सर्वदलीय निंदा, लानत हो और बर्खास्त हो “वन्दे-मातरम्” का अपमान कर्ता सांसद
महान कवि और लेखक बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा रविवार, कार्तिक सुदी नवमी, शके १७९७ (७ नवम्बर १८७५) को पूर्ण किये गए अप्रतिम, भावपूर्ण और सुन्दर गीत वन्देमातरम के विषय में कौन सच्चा भारतीय गौरव भान और आदर भाव नहीं रखना चाहेगा यह अविश्वसनीय सवाल है!!
भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण, जीवट भूमिका निभानें वाले और अबाल वृद्ध देश भक्त भारतीयों में देश प्रेम और मातृभुमि के प्रति आस्था जागृत करनें वाला यह गीत स्वातंत्र्य संघर्ष काल में सम्पूर्ण भारत में एक बड़ा सम्बल और देश प्रेमियों के परस्पर दिलों को एक दुसरें से जोडनें वाला सिद्ध हुआ था. आज इस गीत को लिखें जानें के लगभग एक सौ चालीस वर्षों के बाद हम भारतीयों के ह्रदय में राष्ट्रवाद, राष्ट्र-रक्षा और राष्ट्र निष्ठा का अप्रतिम भाव जागृत कर देता है. आज भी जब विद्यार्थी, नेता, अधिकारी और सामान्य नागरिक इस गीत को गातें हैं तो अपनें दिलों में भारत माता को साक्षात बसा हुआ देख पातें हैं.
इस देश में पृथकता वादियों और भारतीयता के प्रति असम्मान की भावना से भरे हुए विघ्न संतोषियों द्वारा समय समय वन्दे मातरम् के प्रति प्रकट किया जानें वाला असम्मान कोई नई बात नहीं है. जो नया हुआ है वह संभवतः देश प्रथम बार भारत की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था और लोकतंत्र के मंदिर में वन्देमातरम का घोर अपमान है. बहुजन समाज पार्टी के दलबदलू और मानसिक दिवालिया सांसद जो कि पूर्व में मुलायम सिंग के साथी रहें हैं द्वारा संसद में राष्ट्र गीत गायन की समृद्ध परम्परा के दौरान संसद से बाहर चलें जाना देश की संसद, सवा सौ करोड़ नागरिकों और हमारें उन शहीदों का अपमान है जो कि वन्देमातरम का उच्चारण कर कर के फांसी के फंदों पर झूल गए थे. इस दुष्ट, भ्रष्ट बुद्धि, देश द्रोही बसपा सांसद शफी कुर्ररहमान वर्क को मान. लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने तुरंत संज्ञान लेते हुए कड़ी चेतावनी दी और इसका कारण जानना चाहा तब भी इस व्यक्ति ने कोई भूल सुधार नहीं की. इस देश द्रोही ने समाचार पत्रों को उत्तर देते हुए कहा कि वन्दे मातरम इस्लाम विरोधी है, इस्लाम इसके गान की इजाजत नहीं देता इसलिए वे लोकसभा से बाहर चले गए थे और भविष्य में भी ऐसा ही करेंगे इस कुत्सित मानसिकता वाले व्यक्ति ने यह कह कर भी चौकाया कि १९९७ में आजादी की स्वर्ण जयंती समारोह में भी इसनें ऐसा ही किया था.
सम्पूर्ण राष्ट्र में इस शफी कुर्ररहमान के इस दुष्कृत्य पर दुःख और गुस्सा प्रकट होना स्वाभाविक ही है किन्तु आज देश में गुस्सा और दुःख इस बात का भी है कि संसद के अन्दर और बाहर बैठे नेता और राजनैतिक दलों के नेताओं और प्रवक्ताओं की जिव्हा को क्यों लकवा हो गया है? वैचारिक पक्षाघात की शिकार और तुष्टिकरण और वोट जुगाडू व्यवसाय हो गई राजनीति में विषबेल उगातें हमारें राजनैतिक दलों को इस घटना की आलोचना और इस सांसद का बहिष्कार करनें में भी आगामी संसद और प्रधानमन्त्री की कुर्सी पाने खोनें का अंकगणित दिख रहा है. लगभग सभी राजनैतिक दल मुस्लिम वोटों की जुगाड़ में इस दुखद घटनाक्रम की प्रखर आलोचना करते नहीं दिखाई पड़ रहे है. बसपा जो कि सम्पूर्ण राजनीति हमारें सविंधान निर्माता बाबासाहब अम्बेडकर के विचारों की दुहाई दे दे कर करती है उसे यह स्मरण नहीं आता है कि इस महान मन्त्र “वन्दे-मातरम्” को उनके नेता और हमारें सविंधान शिल्पी बाबा साहब ने ही राष्ट्र गीत की मान्यता दी थी. यदि बसपा की हमारें राष्ट्र नायक भीमराव अम्बेडकर में तनिक भी आस्था है तो सर्वप्रथम उसे इस वर्क को बसपा से निष्कासित कर देना चाहिए. होना तो यह भी चाहिए कि सम्पूर्ण संसद इस अवसर पर एकमत और एक भाष्य होकर राष्ट्रपति से इस सांसद की सदस्यता समाप्त कर इस व्यक्ति पर राष्ट्र गीत के अपमान का मुकदमा चलानें की मांग करें. यही वह अवसर है जब देश के सभी राष्ट्रवादी मिलकर इस गीत “वन्दे-मातरम्” और अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों, मान चिन्हों और राष्ट्रीय भावनाओं का अनादर करनें वालों के विरुद्ध संकल्प ले और इन्हें दण्डित करनें हेतु कटिबद्ध और प्रणबद्ध हो जाएँ.
बंकिम चन्द्र चटर्जी की महान कृति आनन्दमठ के अंश “वन्दे-मातरम्” के विषय में मुस्लिमों को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योकि मादरे वतन यानि जन्मभूमि के आदर और आराधना को तो इस्लाम भी मान्यता देता है. कुरआन की कितनी ही आयतों में मादरे वतन के एहतराम को हराम हरकत माना गया है फिर मातृभुमि की आराधना के इस सुन्दर गीत को गा लेनें भला इस कट्टर पंथियों का क्या बिगड़ जाएगा यह समझ से परे है.
इस देश के सौ करोड़ मूल निवासियों की भावनाओं से मीजान और मिलान बैठानें का प्रयास कर यदि मुस्लिम समाज कुछ छोटे छोटे त्याग कर लेगा तो सच्चा मुसलमान ही कहलायेगा. यदि मुस्लिम कभी हिन्दुओं की भावनाओं के अनुरूप गौमांस का त्याग कर लेगा या “वन्देमातरम” गा लेगा तो वह इस देश की मुख्य धारा में और अधिक स्नेह और माधुर्य से स्वीकार्य ही होगा!! ऐसे बहुत से छोटे छोटे भावना प्रधान तथ्य है जिन्हें यदि मुस्लिमों के चंद कट्टर पंथी नेता, मुल्ला, मौलवी समझ ले तो निश्चित ही इस देश के अधिसंख्य नरमपंथी मुस्लिमों को भी कोई आपत्ति नहीं होगी और इस देश में गंगा जमुनी संस्कृति में चार चाँद लगा कर हम सम्पूर्ण विश्व को एक उदाहरण दे पायेंगे. निश्चित ही आज हमारें देश में इस प्रकार के भावनापूर्ण आग्रहों, आव्हानों का अपना स्थान और महत्त्व है और किये जाते रहनें चाहिए किन्तु आज जिस कार्य की सबसे अधिक तत्काल आवश्यकता और अनिवार्यता है वह यह है कि संसद में राष्ट्र गीत के अपमान करनें वाले सांसद को दंड देनें की. इस देश का सविंधान, नीति नियंता, नेता, प्रशासन और न्यायपालिका इस देश के सामान्य नागरिकों से
राष्ट्रीय प्रतीकों के सम्मान की आशा रखतें है और उनकी इस आशा को सच्चे भारतीयों और राष्ट्रवादी नागरिकों द्वारा पूर्ण किया भी जाता है तब इस सांसद को क्यों रियायत दी जाए? शफी कुर्ररहमान तो भारतीय सविंधान की शपथ लेकर संसद में आये हैं इसी सविंधान में “वन्दे-मातरम्” के अनिवार्य आदर का भी उल्लेख है अतः इस बकरा -बुद्धि नेता को ऐसा सबक सिखाया जाना आवश्यक है जिससे सम्पूर्ण देश में एक सन्देश और संकल्प शक्ति का प्रवाह हो. इस अपराधी वर्क को दंड देनें का पुण्य कार्य स्वयं संसद करे तो ठीक अन्यथा महामहिम राष्ट्रपति इस शुभ कार्य को अपनी प्रज्ञा संज्ञा से करें तो बड़ी कृपा होगी.
आज की ब्लॉग बुलेटिन १० मई, मैनपुरी और कैफ़ी साहब - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !