मैं न आ आई थी तेरे दर
न जाने राह कैसे मुड गई |
चल तो रही थी , चाल थी धीमीं ,
न जानें गति कैसे बढ गई |
राह अनजानी सी थी ...
पर पाने की चाह ... न जाने
क्या कमाल कर गई |
चाँद सूरज के साथ चलकर ...
हम सफर करते गए |
अब भी न जान पाए
की हमको तुम कैसे मिल गये |
तन की किसने सोची ...
यहाँ तो मन ही थे मिल गए |
भान ही न पाए हम ,
कौन सी दुआ कब असर कर गई
न आये थे कुछ मांगने
न जाने ये दिल कैसे जुड़ गये |
कुछ क्षण को सारा आलम
एकदम से ठहर गया |
दो पल का आराम ...
हमारी आँखों में सपना नया भर गया |
देख मेरे पंख ...हवाओं ने भी ...
अपना रुख यु बदल दिया |
ड़ाल तो छुम गई ...
पर ड़ाल का पंछी हवा में उड़ गया |
मैं न आई थी , तेरे दर
रास्ता ही खुद मुड गया |
सुन्दर अभिव्यक्ति ..
wahi tooooooooooooo सुन्दर अभिव्यक्ति ..
A topic near to my heart thanks, ive been wondering about this subject for a while.