ये अपने विचारों का द्वन्द है ,
जीने दो उसको जो स्वछन्द है |
निराधार है सारी बातें ,
जिसमें कोई सार नहीं |
नाम के हैं सारे रिश्ते ,
जिसमें प्यार नहीं , सत्कार नहीं |
क्या बतलाएं उन जख्मों को ,
जिनके भरने की तो बात नहीं |
हाहाकार है सारी दुनियां में ,
यहाँ जीने के आसार नहीं |
इस रंग बदलती दुनिया में ,
कौन एसा है जो बेकार नहीं |
हाय - हाय का शोर है हरतरफ ,
कोई कोना भी आबाद नहीं |
बात कहने से बात बिगडती है ,
बातों में अब शिष्टाचार नहीं ,
कसम खा लेने भर से ...
मिट सकता भ्रष्टाचार नहीं |
हर तरफ नफरत की आग लगी है ,
जिसका कोई पारावार नहीं |
नाम के हैं सारे रिश्ते ,
जिसमें प्यार नहीं , सत्कार नहीं |
हरेक पंक्ति बहुत सार्थक और सटीक..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
Thanks for all your work.
des resultats plus favorables encore.