मनुष्य कि सोच अदभुत , मगर भ्रामक उपकरण होती है !
हमारे भीतर रहने वाली स्मृति न तो पत्थर पर उकेरी गई
कोई पंक्ति है और न ही एसी कि समय गुजरने के साथ
धुल जाये , लेकिन अक्सर वह बदल जाती है , या कई बाहरी
आकृति से जुड़ जाने के बाद बढ जाती है !
वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
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‘‘स्वतंत्र विचार’’ में शामिल प्रविष्ठियां लेखक के नीजी विचार है। सम्पूर्ण लेख या कुछ भाग अन्यत्र प्रकाशित किया जाने पर लेखक को श्रेय दिया जाना श्रेष्ठकर होगा।
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