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2 जी स्पेक्ट्रम काण्ड में जहां 1 लाख 76 हजार करोड़ से भी अधिक का गबन का आरोप लगाया जा रहा है। जो कामनवेल्थ घोटाले से भी बड़ा मामला है। विपक्ष ने 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के मसले पर सी.बी.आई. जांच न की मांग नहीं करके जे.पी.सी. की मांग संसद में जोर शोर से उठाई गई। विपक्ष की इस मांग को यू.पी.ए. सरकार ने अस्वीकार कर दिया। जेपीसी की मांग पर अड़े विपक्ष की जिद के चलते संसद की कार्यवाही कई दिनों तक ठप्प रही।
इसमें कोई शक नहीं यह अब तक देश का सबसे बड़ा घोटाला है। जहां भ्रष्टाचार करोड़ो अरबो में नहीं बल्कि खरबों में है और इसलिए इनके मुख्य आरोपी ए.राजा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन अभी तक न तो उनके खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज की गई, और न ही मामले को सी.बी.आई या अन्य कोई जांच एजेंसी को जांच के लिए दिया गया है। अभी तक जो कुछ हुआ है वह कंट्रोलर एवं आडिटर जनरल (केग) की रिपोर्ट के आधार पर ही कार्यवाही हुई है। जिससे उक्त घोटाला उजागर हुआ है। जिसकी रिपोर्ट पब्लिक एकांउंट्स कमेटी के अध्यक्ष मुरलीमनोहर जोशी के पास है।
हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि उक्त घोटाला, घपला, गड़बड़ी में मात्र तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए.राजा ही शामिल नहीं है, बल्कि एक पूरी राजनैतिक जमात से लेकर अफसरशाही भी शामिल है। जिसकी आंच प्रधानमंत्री तक भी पहुंच रही है। जिस जेपीसी के गठन की बात की जा रही है उनके समस्त सदस्य राजनैतिक पार्टी के होकर संसद के किसी न किसी सदन के सदस्य है। जिन्हे न्यायाधीश के रूप में उक्त कमेटी के सदस्य की हैसियत से काम करके जांच रिपोर्ट देकर अपराधियों के विरूद्ध कार्यवाही करना होगा। सांसदो का ‘चरित्र’ पिछले कुछ समय से जनता के सामने आया है वह विदित है। कई स्टिंग आपरेशन के चलते कई सांसद गैर कानूनी कार्यवाही, अनैतिक कार्यो में लिप्त पाये गये। कई सांसद तो गंभीर अपराधों के प्रकरणों के चलते भी संसद के लिए चुने गये है। क्या ऐसे सांसदों के बीच में से राजनैतिक पार्टी की समस्या के आधार पर पार्लियामेंट जांच कमेटी का गठन किया जाकर क्या न्याय की उम्मीद की जा सकती है? जेपीसी के गठन के लिए ऐसी कोई नीति नहीं है कि दागदार सांसदों को कमेटी का सदस्य नहीं बनाया जाय। जब राजनेताओं को न्याय देने का अधिकार दिया जाये तो यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वह व्यक्ति ईमानदार है। इतना ही नहीं वह क्षमतावान व एक न्यायाधीश के समान व्यवहार करते हुए कार्य करने में सक्षम होना चाहिए। न्याय का यह सिद्धांत है कि न्याय होना ही नहीं चाहिए बल्कि यह दिखना भी चाहिए कि न्याय हो रहा है। (Justice should not be delivered but it seems that it is delivered.)
इसमें कोई शक नहीं यह अब तक देश का सबसे बड़ा घोटाला है। जहां भ्रष्टाचार करोड़ो अरबो में नहीं बल्कि खरबों में है और इसलिए इनके मुख्य आरोपी ए.राजा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन अभी तक न तो उनके खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज की गई, और न ही मामले को सी.बी.आई या अन्य कोई जांच एजेंसी को जांच के लिए दिया गया है। अभी तक जो कुछ हुआ है वह कंट्रोलर एवं आडिटर जनरल (केग) की रिपोर्ट के आधार पर ही कार्यवाही हुई है। जिससे उक्त घोटाला उजागर हुआ है। जिसकी रिपोर्ट पब्लिक एकांउंट्स कमेटी के अध्यक्ष मुरलीमनोहर जोशी के पास है।
हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि उक्त घोटाला, घपला, गड़बड़ी में मात्र तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए.राजा ही शामिल नहीं है, बल्कि एक पूरी राजनैतिक जमात से लेकर अफसरशाही भी शामिल है। जिसकी आंच प्रधानमंत्री तक भी पहुंच रही है। जिस जेपीसी के गठन की बात की जा रही है उनके समस्त सदस्य राजनैतिक पार्टी के होकर संसद के किसी न किसी सदन के सदस्य है। जिन्हे न्यायाधीश के रूप में उक्त कमेटी के सदस्य की हैसियत से काम करके जांच रिपोर्ट देकर अपराधियों के विरूद्ध कार्यवाही करना होगा। सांसदो का ‘चरित्र’ पिछले कुछ समय से जनता के सामने आया है वह विदित है। कई स्टिंग आपरेशन के चलते कई सांसद गैर कानूनी कार्यवाही, अनैतिक कार्यो में लिप्त पाये गये। कई सांसद तो गंभीर अपराधों के प्रकरणों के चलते भी संसद के लिए चुने गये है। क्या ऐसे सांसदों के बीच में से राजनैतिक पार्टी की समस्या के आधार पर पार्लियामेंट जांच कमेटी का गठन किया जाकर क्या न्याय की उम्मीद की जा सकती है? जेपीसी के गठन के लिए ऐसी कोई नीति नहीं है कि दागदार सांसदों को कमेटी का सदस्य नहीं बनाया जाय। जब राजनेताओं को न्याय देने का अधिकार दिया जाये तो यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वह व्यक्ति ईमानदार है। इतना ही नहीं वह क्षमतावान व एक न्यायाधीश के समान व्यवहार करते हुए कार्य करने में सक्षम होना चाहिए। न्याय का यह सिद्धांत है कि न्याय होना ही नहीं चाहिए बल्कि यह दिखना भी चाहिए कि न्याय हो रहा है। (Justice should not be delivered but it seems that it is delivered.)
इसके पहले कई बड़े घोटालों को लेकर जेपीसी की मांग की गई। इनका क्या हश्र हुआ यह देश की जनता भलीभांति जानती है। यहां प्रश्न सिर्फ यह नहीं है कि जेपीसी का गठन होना चाहिए या नहीं बल्कि सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि देश की भोली भाली जनता की इतनी बड़ी रकम को हड़पने के दोषी लोगो के खिलाफ क्या कार्यवाही हुई। प्रश्न यह भी है कि दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में आजादी के बाद से अब तक करीब एक सौ पच्चीस लाख करोड़ रूपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये लेकिन दोषियों का बाल बांका भी नहीं हुआ। कुछ एक मामलों को छोड़ दिया जाये तो ज्यादातर में लीपापोती के अलावा कुछ विशेष कार्यवाही होती नहीं दिखी। विपक्ष को चाहिए कि वह संसद में हंगामा करने के अलावा सड़कों पर उतरकर उस जनता से न्याय मांगे जो देश की असली मालिक कही जाती है। चूंकि हम एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे है। अतः यहां संविधान के परिपालन के अनुसार राजनेताओं के भाग्य की विधाता कहीं जाने वाली देश की जनता ही यह बेहतर बता सकती है कि उसकी नजर में सही क्या है गलत क्या है। हमें आपातकाल का वह दौर हमेंशा याद रखना चाहिए जब लोकतंत्र की अवहेलना कर तानाशाही चरम पर थी। इसके बाद हुए चुनाव में देश की जनता ने सत्ता पर काबिज पार्टी और तानाशाहों को सिरे से बेदखल करने का क्रांतिकारी निर्णय दिया था। मौजूदा हालात भी लगभग वैसे ही है। सिर्फ 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला ही नहीं बल्कि कुछ ही महिनों में कई अन्य बड़े घोटाले भी उजागर हुए है। राजनेताओं को अब सीधे जनता की अदालत में दस्तक देना चाहिए जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए।
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