राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ- द्वारा गोहत्या के विरोध मंे चलाये जा रहे अभियान का उद्वेश्य इस प्रश्न पर जन जागरण करना, सम्पूर्ण देश के वयस्क व्यक्तियों के हस्ताक्षरों के रूप में जनमत को अभिव्यक्त करना और दुधारू या बूढ़ी या बाछी गोहत्या पर देशव्यापी प्रतिबंध के लिए सरकार से आग्रह करना है। पशुओं की सुरक्षा की आवश्यकता का पहला कारण तो यह है कि अपना देश मुख्यतः कृषि प्रधान है और यहाँ सामुहिक या विशाल पैमाने पर जोत की प्रथा नहीं है। आचार्य विनोबा भावे का मत है कि छोटे भूखण्डो जैसे 05 एकड़ के वित्तरण से सभी को और विशेषतः बेराजगारों को रोजगार देने से समस्या हल हो सकती है। इन सब पहलुओं को देखते हुए इस देश में यंत्रों द्वारा खेती बहुत सफल होने की संभावना नहीं है। इसलिए खेती के विभिन्न कामों के लिए पशुओं की बड़े पैमाने पर आवश्यकता है। खाद की पूर्ति भी एक पहलू है। किन्तु वह तभी मिल सकती है। जब आजकल बड़े पैमाने पर होने वाला गोधन का भीषण संहार रोका जाये। गाय के प्रति जन साधारण की अनन्य श्रद्धा है। और यही बात मुझे सबसे अधिक जंचती है। जनश्रद्धा के विषयों की आज जिस प्रकार से अवहेलना हो रही है। वह दुख-दायक है। लोगों को राष्ट्रीय चेतना से अनुप्राणित करना तभी संभव होगा, जब प्राचीन परम्परागत श्रद्धाओं का लोगों में पुनर्जागरण किया जायेगा। इस दृष्टि से सोमनाथ मंदिर का पुननिर्माण एक प्रशंसनीय उदाहरण है। क्योंकि उसका लक्ष्य था पराजय और दासता की भावना को समूल नष्ट करना। गौरक्षा से भी वही लक्ष्य साध्य होगा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अन्य दलों के समान कोई दल नहीं है, फिर भी वह इस अभियान का प्रारम्भ कर रहा है। क्योंकि किसी न किसी को आगे आना चाहिये। यह अभियान किसी दल की ओर से प्रारम्भ नहीं किया गया है। इसलिए यह आशा है कि सभी दल इस अभियान में सहयोग देंगे। गौहत्या के विरूद्ध इस अभियान के विषय में संभाव्य आक्षेपों से मैं अवगत हूँ। उदाहरणार्थ- कोई यह कह सकता है कि बूढ़े पशु बोझ है। इसलिए उनकी हत्या होनी ही चाहिये। किन्तु यह सत्य नहीं है। इसके विपरित मैं समझता हूं कि यदि वृद्ध और निरूपयोगी गाय बैलों की सही देखभाल की जाये तो उससे जो लाभ होगा, वह उन पर किये जाने वाले खर्च से कही अधिक होगा। इसी प्रकार विदेशी मुद्रा का भी प्रश्न उठ सकता है। किन्तु इसे अनावश्यक महत्व नहीं दिया जाना चाहिये। विशेषतः ऐसे प्रश्न पर, जिस पर सम्पूर्ण समाज श्रद्धा रखता हो, विदेशी मुद्रा का विचार महत्वपूर्ण नहीं माना जा सकता। यह स्पष्ट दिखाई देते हुए भी कि नशाबंदी से भारी वित्तीय हानि होगी, सत्तारूढ़ दल ने इसे चुनाव का विषय बनाया है और वित्तीय हानि की पूर्ति अन्य मार्गो से करने का प्रयास किया। मेरा निश्चित मत है कि यही बात गौहत्या के संदर्भ में भी अपनाकर विदेशी मुद्रा और चर्च व्यवसाय में होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सकती है।
इस आक्षेप में भी कोई अर्थ नहीं है कि गौहत्या बंद कर देने से गौहत्या पर आजीविका चलाने वाले बेराजगार हो जायेंगे। उन्हे दृढ़ता से कहा जा सकता है कि वे कोई अन्य अच्छा सा व्यवसाय ढूण्ढ लें। हाथ करघे का पुश्तैनी व्यवसाय करने वाले चेन्नई के बुनकरों से केन्द्रीय मंत्री श्री टी.टी. कृष्णमुचारी, यदि यह कह सकते है कि उन्हे सूत नहीं मिलता तो अन्य कोई व्यवसाय ढूँढ लें, तो फिर यही बात कसाइयों से क्यों नहीं कही जा सकती ?
अपने संविधान की धारा 48 के अनुसार दुधारू हो या शुष्क, सभी पशुओं की रक्षा आवश्यक है किन्तु शासन ने अभी तक इस सम्बंध में कुछ नहीं किया है। इसलिए सरकार को उसके कर्तव्य का स्मरण कराने के लिये संघ ने यह अभियान प्रारम्भ करने का निश्चय किया है। 26 अक्टूबर को गोपाष्टमी महोत्सव होेने के कारण उस दिन से यह अभियान शुरू होगा। गोपाष्टमी महोत्सव भगवान श्रीकृष्ण और उनके ग्वाल बालों की स्मृति मंे सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है। 26 अक्टूबर से न केवल संघ के स्वयंसेवक ही, अपितु इस अभियान में सहयोग देने की इच्छा रखने वाले अन्य लोग भी घर-घर जाकर हस्ताक्षर संग्रह करंेगे। यह अभियान एक माह तक चलेगा और अंत में हस्ताक्षरों का यह संग्रह भारत के राष्ट्रपति को समर्पित किया जायेगा। हस्ताक्षर सपर्पण एक प्रतिनिधि मंडल द्वारा किया जायेगा।
शासन यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रस्तावों को स्वीकार नहीं करता है तो संघ सभी संवैधानिक उपायों का अवलम्बन लेकर अगली कार्यवाही करेगा। जहाँ तक सत्याग्रह का प्रश्न है, यदा-कदा होने वाले सत्याग्रह अपने देश के योग्य विकास की दृष्टि से बहुत उपयोगी नहीं है। सत्याग्रह एक अस्त्र है और अन्य सभी अस्त्र विफल हो जाने के बाद ही उसका उपयोग करना चाहिए।
ऐतिहासिक दृष्टि से गाय के प्रति अगाध श्रद्धा का उल्लेख उतना ही प्राचीन है, जितने कि वेद प्राचीन है।
इस आक्षेप में भी कोई अर्थ नहीं है कि गौहत्या बंद कर देने से गौहत्या पर आजीविका चलाने वाले बेराजगार हो जायेंगे। उन्हे दृढ़ता से कहा जा सकता है कि वे कोई अन्य अच्छा सा व्यवसाय ढूण्ढ लें। हाथ करघे का पुश्तैनी व्यवसाय करने वाले चेन्नई के बुनकरों से केन्द्रीय मंत्री श्री टी.टी. कृष्णमुचारी, यदि यह कह सकते है कि उन्हे सूत नहीं मिलता तो अन्य कोई व्यवसाय ढूँढ लें, तो फिर यही बात कसाइयों से क्यों नहीं कही जा सकती ?
अपने संविधान की धारा 48 के अनुसार दुधारू हो या शुष्क, सभी पशुओं की रक्षा आवश्यक है किन्तु शासन ने अभी तक इस सम्बंध में कुछ नहीं किया है। इसलिए सरकार को उसके कर्तव्य का स्मरण कराने के लिये संघ ने यह अभियान प्रारम्भ करने का निश्चय किया है। 26 अक्टूबर को गोपाष्टमी महोत्सव होेने के कारण उस दिन से यह अभियान शुरू होगा। गोपाष्टमी महोत्सव भगवान श्रीकृष्ण और उनके ग्वाल बालों की स्मृति मंे सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है। 26 अक्टूबर से न केवल संघ के स्वयंसेवक ही, अपितु इस अभियान में सहयोग देने की इच्छा रखने वाले अन्य लोग भी घर-घर जाकर हस्ताक्षर संग्रह करंेगे। यह अभियान एक माह तक चलेगा और अंत में हस्ताक्षरों का यह संग्रह भारत के राष्ट्रपति को समर्पित किया जायेगा। हस्ताक्षर सपर्पण एक प्रतिनिधि मंडल द्वारा किया जायेगा।
शासन यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रस्तावों को स्वीकार नहीं करता है तो संघ सभी संवैधानिक उपायों का अवलम्बन लेकर अगली कार्यवाही करेगा। जहाँ तक सत्याग्रह का प्रश्न है, यदा-कदा होने वाले सत्याग्रह अपने देश के योग्य विकास की दृष्टि से बहुत उपयोगी नहीं है। सत्याग्रह एक अस्त्र है और अन्य सभी अस्त्र विफल हो जाने के बाद ही उसका उपयोग करना चाहिए।
ऐतिहासिक दृष्टि से गाय के प्रति अगाध श्रद्धा का उल्लेख उतना ही प्राचीन है, जितने कि वेद प्राचीन है।
दोस्तों
आपनी पोस्ट सोमवार(10-1-2011) के चर्चामंच पर देखिये ..........कल वक्त नहीं मिलेगा इसलिए आज ही बता रही हूँ ...........सोमवार को चर्चामंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराएँगे तो हार्दिक ख़ुशी होगी और हमारा हौसला भी बढेगा.
http://charchamanch.uchcharan.com