !!
                                          आज फिर से अगर हम अपने देश को एक खुबसूरत देश बनाना चाहते हैं , तो हमे अपने परिवेश को बदलना होगा और  हमे अपने परिवार और देश को इतनी खुशियाँ इतना प्यार देना होगा की उनके अन्दर से नफ़रत किस बला का नाम है..................शब्द ही जुबान से ख़त्म हो जाये ! क्युकी मनुष्य जब भी कोई गलत काम करता है तो किसी बात से अवसादग्रस्त हो कर ही करता है हमे कुच्छ अच्छा करने के लिए दूर जाने की कोई आवश्कता भी नहीं है हमारे आस - पास ही इतना बड़ा समाज बसता  है अगर हम मिलकर किसी एक- एक  के दिल मै भी प्यार भर सके तो यु समझो की हमने अमन को वापस  लाने के बीज बो दिए , पर उसके लिए अपने आप मै ........... संयम , दुसरो के प्रति प्यार , दुसरो की गलतियों पर उन्हें माफ़ कर देना और आगे अच्छा करने का मोका देना होगा !
                                             किसी अच्छे को अच्छा कह देने भर से क्या परिवर्तन आएगा ? मेरे ख्याल से तो कुच्छ भी नहीं वो तो पहले से ही  अच्छा है पर किसी एसे को प्यार करना जो किसी अवसाद की वजह से गलत काम मै फंस गया है  और उसे अपने उस बात का अफ़सोस है पर कुच्छ कर नहीं पा रहा उसे कोई राह नहीं मिल रही कोई सहरा नहीं मिल रहा समाज उसे वो प्यार नहीं दे रही जिसकी वजह से वो उपर  उठ  सके तो फिर वो एक अच्छा आदमी केसे बन पायेगा अगर हमें समाज मै 5 लोग अगर किसी का अच्छा करते हुए  देखते हैं तो उनमे से एक तो अच्छा बनने की कोशिश जरुर करेगा ! तो किसी के एहसासों को छु कर, प्यार और सम्मान दे कर हम उसे उस दलदल से बाहर निकाल सकते हैं ! ये काम करने मै थोड़ी तकलीफ जरुर हो सकती है पर अगर सच मै अमन की चाह दिल मै है तो ये काम इतना भी कठिन नहीं , क्युकी जो खुद हमारे जेसा है उसे हमारी बात अपने जेसी ही लगेगी और वो उसका जवाब वाह वाह करके ही देगा और जिसके दिल मै हमारी बात का असर हो जायेगा वो इंसान ही बदल जायेगा और फिर एक विस्फोट की आवाज आएगी  क्युकी एहसास  तो सबके अन्दर एक से ही होते हैं फिर उस आने वाले परिवर्तन का रूप ही कुच्छ अलग होगा जिससे एक  सुंदर समाज बनेगा और फिर  एक एसा देश जिसे हम  अमन ( शांति ) के नाम से पुकारेंगे !
                                   किसी होड़ का हिस्सा नहीं हु ,
                                     ख़तम हो कुच्छ पलों मै !
                                     वो छोटा किस्सा  नहीं हु ,
                                 जो  रोक न पाउ बदहवासों को  !  
 
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