‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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आवाहन

4 comments




मैं बढ़ी जा रही हूँ , पर तुम्हें भूली  नहीं हुं |
जल रही हुं पर जलनें से , रौशन  हुई हुं |
ढल रही हुं पर साथ मिलता है समय का |
चल रही हुं पर साथ साया है तुम्हारा |
चाहती हुं , दो पल रुक जाऊ  साथ तुम्हारे |
पर क्या करूँ , असंख्य हाथ है मुझको पुकारे |
पथ में मैं नये चलने जा रही हुं |
पर मैं क्या तुम्हें कभी भुला पा रही हुं |
जानते तो तुम भी हो ,  हर तरफ फैला है क्रंदन |
पर मुँह फेर कर ये तो होगा न कभी कम |
विश्व की ये वेदना कहानी तो नहीं है |
भूख  से बिलखते बच्चों के खून में
रवानी भी तो नहीं है |
शांति कैसे छाए , जब वातावरण में  उदासी भरी हो |
तृप्ति कैसे होगी , जब सृष्टि ही प्यासी पड़ी हो |
ऋण न चूका पायें तो  जन्म लेना भी व्यर्थ है |
यही सोचकर पाँव पथ की और अग्रसर हैं |
सोचती हुं आज कोई गीत एसा गाऊँ   |
भीग जाये ये धरा मैं नीर एसा बहाऊँ  |
मानव होकर मानव की वेदना को जो न जानें   |
व्यर्थ है जीना जो उसकी पीड़ा को  न पहचानें  |
मुझमें और उसमें अंतर तो ऐसा कोई नहीं है  |
मूक हुं तो क्या उसकी व्यथा न पहचानूँ  |
प्यासे पंछी को देख , जब फट सकता है मानव मन |
तो कंकाल होते देख , प्रेरणा क्यु न देता मन |
देखती सुनती मैं रहती हुं ये हर पल |
साथ हुं तेरे न भूली हुं तुझे एक पल |

4 Responses so far.

  1. मन के भावों को प्रवाह दिया है ./.. अच्छी प्रस्तुति

  2. Anonymous says:

    Just to let you know your site looks a little bit strange in Opera on my laptop with Linux .

  3. Anonymous says:

    Tous les cas de resection,

 
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