मेरे इंतजार मै तू जो दो पल ठहर जाती !
तेरे गेसूं तले फिर ये शाम हो जाती !
तेरे दीदार पे मै ये जन्नत बिछा देता !
मेरी ये जिंदगानी खुशगवार हो जाती !
तेरी नशीली आँखों का जो मै जाम पी लेता !
मयखाने का तो रास्ता ही मै भुला देता !
तेरी आह्ट से जो तेरा पता मिल जाता !
तेरे क़दमों पे ही मै सारा जहाँ पा लेता !
तेरे अश्कों को अपनी हथेलियों मैं लेके ,
तेरे हर गम को प्यार का मरहम देता !
तेरी हर ख़ुशी मै हरदम तुझ संग झूमता मैं
अपने गम को शामिल उसमे हरगिज न करता !
जो तू कभी जान जाती मेरे इस प्यार को ,
तो तेरे सीने मैं सर रखकर मैं बस रो देता !
जो तू कभी जान जाती मेरे इस प्यार को ,तो तेरे सीने मैं सर रखकर मैं बस रो देता !
वाह ! क्या खूब कहा है……………कभीकभी शब्दो से ज्यादा आंसू बोलते हैं।
'साकिया मुझको मुहब्बत चाहिए,
शहर मे है, वरना मैखाने बहुत।'
अच्छी रचना।
सुन्दर रचना!
बहुत उम्दा!!