कृष्णा बारस्कर, बैतूल, मध्य प्रदेश
‘‘आजकल लीव-इन-रिलेशनशिप (बिना शादी के पति-पत्नि की तरह रहने की परम्परा) को सपोर्ट करने वालो की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। वही लोग इधर खाप पंचायतो के 16-18 वर्ष में विवाह की न्यूनतम सीमा तय करने के सुझाव को नकार भी रहे है। लेकिन क्या उन्हे यह नहीं सोचना चाहिए कि देश का भविष्य कहलाने वाले युवा अब इतने कमजोर नहीं रहे। वे हर मुसीबत का सामना करने में सक्षम है! जन्म से लेकर मृत्यू तक बेपनाह मोहब्बत करने वाले मॉ बांप को जो युवा धोखा दे सकते है! इसी बाली ऊमर में क्षणिक उन्माद में पैदा हुए प्यार के लिए घर छोड़कर भाग सकते है! मॉं-बापू के निस्वार्थ-निश्छल-अथाह प्यार को भूलकर एक ऐसे इन्सान से प्रेम विवाह कर बैठते है, जिससे वो अभी-अभी मिले है! उसके सामने अपने मॉ बाप को तुच्छ, मुर्ख समझते है! ये सोचते है कि मां-बाप उनके प्यार को कभी नहीं समझ सकते! जो ये भी नहीं सोचते की जन्मदाताओं पर क्या बीतेगी! जो सिर्फ और सिर्फ आपमें अपनी दुनिया देखते है। जो अपना खुद का अलग घर बसा लेते है! उनकी उसी खुदगर्जी में अगर समाज की मर्जी (खाप के प्रस्ताव अनुरूप) जुड़ जाये तो उसमें आपत्ती क्या है?’’
आओ मुख्य मुद्दा जाने!
कई मुद्दों पर हमारे देश में आए दिन दोहरे मानदंड सामने आते रहते है। इसीमें से एक है युवाओं में शादी की उम्र विवाद को लेकर हाल ही में देश की खाप पंचायतों के एक प्रस्ताव रखा जिसमें ‘‘16 वर्ष लड़की एवं 18 वर्ष लड़के की उम्र में सहमति से विवाह को वैध बनाने की मांग’’ है। गौर करने वाली बात ये है की सिर्फ सुझाव ही दिया है कोई फरमान नहीं सुनाया! जरा गौर करे तो विरोध करने का समाज का दोहरा रवैया समझ आ जाएगा।
जरा अतीत में क्या है देखें!
थोड़ा याद करें तो पिछले ही वर्ष का मामला है महिला एवं बाल विकास विभाग की मुखिया ‘‘कृष्णा तीरथ’’ एक बिल बनाने में मशगुल थी। उनकी योजना यह थी कि 13 वर्ष के नाबालिको को सहमती से सेक्स करने की इजाजत दे दी जाये। चुंकि वैसे भी इस उम्र के बाद युवा इस तरह के मामलो में लिप्त पाये जा रहे। तो उनका सोचना भी उनके खुद की नजर में शायद उचित हो। परन्तु प्रत्योत्तर में इस मुद्दे पर पूरे देशभर में कटु प्रतिक्रिया हुई। परिणाम स्वरूप इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
फिर वही मुख्य मुद्दा दिमाग में आताा है। भई जब नाबालिक ऊमर में सहमति से सेक्स की इजाजत के बारे में जब सोचा जा सकता है। तो फिर खाप के सुझाव ‘‘कम उम्र में विवाह‘‘ से आपत्ति क्यों है? सोचिए!
अब बात खाप के फरमानों कीः-
खाप पंचायते हमेशा अपने फैसलो की समाज में हो रही आलोचनाओं के लिए जानी जाती है। उनके द्वारा शादी की उम्र कम करने का जैसे ही सुझाव दिया तो सरकारी के नुमाइंदो की भोहे तन गई है! देश के बहुत से बुद्धिजीवी इस बात का घोर विरोध करते नजर आये! कुछ लोग तो सिर्फ टीवी पर दिखने मात्र के लिए खाप को खरी-खोटी सुनाते नजर आए! तो कुछ लोगो के पास तर्क-वितर्क भी मौजूद है। विरोध करने के लिए वे एक शब्द का बहुत जिक्र करते है बालिकाओं की कम उम्र में पायी जाने वाली ‘‘बायालॉजिकल और मानसिक स्थिति’’।
बायोलॉजिकल परेसानिया-
18 वर्ष की उम्र में शादी-बंधन वाला कानून जिस समय लागु किया गया था। उस समय परिस्थितियां निश्चित ही कुछ अलग रही होंगी। जैसे कि सुनने में आया है कि उस समय लड़कियों के ‘‘मासिक धर्म’’ 16 वर्ष शुरू होते थे। दूसरा उस समय की तकनीकी इतनी विकसित नहीं थी जिससे जानकारियों का अभाव होने से समझदारी थोड़ी देरी से विकसित होती होगी। परन्तु अभी तो कक्षा 4 के बच्चों में भी देश और दुनिया की जानकारी आपसे-हमसे अधिक ही बैठेगी। उन्हे प्यार करना, रोमांस करना, सेक्स करना, शादी करना, तलाक लेना, सॉस-ससुर से निपटना सब कुछ हमारे घर में रखा हुआ 21 इंच का टीचर ही शिखा देता है। मेरी बात कुछ लोगो को शायद चुभ भी जाए, लेकिन टीवी की नकल कर-करके घरों में कई चीजों के ‘‘प्रेक्टिकल’’ आपके बच्चे कर चुके होते है, आप और हमे तो हवा भी नहीं लगती!
मुस्लीम समाज में उसी बाली ऊमर में शादी को हमारी ही कानून व्यवस्था मान्यता देती है! उसका क्या? क्या मुस्लीम इंसान नहीं होते? क्या उनके धर्म की लड़कियों को बायोलॉजिकल परेशानी नहीं होती? हमारे देश के मुस्लिम धर्मी 15 वर्ष में शादी करके भी चुस्त-दुरूस्त और तन्दुरूस्त है, और मुस्लिम बेटिया पढ़ाई भी पूरी कर रही है। फिर ये भारत जैसे धर्मनिरेपेक्ष देश में ऐसा भेदभाव क्यू? क्या यही है सेकुलरिज्म? या हमें मुर्ख बनाया जा रहा है?
कुछ काम के प्रयोग जो मीडिया वाले दिखाते और वैज्ञानिक करते रहते है!
आजकल दिन प्रतिदिन देश में बिना किसी कारण के कई सर्वे होते रहते है। बालिगो-नाबालिगो के सेक्स जीवन पर भी कई सर्वे हुए। अगर उनकी फाईनल ड्राफ्टिंग देखी जाए तो ज्यादातर का निष्कर्स यही मिलता है कि हमारे युवा 18 वर्ष की दहलीज पर आते-आते 1 से अधिक साथियों या एक ही साथी के साथ कई बार ‘‘सेक्स’’ का आनंद ले चुके होते है। अब फिर वही सवाल जब अपनी मर्जी से इतना सेक्स कर ही चुके है तो शादी करके सेक्स करने में क्या आपत्ति है?
एक बाली ऊमर वाली कन्या का उदाहरणः-
एक लड़की जिसकीं ज्यादा से ज्यादा 14 वर्ष रही होगी। वह मोहल्ले में ऐसे रहती थी जैसे उसने किसी लड़के को आंख उठाकर भी नहीं देखा होगा। मेरे सामने तो वह शर्म से छुप जाती थी। वह कहां और कैसे अपने मित्र के साथ छुप-छुपकर शारीरिक सम्बंध बनाते हुए प्रेग्नेंट हो गयी, वही जाने। जब बात खुली तो उसने अपनी मम्मी को बताया कि उसके सम्बंध बहुत पुराने है। उस लड़की की मां जो हमेशा उसे 24 केरेट सोने की तरह सुद्ध बताती रहती थी, उसका मोहल्ले भर गुनगान करती थी। वह जानकर स्तब्ध रह गई कि उसकी बेटी ने छुपकर मंदिर में विवाह कर लिया था! अपने नाबालिक मित्र से! और ना जाने कितनी ही बार सुहागरात मना चुकी थी! और आश्चर्य की बात तो यह है कि उसे ऐसा करते हुए कोई ‘‘बायोलॉजिकल’’ परेशानी भी नहीं आयी। अब कहां गया बाली ऊमर का कानून? अंत में वो मां अपने अपनी बेटी की ऐसी हरकत पति को भी नहीं बता पाई। जो करना था खुद ने ही करवा लिया।
इसके आगे आप समझ जाये क्या किया होगा। अधिक लिखने से उस बेचारी के लिए और मेरे लिए भी मुसिबत ला सकता है। क्योंकि अब वह लड़की बालिग हो चुकी है और अब समाज की मर्जी से शादी करना चाहती है।
नाबालिक अवस्था में सहमती सेक्स करने वाले हमारे नाबालिको की स्थिति जब प्रेग्नेंसी तक पहुंचती है। तो बात उसके स्वयं के और पालको के गले में फस जाती है। बात समाज की, इज्जत की और उम्र की आ जाती है। न चाहते हुए भी वे एक और गुनाह कहे या पॉप वह भी करने हेतु विवष हो जाते है। जाती बिरादरी में बदनामी से बचने के लिए परिवार खुद अपना ‘बच्चा’ गिराने की इजाजत दे देता है। इस तरह से एक नवजीवन की हत्या कर दी जाती है। यह हत्या होती है मात्र हमारे कानून के कारण।
अंत में मेरा सुझाव मानो या ना मानो आपकी मरजी!
आजकल की परिस्थितियों को अगर देखा जाये तो मैं खाप के सुझाव का स्वागत करता हूं। मेरे विचार में विवाह की उम्र 18 (लड़का एवं 16) वर्ष करके विवाह करना या न करना ये युवाओं के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। हॉं एक प्रतिबंध जरूर लगाया जाए कि 18 वर्ष की उम्र से पहले वे बच्चा पैदा न करें। ताकी बच्चे के लालन-पालन में कम उम्र बाधक न बने। क्यूंकि सबसे बड़ी चिंता तो दुनियां में आने वाले उसी नये जीवन की होनी चाहिए। क्योंकि वह आपके भरोसे इस दुनियां में आ रहा है और उसकी परवरिस, शिक्षा और सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।
कन्या को शादी के बाद भी पूरी स्वतंत्रता दी जाये। कन्या की पढ़ाई अनिवार्य कर दी जाए चाहे वह मायके में रहे या ससुराल में। इसका तरीका ये है की कन्याओं का पूरा पढ़ाई का खर्च सरकार उठाये। कन्या को विवाह के बाद भी 20 वर्ष में यह छूट दे दी जाए की वह अपना वर बदल सके। उससे लीव इन रिलेशन को भी कानूनी मान्यता अपने आप ही मिल जायेगी, जैसा कि सरकार चाहती ही है।
अगर सेक्स की छूट दे दी जाए और विवाह के नीयमों में ढील न दी जाये तो इसके दूरगामी परिणाम कम उम्र में किये गये विवाह से भी अधिक गम्भीर हो सकते है।
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नोटः- लेख में जो भी लिखा है वह मेरे निजी एवं स्वतंत्र विचार है। जमीनी जीवन जीता हू। गहन अध्ययन और नीजी अनुभव ही लिखे है।.जिन भी पाठको को मेरे विचारों से आपत्ति हो वे मुझसे किसी समय बहस कर सकते है। विरोधी और आलोचकों का स्वागत है।
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