राजीव खण्डेलवाल:
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विगत दिनांक १७ नवम्बर २०११ से लगातार ''स्टार न्यूज" द्वारा वर्ष १९९६ में भारत श्रीलंका के बीच हुए वल्र्ड कप सेमीफाईनल मैच में कप्तान मो. अजरूद्दीन द्वारा प्रथम फिल्डिंग करने के लिये गये निर्णय बाबत तत्कालीन टीम इंडिया के सदस्य विनोद कांबली द्वारा शंका की उंगली मो. अजरूद्दीन पर उठाई गई है। इस पर न केवल स्टार न्यूज द्वारा सतत लाईव बहस व न्यूज प्रसारण विगत चार दिवस से जारी है अपितु आज की इस गलाफाड़ प्रतिस्पर्धा के युग में अन्य न्यूज चैनल ''आज तक" इत्यादि द्वारा भी प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए इस मुद्दे पर बहस दिखाई जा रही है। क्या यह अनावश्यक होकर देश के समय की बर्बादी और टीआरपी के चक्कर में देश की ईज्जत के साथ खिलवाड़ नहीं है? यह एक प्रश्र एक लगातार प्रसारण स्टार न्यूज चैनल को देखने वाले नागरिकों के दिमाग में कौंध रहा है वह इसलिए कि विनोद कांबली के उक्त शंका पर इतनी लम्बी बहस का कोई मुद्दा ही नहीं बनता है क्योंकि उक्त आरोप के समर्थन में १६ सदस्यीय टीम का कोई भी सदस्य सामने नहीं आया है। जिसे आगे विश्लेषित किया जा रहा है।
सर्वप्रथम यदि हम विनोद कांबली के आरोपो पर दृष्टि डाले तो उन्होने प्रथम बार १७ तारीख को स्टार न्यूज से बातचीत करते हुए कहा कि १९९६ के उक्त मैच के एक दिन पूर्व टीम इंडिया ने सामूहिक निर्णय प्रथम बल्लेबाजी करने का लिया था उसे तत्कालीन कप्तान अजरूद्दीन ने टॉस जीतने के बाद बदलकर फील्डिंग का जो निर्णय लिया जिससे भारत को हार का सामना करना पड़ा। इस कारण उन्होने मैच फिक्सिंग की आशंका व्यक्त की है। लगभग १५ वर्षो के बाद अब यदि विनोद कांबली जो स्वयं भी उस टीम के महत्वपूर्ण सदस्य थे उक्त देरी के लिए उचित स्वीकारयोग्य स्पष्टीकरण के अभाव में आज अकारण ही बिना किसी सबूत के उक्त गम्भीर आरोप लगाकर मात्र आशंका ही जाहिर कर रहे है। मैच फिक्सिंग होने का कोई पुख्ता दावा प्रस्तुत नहीं कर रहे है। इससे यही सिद्ध होता है कि उनके उक्त आरोप को गंभीरता से लेने की आवश्यकता बिल्कुल भी नहीं है जैसा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया उसे दे रहे है। इसके बावजूद हमें यह देखना होगा की क्या उनके बयान में एक प्रतिशत की भी सत्यता है? श्री कांबली के बयान पर यदि बारीकी से गौर किया जाये तो उन्होने यह स्पष्ट कहा की टीम इंडिया का प्रथम बैटिंग करने का सामुहिक निर्णय पूर्व रात्री में लिया गया था जिसे कप्तान अजरूद्दीन ने दूसरे दिन टॉस जीतकर बदल दिया यदि यह तथ्य वास्तव में सही व प्रमाणित है तो बिना किसी अन्य साक्ष्य के कांबली का आरोप प्रमाणित होता है। इसके लिए खेल मंत्रालय, बीसीसीआई एवं आईसीसीआई को केवल कांबली के बयान के आधार पर आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए बल्कि मो. अजरूद्दीन पर देशद्रोह का मुकदमा भी चलना चाहिए था मात्र आजीवन प्रतिबंध लगाकर छोड़ नहीं दिया जाना था। अत: क्या वास्तव में अजरूद्दीन व टीम इंछिया का निर्णय प्रथम बैटिंग का था मूल मुद्दा यही है। तत्कालीन १६ सदस्यीय टीम के अन्य समस्त सदस्यों में से कोई भी सदस्य कांबली के टीम इंडिया के निर्णय दिये गये उक्त कथन का समर्थन नही रहे है। इसके विपरीत टीम के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य टीम मैनेजर अजीत वाडेकर, सदस्य वेंकटपति राजू व अन्य दो तीन सदस्यों ने चैनल के साथ बातचीत करते हुए यह स्पष्ट कहा है कि टीम इंडिया का जो सामुहिक निर्णय हुआ था वह फिल्डिंग करने का था न कि बैटिंग का क्योंकि श्रीलंका टीम उस समय टारगेट चेस करने में ज्यादा सफल हो रही थी (फाईनल में भी टीम चेस करने में ही जीती है)। तीन-चार सदस्यों ने इस संबंध में चैनल द्वारा सम्पर्क करने पर अपने कोई कमेंट्रस नहीं दिये व शेष सदस्यों से स्टार न्यूज का कोई सम्पर्क हुआ या नहीं यह भी चैनल द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया। अर्थात १६ सदस्यीय टीम में से कोई भी सदस्य कांबली के कथन का समर्थन नहीं करता है। नवजोत सिंह सिद्दू का तत्समय दिया गया बयान कि टीम पहले बैटिंग करेगी या स्टार न्यूज के दीपक चौरसिया का यह कथन कि सिद्दू ने कही अनोपचारिक चर्चा में प्रथम बैंटिंग निर्णय को स्वीकार किया, जिसमें ही यह गलतफहमी फैली है। लेकिन चैनल द्वारा सिद्दू से इस प्रकरण में प्रतिक्रिया मांगने पर उनका प्रतिक्रिया देने से इंकार करना काम्बली के दावे का पूर्णत: कमजोर करता है। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते एक सासंद होने के कारण उन्हे स्वयं आगे आकर उस समय लिये गये टीम निर्णय के बाबत जानकारी देश को देनी चाहिए थी ताकि चैनल द्वारा फैलाया गया धुआ साफ हो जाता। इसके बावजूद लगातार चार दिन से सतत बहस दिखाना, शंका को जन्म देता है। जितने भी चैनलों द्वारा इस संबंध में लोगो की प्रतिक्रियाए दिखाई जा रही है। उनमें से जो लोग जॉच की मांग कर रहे है उनमें से कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह रहा है कि टीम का निर्णय पहले बैटिंग का था जिसे टास जीतने के बाद बदला गया। टीम इंडिया का फिल्डिंग का निर्णय जो लिया गया वह गलत तो हो सकता है जो बाद में हार के परिणाम स्वरूप गलत भी सिद्ध हुआ लेकिन इसे गलत निर्णय को बदला गया निर्णय बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता है। सामुहिक निर्णय गलत सिद्ध होने पर किसी भी व्यक्ति की फिक्सिंग का आरोपी नहीं माना जाता है। इसके बावजूद इलेक्ट्रानिक मीडिया द्वारा इस तरह देश की टोपी को पूरे विश्व में उछालने जो कार्य हो रहा है उस पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए।
ऐसा लगता है कि इस घटना पर वैसी ही राजनीति हो रही है जैसे देश में आमतौर पर घटित कोई भी घटना पर होती है। देश के खेलमंत्री जी का यह कथन की इसकी जॉच की जानी चाहिए राजनीति की इसी कड़ी का बयान है क्योंकि इसके पूर्व कामन्वेल्थ खेल कांड में उन्होने प्रभावशाली जॉच की मांग नहीं की थी। चुंकि मैच फिक्सिंग का यह मामला सीधे क्रिकेट से जुड़ा है व क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था बीसीसीआई पर खेलमंत्री नकेल डालने का असफल प्रयास कर रहे है इसलिए उनका उक्त बयान आया है। इस देश में यह आम प्रचलन हो गया हे जब भी कोई व्यक्ति किसी दूसरे पर आरोप लगाता है। चाहे वह सरकार के विरूद्ध हो, संस्था के विरूद्ध हो व्यक्तिगत हो तुरन्त जॉच आयोग के गठन की मांग की जाती है आयोग का गठन हो जाता है। जॉच आयोग के बाद समय बीतने के साथ समय के गर्भ में संबंधित पक्षकार भी घटना को भूल जाते है लोग व मीडिया भी उस घटना को भूल जाते है और मामला दफन सा हो जाता है। वास्तव यदि किसी तथ्य की जॉच होनी चाहिए तो वह इस बात की कि स्टार न्यूज ने विनोद कांबली के साथ मिलकर देश की साख पर बट्टा लगाने के मूल्य पर मात्र टीआरपी बढ़ाने के लिए विनोद कांबली के साथ फिक्सिंग तो नहीं की है। जिसके समर्थन में कोई भी तथ्य संबंधित व्यक्तियों के आगे आने के बावजूद स्टार न्यूज या अन्य चैनल प्रस्तुत नहीं कर सके है बल्कि उपलब्ध समस्त कथन, साक्ष्य या तो कांबली के विपरीत हो या मौन है लेकिन तथ्यात्मक रूप से समर्थन में नहीं बल्कि भावनात्मक रूप से। इसकी जॉच की जाकर परिणाम को लोगो के सामने उजागर करना चाहिए जिससे न केवल उक्त फिक्सिंग का सच सामने आये बल्कि उक्त मैच भी फिक्स था या नहीं पता चल सकेगा ताकि भविष्य में इस तरह की ब्राड कास्टिंग-मैच फिक्सिंग न हो सके।
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impugna la prolongacion irresponsable de la vida,