तेरे दामन से जो लिपट गयी चुनरी मेरी
दुनिया ने कहा मेरे चलने में खता थी
हवा ने रूख मोड़ा और उड़ गयी वो
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?
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फिसलती राहो से गुजरते गिरी तेरे बाहो में
दुनिया ने कहां मेरी राह चुनने की खता थी
तेरी मासूम सूरत देखी और राह भटक गई
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?
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दुनिया समझने मैं चली, खोया दिल तेरे हाथों में
दुनिया ने कहा खरीददार चुनने में खता थी
दिलों का मेला इतना बड़ा भूल हुई चुनने में
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?
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ये गया तू मेंरी ख्वाबो की पंखुड़िया बिखराकर
दुनिया कहती है, मेरी खुशबू में कमी थी
हर पुष्प की अभिलाषा है रे भौरे तू
बता तो क्या ये सिर्फ मेरी खता थी?
सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आभार
बहुत सुन्दर एहसासों से सजाई गई खुबसूरत रचना |
और हाँ खता कभी अकेले की नहीं होती दोस्त दोनों की मिली जुली होती है |
सुन्दर रचना |
अच्छी रचना। सुंदर अहसास। दिल के करीब लगी आपकी यह पोस्ट।
कभी अकेले की नहीं होती दोस्त दोनों की मिली जुली होती है |
सुन्दर रचना |
anurag kori
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