‘‘यह अनिवार्य है कि मानव जाति को अपना अद्वितीय ज्ञान प्रदान करने की योग्यता के संपादन के लिये तथा संसार की एकता और कल्याण के हेतु जीवित रहने एवं उपयोग करने के लिये हमें संसार के समक्ष आत्मविश्वासी पुनरूत्थान शील और सामर्थशील राष्ट्र के रूप में खड़ा होना पड़ेगा।’’
’’श्रीगुरूजी’’
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