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गरीबो के नाम अमीरो का रथ, नाम ''गरीब-रथ"

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‘‘गरीब-रथ’’ कर रहा ‘‘गरीबी’’ का उपहास!

पूर्व रेलवे मंत्री लालू प्रसाद यादव जिन्हे मीडिया ने एक समय काफी सफल रेल मंत्री का तमगा दिया था। अपने कार्यकाल में कई लोकलुभावन घोषणाएं कर चुके है। पूरे देशभर में उनकी घोषणा की हुई कई नामों से नई-नई गाडिय़ा दौड़ रही है। उन्हीमें से एक रेल है ’’गरीब रथ’’ सीरीज की रेल श्रंखला जो उन्होने २००५ के रेल बजट में घोषणा की थी। 

गरीब रथ, जैसा नाम है वैसा ही इसका काम भी है। इसके पहले शब्द ‘गरीब’ से तात्पर्य है कि इसके किराये को गरीबो की पहुच हो इतना कम रखने की कोशीष की जाए। ट्रेन का किराया बाकी ट्रेनो के मुकाबले २५ फिसदी कम रखा गया। इसमें दूसरा शब्द ‘रथ’ से भान होता है कि यह ट्रेन पूर्ण रूप रथ की तरह सुसज्जित होगी, है भी वातानुकूलित एवं उच्च श्रेणी की यातायात बोगियो ये सजी-धजी टेªन। इसका प्रत्येक भाग ‘रथ’ शब्द का मान रखती है। टेªन में खान-पान, सभी सुविधाएं मानों राजधानी और सताब्दी जैसी है। 

सामान्यतः ट्रेन से किसी को कोई खास सिकायत तो नहीं है। पर मेरे मन में सिर्फ एक टीस हमेशा बनी रहती है कि मैं गरीब होते हुए भी आज तक गरीबो के लिए बनी इस ट्रेन में सफर नहीं कर पाया। क्यों नहीं कर पाया यही मेरे इस लेखन में जानने करने की काशीष कर रहा हूं।
गरीब रथ टेªन को लगभग ६-७ साल हो गये शुरू हुए, लगभग पूरे देश में कई गरीब रथ धड़ाधड़ दौड़कर गरीबो का बोझा ढो रहे है। लालू जी ने ट्रेन तो गरीबो के लिए ही चलाई है। बस वे जाते-जाते यह बताना भूल गये कि इसमें कौनसे वाले गरीब बैठेंगे? जो श्वास्तविक गरीब है वो? या जो गरीब जैसे दिखते है वो वाले? दूसरी यह भी नहीं बताया कि कि यह किन-किन शहरों में रूकेगी, वास्तव में जिन शहरो में गरीब रहते हैं उनमें? या जो शहर गरीब जैसे दिखते है उनमें?

एक बहुत गम्भीर प्रश्न मेरे दिमाग में कौंध रहा है गरीबो के नाम पर यात्रि किराये में इतनी बड़ी छूट देकर चलाये जा रहे गरीब रथ में क्या आज तक एक भी वास्तविक गरीब बैठा है? जहां पूरा देश आरक्षण प्रणाली को ढो रहा है वही क्या इसमें ऐसी कोई आरक्षण प्रणाली नहीं है, जिसके माध्यम से यात्रा के पात्र-अपात्रों को अलग-अलग किया जा सके? और वास्तविक जरूरतमंद गरीबो को किफायती यात्रा कराई जा सके? देश में चल रही दर्जनो ‘‘गरीब रथो’’ में एक भी गरीब रथ नहीं है जो किसी वास्तविक ‘गरीबों’ के शहर या किसानों वाले किसी गांव में २ मिनिट रूकती हो। 

वास्तव में ‘‘गरीब रथ’’ सीरीज की इन ट्रेनों के खाने के दांत अलग और दिखाने के अलग है। ये गाडिय़ा अपने जन्म से ही दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता जैसे सक्षम एवं समर्थ व्यापारिक शहरों के बीच चल रही हैं। अन्य ट्रेनों में दलाल आम नागरिक के पहुंच से पहले ही ट्रेन की सीटे बुक कर लेते है और फिर चलता है टिकटों की दलाली का गोरख धंधा। ऐसा ही हाल इनका भी लगता है, चुंकि इसमें मुझे आज तक कभी कोई सीट खाली नहीं मिली। कुलमिलाकर सिर्फ नाम ही गरीब रथ है वास्तव में इसमें गरीबो वाली कोई बात नहीं है।

गरीबों के नाम पर चल रहीं इन रियायती ट्रेनों के रियायत के मजे भी वही गरीब दिखने वाले रहीस लूट रहे है, जो शताब्दी और राजधानी जैसी आलीशॉन गाडिय़ों की शॉन है। कार्पाेरेट घरानों के दिखने वाले ‘गरीब’ और हमारे देश के स्वघोषित ‘बीपीएल टाईप के गरीब’ याने की नेतागण। इन्हे ज्यादा या कम किराये से कोई फर्क नहीं पड़ता पर जब सरकार उनके लिए इतनी रियायती ट्रेन चला ही रही है तो मजे लूटने में क्या बुराई है। कुल मिलाकर गरीबो के नाम पर रियायत का फायदा उठाकर रेलवे को सालभर में करोड़ो रूपये के राजस्व का चूना लगा रहे है, ये दिखने वाले गरीब।

गरीब की परिभाषा सरकार ने ही दी है वह यह कि 28 रूपये में जिसका घर चलता हो। पूरी छूट मिलाकर भी इस ट्रेन का किराया सामान्य श्रेणी के किराये से 4 गुना अधीक बैठता है जो एक आम वास्तविक गरीब के लिए देना सम्भव नहीं होता। गरीब तो आज भी एक ऑर्डनरी क्लॉस पेसेंजर ट्रेन की 10 रूपये की टिकिट खरीदने से पहले भी १० के नोट को 10 बार गिनता है, कही दो नोट एक साथ चिपके तो नहीं है!

9 Responses so far.

  1. बिलकुल, आपसे पूरी तरह सहमत हूँ|

  2. बिलकुल सही कहा आपने!

  3. Anonymous says:

    nice y0u hit it on the dot will submit to digg

  4. Anonymous says:

    de demostrar la impotencia fundamental de la,

 
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