कृष्णा बारस्कर:
भारत का आजकल इतनी ज्यादा तेजी से निर्माण हो रहा है कि हर क्षेत्र में में रेस लगी हुई है। हमारे यहां बचपन से लेकर बुढ़ापे तक प्रतिद्वंद्विता जीतकर ही आगे बढ़ा जा सकता है। आजकल हर क्षेत्र में रेस है और जो इसे जीत जायेगा वही जिन्दगी में आगे बढे़गा। हमारे संविधान में दों शब्द समावेसित किये गये है ‘‘धर्म’’ और ’’निरपेक्ष’’ दोनों को मिलाकर एक शब्द बना है ’’धर्मनिरपेक्ष’’। जिसे अंग्रेजी ‘‘वर्णमाला’’ में ’’सेकुलर’’ कहा जाता है। आजकल हमारे देश के ’’टेªण्ड’’ में यही शब्द ’’सेकुलर’’ चल रहा है। यह शब्द इतना प्रशिद्ध है कि कभी-कभी लगता है यह कोई ’’ब्रम्हवाक्य’’ है जिसे सिद्ध करके ही मोक्ष पाया जा सकता है। लोग ’’धर्म’’ नाम के शब्द से ही नफरत करने लगे है। देश में आज हर कोई ’’सेकुलर’’ कहलाना चाहता है, चाहे उसके लिये कुछ भी करना पड़े। सेकुलरिज्म की परिभाषा तो मैं नहीं जानता परन्तु जितना जानता हूं उसके हिसाब से मैं कई दिनों से ’’सेकुलरिज्म’’ की परिभाषा बदलते देख रहा हूं, देखकर बहुत दुख होता है।
मैं 12.09.2013 को रात में एक न्यूज चैनल देख रहा था जिसमें मोदी पर बहस होते होते सेकुलरिज्म की बात निकल ही गई। एक बिहार के नेता अपनी पार्टी और सरकार को ’’सकुलर दिखाने के लिए उदाहरण दे रहे थे कि ’’हमने अपने शासनकाल में ’’डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, श्यामाचरण शुक्ल जैसे किसी हिन्दूवादी के नाम पर कोई योजना चालू नहीं की, हां हमनें अपने शासनकाल में ’’अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सीटी’’ शुरू की है। उसके इतना कहते ही समाचार वाचक और बाकी के नेता जो बहस में बैठे थे उन्हे यकीन हो गया की नेताजी की पार्टी सेकुलर है।
ऐसे ही उत्तर प्रदेश में मुजफ्फर नगर के दंगो पर बयान देने के लिए वहां के मुख्यमंत्री मीडिया के सामने अपने आप को ’’सेकुलर’’ दिखाने के लिए जालीदार टोपी पहन के आये शायद वो यह यकीन दिलाना चाहते थे कि वो आज भी ’’सेकुलर’’ है। वहीं बिहार की एक पार्टी ने एनडीए से अपना नाता सिर्फ इसलिए अपना नाता तोड़ लिया क्योंकि एनडिए ने एक तिलकधारी को देश की बागडोर सौपनें का मन बनाया। यहीं नहीं हमारे देश की आज की सबसे बड़ी पार्टी के कुछ नेता सिर्फ अपने आपको सेकुलर दिखाने के चक्कर में ’’ओसामा बिन लादेन’’ को ’’ओसामा जी’’ कहते है। इसरत जहां जैसी आतंकवादी को अपनी बेटी बताते है। इनके मंच पर आतंकवादी खुलेआम बैठते है। ये आतंक की पैरवी करते है सिर्फ ’’सेकुलरिज्म’’ की खातिर।
आज हम ये भी भूल गये है कि हमने धर्म को बचाने की खातीर ’’रामायनण’’ और ’’महाभारत’’ जैसी न जाने कितनी ही बड़ी-बड़ी लड़ाईयां लड़ी है।
इस विषय में कथा तो बहुत लम्बी है पर फिर कभी आऊंगा आपके सामने अभी समय कम है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार - 15/09/2013 को
भारत की पहचान है हिंदी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः18 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
प्रचार ... जिसके साथ मीडिया है वो अपनी परिभाषा गढ़ लेता है ओर १०० बार बोलने पे झूठ भी तो सच हो जाता है ...
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