ये जो आस्मां में
बादलों के साये हैं |
धरा से अस्मां में
किस कदर ये छाए हैं |
कितने हक से
दोनों जहाँ में रहते हैं |
बरसते तो हैं ये
उमड़ - घुमड़ झूम के ,
पर फिर उनके ही
दामन से लिपट जाते हैं |
कैसा रिश्ता है आपस में
दोनों का इस कदर की ,
बिछुड़ने पर भी हर बार
मिलने को ये तरसते हैं |
गरजते हैं बरसते हैं |
न जाने एक दूजे से
क्या ये कहते हैं |
न जाने एक दूजे से
क्या ये कहते हैं |
फिर भी एक ही आशियाँ
में जाके ये रहते हैं |
धरा की प्यास ये
बुझाते हैं |
प्रकृति को हरा - भरा
भी बनाते है |
सारी सृष्टि को नया जीवन
दे कर... निस्वार्थ भाव...
अपना परिचय बतलाते हैं |
कई - कई बार इस कदर
ये खुद को मिटाते हैं
ये खुद को मिटाते हैं
पर फिर से उसी आस्तिव
को पाने उसी रूप में
आ जाते हैं |
बहुत खूबसूरती से परिचय कराया बादलों का ...
bahut sundar rachna
bahut bahut badhai
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
बहुत भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति..
आसमान और बादल के रिश्ते का बखूबी चित्रण।
शुभकामनाएं आपको।
खूब...... एक अलग ही रंग में रंगी कविता.....
कैसा रिश्ता है आपस में
दोनों का इस कदर की ,
बिछुड़ने पर भी हर बार
मिलने को ये तरसते हैं |bahut sundar
A topic near to my heart thanks, ive been wondering about this subject for a while.
matieres reprirent leur cours naturel.