१. संस्कार संक्रमित होते है।
जनवरी सन् 1948 को कोच्ची में संघ-स्वयंसेवको के अनुशासन, प्रामाणिकता, समर्पण भाव आदि की सराहना करते हुए सुविख्यात मलयालम लेखक श्री पी.राम मेनन ने श्री गुरुजी से पूछा- इन उत्तम संस्कारों की शिक्षा आप किस प्रकार देते है?
श्री गुरुजी- शिक्षा द्वारा उत्तम संस्कार हृदयंगम नहीं किये जाते। निकट सम्पर्क से और परस्पर विश्वासपूर्ण मित्रता से वे संक्रमित होते है।
श्री मेनन- बिलकुल ठीक, ऐसा ही संभव है।
2. हर बाला माता की प्रतिमा
सन् 1949 की बात है, एक महिला अपनी आठ वर्षीय बालिका को लेकर श्रीगुरुजी के दर्शनार्थ आई और उससे बोली ‘गुरुजी के गले में पुष्पहार डालकर उनको नमस्कार करो। ‘पुष्पहार लेकर ज्यों ही बालिका श्री गुरुजी की ओर बढ़ी, त्यों ही श्री गुरुजी ने जल्दी से खड़ें होकर पुष्पहार उसके हाथों से ले लिया और बालिका के चरणों का स्पर्श किया। यह देखकर आश्चर्यचकित माता बोली- आपने यह क्या किया? मैं तो अपनी बच्ची को आपसे आशीर्वाद दिलाने लाई थी और एक आप है कि उसके चरण स्पर्श कर रहे हैं।
श्री गुरुजी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया- आपके लिए वह बच्ची होगी, परन्तु मेरे लिए तो वह साक्षात ‘‘माँ‘‘ है।
3. जातियाँ गुणधर्म से
‘‘अगस्त 1955 को हिस्सार (हरियाणा) में सांयकालिन चाय पर वार्ता करते हुए श्री गुरुजी ने पं. दीनदयाल जी से कहा- कंस भगवान श्री कृष्ण का मामा ही तो था, परन्तु उसे राक्षस कहा गया है। रावण के दस सिर और बीस हाथ थे और वह राक्षस था। विभीषण उसका सगा भाई था, पर मानुषी शरीर रचना और सात्विक वृत्ति का था। एक राक्षस और दूसरा मनुष्य जाति का हुआ। कारण रावण के गुणधर्म राक्षसी थे, विभीषण के मनुष्य समाज के अनुकूल थे। इसका स्पष्ट निर्देश इसी एक बात से मिलता है कि गुणधर्म की जातियां ही अपने यहाँ मानी जाती थीं।
4. सभी संघ के है।
23 सितम्बर 1953 को जालंधर में 20-25 परिवारों के गणेशोत्सव आयोजन में श्री गुरुजी का जाना हुआ था। उनमें कुछ स्वयंसेवक भी थे। परिचय कराते समय उत्सव के प्रमुख पदाधिकारी ने श्री गुरुजी से कहा - यह श्रीमान, आपके आर.एस.एस. के है।
श्री गुरूजी- आर.एस.एस. मेरा नहीं है, मै उसका हूँ। व्यापक का अंश छोटी चीज होती है। ईश्वर का मैं हूँ, ईश्वर मेरा नहीं। तरंग समुद्र की होती है, तरंग को समुद्र कहना ठीक नहीं होगा।‘
आपका संघ कहने से हम उसके बाहर है, ऐसा मानते है। ऐसा हम न माने हम सभी संघ के हैं, कोई पास है, कोई भले ही थोड़ी दूरी पर हो, परन्तु है साथी संघ के है।
5. शिव का तृतीय नेत्र
18 से 20 फरवरी 1966 को कालिकट (केरल) में सम्पन्न हुए स्वयं सेवको के शिविर में श्री गुरूजी उपस्थित थे। अभी निवास व्यवस्था जिस कमरे में थी, उसके ठीक सामने ही सुप्रसिद्ध शिव मंदिर था। एक कार्यकर्ता ने कहा - शिव भगवान आपके कमरे की ओर देख रहे है। क्या वे अपने तृतीय नेत्र से दृष्टिक्षेप कर रहे है? उनका तृतीय नेत्र तो बड़ा डरावना कहा गया है।
श्री गुरूजी ने कहा- श्री शिवजी के हृदय में जिनके प्रति सद्भावना रहती है, उनके लिए तृतीय नेत्र भयकारक नहीं, अपितू कृपा करने वाला ही होता है। स्वामीं विवेकानंद जी ने कहा था कि रौद्र रूप में भी भगवान का दर्शन कर उसकी पूजा करें। अपना संघ कार्य ऐसा ही है।
6. नया दृष्टिकोण
19 फरवरी 1972 को श्री गुरुजी नौगाँव (असम) में जिला संघ चालक श्रीभूमिं देव गोस्वामीं जी के घर पर ठहरे थें। वहाँ वार्तालाप में हिन्दू-समाज में आ रहे परिवर्तनों की बात चल पड़ी। उसी में मिश्र विवाहों की चर्चा छिड़ी।
मणिपुर के श्री मधुमंगल शर्मा ने श्री गुरुजी से पूछा- आज अनेक हिन्दू अहिन्दुओं से विवाह करते है। उनकी संतानों का भविष्य क्या होगा ?
श्री गुरुजी ने उत्तर दिया- ऐसे सभी अहिन्दुओं को हिन्दू बना लेना चाहिए उनकी संताने भी हिन्दू ही होगी।‘
उस पर श्री शर्माजी ने कहा- हिन्दू समाज अभी तक इतना प्रगतिशील कहाँ हुआ है?
तब उन्होने कहा- हिन्दू समाज के रक्षण और नई समाज रचना के लिए यह करना ही पड़ेगा। हिन्दू समाज धीरे-धीरे इस व्यवस्था को स्वीकार कर लेगा।‘
7. माता की सेवा का प्रचार
मई 1972 में ग्वालियर- प्रवास के समय ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर‘‘ नामक पुस्तक, जिसमें भारत पाक युद्ध के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों की सेवाओं का तथ्यपूर्ण उल्लेख था, श्री गुरुजी को भेंट दी गई। भेंटकर्ता का दावा था कि उल्लेखित तथ्य भविष्य में इतिहास की सामग्री बन सकते है और इस प्रकार के साहित्य से संघकार्य का प्रचार भी हो सकता है।
श्री गुरुजी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया- यदि कोई पुत्र माँ की सेवा करने का समाचार प्रकाशित करे, क्या उसे श्रेयस्कर माना जा सकता है ? स्वयंसेवकों ने भारत माता की सेवा में जो कुछ किया, वह उनका स्वाभाविक कर्तव्य ही था, अतः उसका प्रचार कैसा ?
जनवरी सन् 1948 को कोच्ची में संघ-स्वयंसेवको के अनुशासन, प्रामाणिकता, समर्पण भाव आदि की सराहना करते हुए सुविख्यात मलयालम लेखक श्री पी.राम मेनन ने श्री गुरुजी से पूछा- इन उत्तम संस्कारों की शिक्षा आप किस प्रकार देते है?
श्री गुरुजी- शिक्षा द्वारा उत्तम संस्कार हृदयंगम नहीं किये जाते। निकट सम्पर्क से और परस्पर विश्वासपूर्ण मित्रता से वे संक्रमित होते है।
श्री मेनन- बिलकुल ठीक, ऐसा ही संभव है।
2. हर बाला माता की प्रतिमा
सन् 1949 की बात है, एक महिला अपनी आठ वर्षीय बालिका को लेकर श्रीगुरुजी के दर्शनार्थ आई और उससे बोली ‘गुरुजी के गले में पुष्पहार डालकर उनको नमस्कार करो। ‘पुष्पहार लेकर ज्यों ही बालिका श्री गुरुजी की ओर बढ़ी, त्यों ही श्री गुरुजी ने जल्दी से खड़ें होकर पुष्पहार उसके हाथों से ले लिया और बालिका के चरणों का स्पर्श किया। यह देखकर आश्चर्यचकित माता बोली- आपने यह क्या किया? मैं तो अपनी बच्ची को आपसे आशीर्वाद दिलाने लाई थी और एक आप है कि उसके चरण स्पर्श कर रहे हैं।
श्री गुरुजी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया- आपके लिए वह बच्ची होगी, परन्तु मेरे लिए तो वह साक्षात ‘‘माँ‘‘ है।
3. जातियाँ गुणधर्म से
‘‘अगस्त 1955 को हिस्सार (हरियाणा) में सांयकालिन चाय पर वार्ता करते हुए श्री गुरुजी ने पं. दीनदयाल जी से कहा- कंस भगवान श्री कृष्ण का मामा ही तो था, परन्तु उसे राक्षस कहा गया है। रावण के दस सिर और बीस हाथ थे और वह राक्षस था। विभीषण उसका सगा भाई था, पर मानुषी शरीर रचना और सात्विक वृत्ति का था। एक राक्षस और दूसरा मनुष्य जाति का हुआ। कारण रावण के गुणधर्म राक्षसी थे, विभीषण के मनुष्य समाज के अनुकूल थे। इसका स्पष्ट निर्देश इसी एक बात से मिलता है कि गुणधर्म की जातियां ही अपने यहाँ मानी जाती थीं।
4. सभी संघ के है।
23 सितम्बर 1953 को जालंधर में 20-25 परिवारों के गणेशोत्सव आयोजन में श्री गुरुजी का जाना हुआ था। उनमें कुछ स्वयंसेवक भी थे। परिचय कराते समय उत्सव के प्रमुख पदाधिकारी ने श्री गुरुजी से कहा - यह श्रीमान, आपके आर.एस.एस. के है।
श्री गुरूजी- आर.एस.एस. मेरा नहीं है, मै उसका हूँ। व्यापक का अंश छोटी चीज होती है। ईश्वर का मैं हूँ, ईश्वर मेरा नहीं। तरंग समुद्र की होती है, तरंग को समुद्र कहना ठीक नहीं होगा।‘
आपका संघ कहने से हम उसके बाहर है, ऐसा मानते है। ऐसा हम न माने हम सभी संघ के हैं, कोई पास है, कोई भले ही थोड़ी दूरी पर हो, परन्तु है साथी संघ के है।
5. शिव का तृतीय नेत्र
18 से 20 फरवरी 1966 को कालिकट (केरल) में सम्पन्न हुए स्वयं सेवको के शिविर में श्री गुरूजी उपस्थित थे। अभी निवास व्यवस्था जिस कमरे में थी, उसके ठीक सामने ही सुप्रसिद्ध शिव मंदिर था। एक कार्यकर्ता ने कहा - शिव भगवान आपके कमरे की ओर देख रहे है। क्या वे अपने तृतीय नेत्र से दृष्टिक्षेप कर रहे है? उनका तृतीय नेत्र तो बड़ा डरावना कहा गया है।
श्री गुरूजी ने कहा- श्री शिवजी के हृदय में जिनके प्रति सद्भावना रहती है, उनके लिए तृतीय नेत्र भयकारक नहीं, अपितू कृपा करने वाला ही होता है। स्वामीं विवेकानंद जी ने कहा था कि रौद्र रूप में भी भगवान का दर्शन कर उसकी पूजा करें। अपना संघ कार्य ऐसा ही है।
6. नया दृष्टिकोण
19 फरवरी 1972 को श्री गुरुजी नौगाँव (असम) में जिला संघ चालक श्रीभूमिं देव गोस्वामीं जी के घर पर ठहरे थें। वहाँ वार्तालाप में हिन्दू-समाज में आ रहे परिवर्तनों की बात चल पड़ी। उसी में मिश्र विवाहों की चर्चा छिड़ी।
मणिपुर के श्री मधुमंगल शर्मा ने श्री गुरुजी से पूछा- आज अनेक हिन्दू अहिन्दुओं से विवाह करते है। उनकी संतानों का भविष्य क्या होगा ?
श्री गुरुजी ने उत्तर दिया- ऐसे सभी अहिन्दुओं को हिन्दू बना लेना चाहिए उनकी संताने भी हिन्दू ही होगी।‘
उस पर श्री शर्माजी ने कहा- हिन्दू समाज अभी तक इतना प्रगतिशील कहाँ हुआ है?
तब उन्होने कहा- हिन्दू समाज के रक्षण और नई समाज रचना के लिए यह करना ही पड़ेगा। हिन्दू समाज धीरे-धीरे इस व्यवस्था को स्वीकार कर लेगा।‘
7. माता की सेवा का प्रचार
मई 1972 में ग्वालियर- प्रवास के समय ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर‘‘ नामक पुस्तक, जिसमें भारत पाक युद्ध के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों की सेवाओं का तथ्यपूर्ण उल्लेख था, श्री गुरुजी को भेंट दी गई। भेंटकर्ता का दावा था कि उल्लेखित तथ्य भविष्य में इतिहास की सामग्री बन सकते है और इस प्रकार के साहित्य से संघकार्य का प्रचार भी हो सकता है।
श्री गुरुजी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया- यदि कोई पुत्र माँ की सेवा करने का समाचार प्रकाशित करे, क्या उसे श्रेयस्कर माना जा सकता है ? स्वयंसेवकों ने भारत माता की सेवा में जो कुछ किया, वह उनका स्वाभाविक कर्तव्य ही था, अतः उसका प्रचार कैसा ?
दोस्तों
आपनी पोस्ट सोमवार(10-1-2011) के चर्चामंच पर देखिये ..........कल वक्त नहीं मिलेगा इसलिए आज ही बता रही हूँ ...........सोमवार को चर्चामंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराएँगे तो हार्दिक ख़ुशी होगी और हमारा हौसला भी बढेगा.
http://charchamanch.uchcharan.com
Very useful reading. Very helpful, I look forward to reading more of your posts.
El hecho de que la gente tenga que morir se toma,