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से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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लाचार-सरकार, लाचार-मंत्री और लाचार जनता, क्या यही स्वर्णिम भारत है?

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 बहुत पहले भारत के जिस ‘‘भारत कुमार’’ (मनोज कुमार) ने सत्तर के दशक में भारत की बेजा महंगाई पर गाना ‘‘उपर से महंगाई मार गई’’ बहुत हिट हुआ था। उसके बाद अभी हाल ही में आमिर खान की ‘‘पीपली लाईव’’ मंे महगांई परमहगांई डायनगाना बड़ा प्रसिद्ध हुआ। कहने का मतलब यह है कि महंगाई की समस्या आज की नहीं है बल्कि यह पहले से चली रही है। लेकिन मुद्दे की बात है कि महंगाई का सामना करने के लिये आज जिस तरह से केंद्रीय सरकार कदम उठा रही है, बयानबाजी कर रही है ऐसी असहाय की स्थिति पूर्व में कभी नहीं देखी गई। यह सत्य कि महंगाई, जीवन का एक अंग बन चुकी है। सामान्य महंगाई को सामान्य जनता भी सामान्य रूप से स्वीकार कर अपने जीवन में अंगीकृत कर रही है। पर आज यदि महंगाई पर हल्ला मच रहा है तो इसका मतलब साफ है कि यह महंगाई सामान्य नहीं है। निश्चित रूप से पिछले एक वर्ष के भीतर महंगाई में वृद्धि के कारण खाद्य पदार्थ से लेकर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स इत्यादि रोजमर्रा की अनेक वस्तुए लगभग 80 से 100 फीसदी मंहगी हो गई। केवल निम्न बल्कि मध्यमवर्गीय तबका भी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। सुरसा के मुह के समान बढ़ी यह महंगाई असहनीय हो गई। जिससे देश की जनता हलाहल है।
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एक सफल अर्थशास्त्री जो आर.बी.आई. के गवर्नर से लेकर भारत सरकार के वित्त मंत्री तक रह चुके है जिनका प्रमुख कार्य ही देश की वित्तीय संरचना को सुदृढ़ता प्रदान करना रहा है। ऐसे अनुभवी अर्थशास्त्री केसौभाग्यसे देश के सर्वाेच्च पद पर बैठे होने के बावजूद तेजी से महंगाई बढ़ी है बढ़ रही है! इससे यह सिद्ध होता है कि या तो सरकार की आर्थिक नीतियां कही कही मूल रूप से गलत है या प्रधानमंत्री अपनी क्षमता और विवेक के अनुसार निर्णय लेने में स्वतंत्र नहीं है या फिर प्रधानमंत्री में वह क्षमता ही नहीं है या उनकी राजनैतिक मजबूरिया ऐसी है जिसके कारण वे कोई भी सार्थक सफल कदम महंगाई रोकने के लिए नहीं उठा पा रहे है।
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उधर महंगाई को लेकर कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी का यह बयान कि हम महंगाई नहीं रोक पा रहे है क्योंकि गठबंधन धर्म की मजबूरी होने के कारण हम मजबूर है। अर्थात महंगाई कोई आर्थिक नीति में कमी, फसल या मौसम की खराबी, बाढ़, सूखा के कारण नहीं है बल्कि सरकार में शामिल गठबंधन दलों द्वारा व्यापारियों उद्योगपतियों को आर्थिक लाभ पहुंचाने की गरज से उनके अनुसार नीति निर्धारित कर कार्य करने की मजबूरी है। यह सर्वविदित है कि राहुल गांधी मौजूदा हालातों में नीति निर्धारको की पहली पंक्ति में शुमार है। इतना ही नहीं कृषि मंत्री शरद पवार के बार-बार महगांई पर जो बयान आये है वह सिर्फ उनकी असहाय स्थिति को ही स्पष्ट करते है। बल्कि उससे यही सिद्ध होता है कि मंहगांई तो उनके लिए एक चेतावनी का प्रश्न (अलार्मिंग इस्यू) है और ही उनमें अपने मंत्री पद की जिम्मेदारिया निभाने की योग्यता एवं क्षमता है। निष्कर्ष यह निकलता है कि पूरी सरकार ही असहाय और पंगु सी दिखती है। इसलिए प्रधानमंत्री जी से लेकर मंत्रीजी तक पूरी सरकार केवल राजनैतिक मुद्दे पर लाचार बल्कि आर्थिक मुद्दे पर भी लाचार सरकार है।
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गठबंधन धर्म की क्या-क्या मजबूरिया है यह देखना भी जरूरी है। महंगाई गठबंधन धर्म की मजबूरी है। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला गठबंधन धर्म की ‘‘शक्ति‘‘ है। फिर चाहे ‘‘केग’’ की नियुक्ति का मामला ही क्यो हो। ऐसी अनेक घटनाओं कार्यो का उल्लेख किया जा सकता है जिन्हे गठबंधन धर्म की मजबूरिया बताया जा। कर जनता के साथ छलावा किया जा रहा है। ये सब घटनाएं देश को निरंतर पतन की ओर ले जा रही है तो उसे गठबंधन धर्म के नाम पर क्यों स्वीकार किया जा रहा है। गठबंधन सरकार बनाते समय आपने देश की जनता से यह वायदा किया था कि आप देश को एक स्वच्छ जनापेक्षि परोपकारी जनता के हित में जनता देश की विकास के हित में लेने वाली मजबूत सरकार प्रदान करेंगे। क्या आपका कोई राष्ट्र धर्म नहीं है सिर्फ गठबंधन धर्म का मानना ही मजबूरी है? क्या आपका विवेक आपको इस बात के लिए नहीं धिक्कारता है कि महंगाई के लिये जिम्मेदार गठबंधन धर्म (स्वयं के अनुसार) को स्वीकार करने के बजायराष्ट्रहितमें राष्ट्रधर्म अपना कर महंगाई को आम लोगों की पहुंच तक करने के लिए ठोस सार्थक सफल कदम उठाये क्योंकि आम जनता में यह समझ चुकी है कि वह महंगाई से मुक्त-विमुक्त नहीं हो सकती लेकिन उसकी क्रय शक्ति की सीमा तक वह उसे स्वीकार करने को तैयार मजबूर है। लेकिन आपका उद्वेश्य मात्र किसी भी प्रकार सत्ता में बने रहने का है तो शेष अवधि के लिए आप गठबंधन धर्म के नाम पर अलोकप्रीय निर्णय लेते रहे और तब जनता स्वंय आपके इस गठबंधन की विवशता का जवाब आगामी चुनाव में देगी।
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अब जनता की लाचारी की स्थिति भी देख ली जाय। जे.पी. क्रांति से लेकर इमरजेंसी के विरोध में उठे जन आंदोलन के बाद श्रीराम जन्मभूंमि के लिए हुआ पूरे देश में आंदोलन के पश्चात इस देश की जमूरियत को जाने क्या हो गया है कि देश की जनता को किसी भी क्षेत्र में चाहे कितने ही अत्याचार परेशानी और संकट का सामना झेलना पड़ रहा हो। लेकिन सामान्य जनता उसका प्रतिकार करने के लिए वह प्रतिक्रया नहीं व्यक्त कर रही है जैसी होनी चाहिए। इसलिए देश की जनता पर मंहगाई की मार जैसे कई अत्याचार होरहे है। आईये आज समय इस बात का है कि हम जनता पर हो रहे इस अत्याचार का प्रतिरोध करने केे लिए जनता को जागृत कर उनके मन में वह जज्बात पैदा करने की मुहिम चलाये जिससे वह तुरंत अतिचार को समाप्त कर सके ताकि तब कोई नेता गलत निर्णय कार्य परिणाम के लिए गठबंधन धर्म की मजबूरी का सहारा ले सके। क्योंकि परिस्थितियों को देखते हुए भविष्य गठबंधन सरकार का ही दिखता है।

6 Responses so far.

  1. Anonymous says:

    लाचार सरकार,
    लाचार जनता
    और मालदार मन्त्री!
    यही तो स्वर्णिम भारत है!

  2. भ्रष्टाचार कि कहानी जितनी भी सुना लो कम है दोस्त क्युकी हर तरफ तो वही हो रहा है !
    अच्छी जानकारी और सही अनुमान !
    धन्यवाद दोस्त !

  3. डॉ. रूपचंद्र जी, संजय कुमार जी, मीनाक्षी जी ..
    आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद्,, आपके इस मार्गदर्शन से मेरा आत्मविश्वास और संबल बढेगा..
    हमारा आपका साथ ऐसे ही बना रहे ............

  4. ये सब इन लोगो की ही देन है …………ज़रा सोचिये…………क्या इस हद तक पहले मंहगाई थी कि गरीब की रोटी पर भी लात पडने लगे? आज गरीब की दाल और प्याज जैसी चीजे भी उसकी पहुँच से बाहर हो गयी हैं …………क्यो? इसके पीछे सरकार की ही नीतियाँ हैं …………क्या जरूरत है कि लाखो और करोडो मे वेतन दिया जाये? अब जब इतने वेतन बढाये जायेंगे तो सोचिये दवाब किस पर पडेगा सिर्फ़ चंद लोगो के लिये आम जनता भुगतान करती है और अपनी रोटी के लिये तरसती है …………सिर्फ़ कुछ लोगो को फ़ायदा पहुंचाने के लिये आम जनता पर टैक्स का बोझ लादा जाता है तो मंहगाई कैसे नही बढेगी…………मगर देश आज भी स्वर्णिम युग की ओर अग्रसर है और होता रहेगा जब तक अपने स्वार्थ से ऊपर नही उठा जायेगा।

  5. Anonymous says:

    Le malade place sur un lit,

 
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