‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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‘‘तू अपना मैं पराया

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एक प्रश्न घूमता है कभी-कभी मन में

लोग अपने और पराये की बात करते है

कैसे भेद करते है, हर रंग तो समान है,

फिर यहां अपना कौन, कौन पराया?

यहां तो हर रंग अपना ही नजर आता,

प्रश्न उठता है पराया कौन?

हसता हूं मैं जब याद आती है

रीत निराली अब दुनिया की

जो मीठा हो वो अपना

जो कड़ूआ हो वो पराया?

क्यों भूल जाते है, ये सच्चाई

अमृत कड़वा और मीठा जहर,

अपनी जबानी रीत पुरानी

‘‘तू (कड़वा)’’ अपना और ‘‘मैं (मीठा)’’ पराया।
 
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