राजनीतिक दल जो सरकारे बनाने के लिए विधायक, सासंद खरीदना-बेचना, जोड़-तोड़, की राजनीति करते नजर आते है। वहीं दिल्ली में सरकार न बनाने के लिए लड़ रहे है। हर पार्टी विपक्ष में बैठना चाहती है। लगता है सबने सोनिया गांधी की बात को गम्भीरता से मन में बिठा लिया कि ‘‘सत्ता जहर है’’ और इसलिए सब ‘‘जहर’’ पीने के बजाय विपक्ष का ‘‘अमृत’’ पीने को बेताब है।
दिल्ली का विधानसभा चुनाव इस बार पूरी तरह से उलट-पुलट परिणामों से भरा रहा। यहां दो परम्परागत राजनैतिक दल को सबसे बड़ी चुनावी टक्कर मिली वो भी एक ऐसी पार्टी से जो मात्र एक वर्ष पुरानी है और जिसे सोशल मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया की उपज माता जाता है। जनता ने ‘‘भाजपा’’ और ‘‘आप’’ को मिश्रित समर्थन दिया। भाजपा को 31 सीटे, ‘‘आप’’ को 28 सीटे मिली वहीं पिछले 15 वर्ष से सत्तासीन कांग्रेस को पूरी तरह नकारते हुए जनता ने सिर्फ 8 स्थानों पर योग्य पाया। चुनाव के बाद आये नतीजों से जनता ने कांग्रेस की वर्तमान सरकार को नकारते हुए, उसके विकल्प के रूप में सामने आयी ‘‘आम आदमी पार्टी’’ और 15 वर्ष से मुख्य विपक्ष की भूमिंका निभाती आई भाजपा पर अपना विश्वास दिखाया। प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी ‘‘भाजपा’’ ने बहुमत न होने के आधार पर सरकार बनाने से मना कर दिया। वहीं प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी ‘‘आम आदमी पार्टी’’ ने भी स्पष्ट तौर पर विपक्ष में बैठने का ऐलान कर रखा है। हालाकि ‘‘आम आदमी पार्टी’’ को ‘‘कांग्रेस’’ ‘‘भाजपा’’ द्वारा बिना शर्त समर्थन देने के संकेत दिये है, इसके बाद भी ‘‘आम आदमी पार्टी’’ का सरकार बनाने से इनकार करना काफी सवाल पैदा करता है।
खुद के मुद्दों से भटकती ‘‘आप’’ः
‘‘आम आदमी पार्टी’’ का जन्म अन्ना आंदोलन की दिशा मोड़कर हुआ है। इसके मूल में भ्रष्टाचार, कुशासन और महंगाई जैसे आम मुद्दे है। ‘‘आप’’ नेताओं का कहना है कि हमारा किसी भी राजनैतिक पार्टी या नेताओं से बैर नहीं है, हम मुद्दो के आधार पर जनता की लड़ाई लड़ रहे है। उनका स्पष्ट कहना है कि वे सिस्टम को खतम नहीं दुरूस्त करना चाहते है। ऐसे में उन्हे आज जब सिस्टम में शामिल होकर सिस्टम को सुधारने का मौका मिल रहा है, तो वे इससे भाग क्यू रहे है? यह सबसे बड़ा प्रश्न है। अन्ना हजारे के आंदोलन की दिशा बदलकर राजनीति में उतरते हुए उन्होने कहा था कि सिस्टम में शामिल होकर ही सिस्टम को सुधारा जा सकता है। आज जनता ही नहीं उनकी धुर विरोधी पार्टियां भी उन्हे यह मौका देना चाहती है, फिर क्यूं नहीं सिस्टम में शामिल होकर इसे दुरूस्त करते? भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टिया बिना शर्त समर्थन देने को तैयार है। ऐसे में मुख्यमंत्री बनकर वे क्यू नहीं समय पर लोकपाल बिल पास करके सभी भ्रष्ट मंत्रियों और विधायकों को जेल में डाल देते? वे दल जिन्हे केजरीवाल सबसे भष्ट्र और कुशासन देने वाले दल के रूप में परिभाषित करते है। वही जब केजरीलवाल को पूरी ताकत और सत्ता दे रहे है, ताकि इन दलो के अन्दर के भी भ्रष्टाचार और कुशासन देने वाले नेताओं खतम किया जा सके। ऐसे में केजरीवाल को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए सरकार बनानी चाहिए। केजरीवाल जिस कीचड़ को साफ करना चाहते है उसमें उतरना भी नहीं चाहते और कीचड़ में उतरे बिना उसे साफ नहीं किया जा सकता है।
हम ईमानदारी बाकी सब बेईमान की सोचः
सभी पार्टियों और नेताओं को एक ही चस्में से देखने वाले केजरीवाल को अपनी स्वयं की पार्टी को छोड़कर सभी पार्टियां और राजनेता भ्रष्टाचारी और चोर नजर आते है। अब वहीं दूसरी पार्टियों के नेताओं का आव्हाहन कर रहे है कि वे अपनी-अपनी पार्टियां छोड़कर उनकी पार्टी में शामिल हो जाए। ऐसे में वे पता कैसे केरेंगे की जो नेता खुद की पार्टी छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो रहे है। वो भ्रष्टाचारी नहीं है, वो पूर्णतः ईमानदार है?
जनमत को नकारती आम आदमी पार्टीः
चुनाव शुरू होने से पहले ही साफ हो चुका था की इस चुनाव में भ्रष्टाचार, कुशासन, ईमानदारी और महंगाई के मुद्दे पर चुनाव लड़ा जाना है। ऐसे में 32 सीटों और 33 प्रतिशत वोट शेयर के साथ भाजपा जनता की पहली पसंद बनी हुई है। जनता ने ‘‘आप’’ के साथ ही ‘‘भाजपा’’ को बड़ा समर्थन देकर भाजपा 31 विधायको को ईमानदारी और भ्रष्टाचार मुक्त होने का सर्टिफिकेट दिया है। जनता ने कांग्रेस के भी 8 विधायकों को जनहितैशाी कार्य करने के योग्य माना है और कांग्रेस को भी 25 फीसदी लोगों ने योग्य माना। ऐसे में केजरीवाल का भाजपा और कांग्रेस की इस जीत को मानने से इनकार करना और जनता द्वारा चुनने के बावजूद भाजपा और कांग्रेस को भ्रष्टाचारी कहना क्या यह भाजपा के समर्थक 33 प्रतिशत मतदाताओं और कांग्रेस के 25 प्रतिशत मतदाताओं का सीधा अपमान नहीं है? जिन्होने अपना मत कांग्रेस और भाजपा के चुनिंदा विधायको को दिया है। क्या केजरीवाल यह जताना चाहते है कि दिल्ली में उनके 30 फिसदी को छोड़कर वे 58 प्रतिशत मतदाता जिन्होने भाजपा और कांग्रेस को समर्थन दिया है वे भी भ्रष्ट है? या यह कि वे मतदाता भ्रष्टाचारी और कुशासन युक्त शासन पसंद करते है?
जनता को जिम्मेदारी, और जवाबदेही की आशः
आम आदमी पार्टी ‘‘एकला चलों’’ और ‘‘हम ईमानदार बाकी सब बेईमान’’ वाली जो सोच लेकर चल रही है, वह देशहित में कतई नजर नहीं आती। उनका तानाशाही, जिद्दी स्वभाव और आक्रामक बातचीत का तरीका निश्चित ही युवाओं को रास आ रहा हैं और इससे उन्हे फायदा भी मिल रहा है। परन्तु जब जनता इनकी मूल भावना के बारे में विचार करेगी तो निश्चित ही ‘‘आम आदमी पार्टी’’ की महत्वाकांक्षाओ पर प्रश्न उठेगा जिसका जवाब उन्हे देना ही होगा। आम आदमीं पार्टी को जनता के विश्वास और सम्मान का मान रखते हुए अपनी ही नहीं बल्कि देश की सभी पार्टियों के अंतर निहित भ्रष्टाचार और बेईमानी को खतम करने का बीड़ा उठाना चाहिए। दिल्ली की जनता को एक ईमानदार और जनहितैशी सरकार की आवश्यकता है और यह मौका आज केजरीवाल को मिल रहा है उन्हे इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिए।
मैं आपको एक प्रश्न के साथ छोड़ जाना चाहता हूं कि केजरीवाल को मुख्यमंत्री क्यू नहीं बनना चाहिए? आपके स्वतंत्र विचार आमंत्रित है।
आम इस समय खास बना हुआ है और जब कोई आम से खास बनता है तो स्वाभाविक रूप से खास जैसा व्यवहार उसमें आ ही जाता है ....
बहुत बढ़िया विश्लेषण ...