नाचत - गावत आई बहार
क्यारी - क्यारी फूलों सी महकी
चिड़ियाँ नाचे दे - दे ताल
नाचत - गावत आई बहार !
भवरों की गुंजन भी लागे
जेसे गाए गीत मल्हार
रंग बिरंगी तितली देखो
पंख फैलती बारम्बार
नाचत - गावत आई बहार !
मोर - मोरनी भी एसे नाचे
जेसे हो प्रणय को तैयार
मोर - मोरनी भी एसे नाचे
जेसे हो प्रणय को तैयार
थिरक - थिरक अब हर कोई देता
अपने होने का आगाज़
नाचत गावत आई बहार !
अपने होने का आगाज़
नाचत गावत आई बहार !
हर कोई अपने घर से निकला
करने अपना साज़ - श्रृंगार
सबका मन पंछी बन डोला
मस्त गगन मै फिर एक बार
नाचत - गावत आई बहार !
चिड़िया असमान मै नाचे
तितली गाए गीत मल्हार
मै तो इक टक एसे देखूं
जेसे मैं हूँ कोई चित्रकार
नाचत - गावत आई बहार !
वसंत में सावन की फुहार ? बहरहाल मन तो भीग ही गया बेमौसम की बारिश में ! अच्छी कविता . सराहनीय प्रस्तुति.
bahut sundar
basant aur sawan... sone pe suhaga
मन को भिगोती सुंदर रचना .......
मन को भिगोती सुंदर रचना .......
aap sabka shukriya dosto
बहुत बढ़िया प्रस्तुति.
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Sauerstoff eingewirkt hat,