कृष्णा बारस्करः
नारी का मजबूत पक्षः
‘नारी’ वह ‘शक्ति’ है जिसके एक स्वरूप ‘‘आदिशक्ति’’ को ब्रम्हाण्ड की जननी माना जाता है। हमारे देश में ‘‘नारी’’ को देवीतुल्य पूज्यनीय स्थान दिया जाता है, जिसे घर की लक्ष्मीं माना जाता है। हो भी क्यों नहीं महिलाओं ने मानव विकास के हर क्षेत्र में चाहे तकनीकि, वैज्ञानीकि, राजनीति, उद्योग, समाज, खेल या फिर मनोरंजन हर तरफ भारतीय महिलाओं ने अपना लोहा मनवाया है। आज नारीजाति ‘पुरूषों’ की सबसे बड़ी प्रतिष्पर्धी है, और कुछ मामलों में वह पुरूषों से भी आगे नजर आती है।
नारी का कमजोर पक्षः
यह तो नारी का पहला पक्ष था जो पूर्णतः सुदृण और सक्षम नजर आता है। वहीं थोड़ा गौर से देखें तो ‘नारी’ का दूसरा पक्ष नजर आयेगा। ‘एक अबला’, ‘असहाय’, ‘कमजोर’ चेहरा जिसे हर कदम पर सहायता की जरूरत पड़ती है। उन्हे पुरूषों से प्रतियोगिता करने के लिए योग्यता के बजाय ‘आरक्षण’ की जरूरत पड़ती है, उन्हे रात्री में घर से निकलने के लिए पुलिस सुरक्षा की आवश्यकता महसूस होती है, उनके प्रति बलात्कार रोकने के लिए कड़े कानून की आवश्यकता नजर आती है। आज वे घर से निकलने मंे भी असहज महसूस करती है।
नारी का इतिहासः
हम नारी को बराबरी का दर्जा देने की बात करते है, ऐसे में स्पष्ट प्रश्न यही उठता है की ‘शक्तिस्वरूपा’ मानी जाने वाली नारी इतनी कमजोर क्यूं है जो उसे इतनी सारी बैसाखियों की आवश्यकता आन पड़ी? हमारा इतिहास तो यह नहीं कहता। इतिहास तो हमें उस आदिशक्ति से परिचय कराता है जिसने ब्रम्हा, विष्णु, महेश को उत्पन्न कर और इस श्रष्टि की स्थापना की। कालस्वरूप महॉकाली, राक्षस मर्दनी मॉ दुर्गा से परिचय कराता है। बहुत पीछे न भी जाये तो निकट इतिहास में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई जिनके, स्वतंत्रता आंदोलन के जनक के रूप में और सौर्य गाथाओं से आज भी हम पुरूष समाज प्रेरणा लेते है। मालवा की शासक एवं राजमाता रहीं न्यायप्रिय देवी अहिल्याबाई। भारत की लौह महिला इंदिरा गाँधी जिन्होने पाक को धूल चटा दी थी और बांग्लादेश देश को उत्पन्न किया। डॉ. किरण बेदी जो अपने अदम्य साहस और संघर्ष के बल पर देश की प्रथम महिला आईपीएस बनी। ऐसी न जाने कितनी ही वीरांगनाएं देश ने देखी, पर अब ऐसी खबरे पड़ने सुनने को नहीं मिलती। तो क्या यह मान लिया जाये की अब देश मंे ‘वीरांगनाओं’ ने जनमना बंद कर दिया है?
नारियों प्रति अपराधः
हम आये दिन टीवी पर समाचार चैनलो में अखबारों मेें, बहस में देखते है पूरे देश में सैकड़ों की संख्या में बलात्कार और क्षेड़छाड़ के मामले सामने आते रहते है। कुछ मामलों में खूब हंगामा भी होता है, अपराधी को सजा भी मिलती है। परन्तु इससे न तो अपराध रूकते है और न ही अपराधी सुधर रहे है। अगर हम इतिहास में झांके तो अयोध्या की महारानी सीता जिसे लंकाधीपति शक्तिमान ‘‘रावण’’ ने अनैतिक मंशा से अगवा कर लिया था, परन्तु वह नारी इतनी मजबूत थी की ब्रम्हाण्ड का सर्वशक्तिमान ‘‘रावण’’ भी उसे छू सका। अंत में वहीं प्रश्न सामने आ जाता है कि आज की ‘‘नारी’’ इतनी कमजोर क्यों है कि उसके साथ कोई भी अपराधी अनैतिक कृत्य कर लेता है।
निवारणः
किसी अपराधी से हम पूछ ले कि क्या वह कभी नारी के स्वरूप महाकाली, मॉ दुर्गा, मॉता सीता, झॉसी की रानी लक्ष्मी बाई या डॉ. किरण बेदी की तरफ नजर उठाने की हिम्मत भी कर सकता है? वो जानता है कि उसके हाथ-पैर टूट जायेंगें। सब जानते है कि मुकाबला हमेशा बराबरी वालों से होता है, जब हम महिलाओं के समान अधिकारों की बात करते है तो उस से पहले हमें परस्पर समान योग्यता की बात करनी होगी। हर जगह आरक्षण, पुलिस, समाज आपकी मदद करने नहीं आ सकता स्वयंरक्षा के लिए लक्ष्मी बाई बनना होगा।
‘लक्ष्मी बाई’ या डॉ. किरण बेदी पैदा नहीं होती बनाई जाती है, योग्यता पाने के लिए कोई मशहूर महिला ही बनना जरूरी नहीं है। यह जीवनचर्या में कुछ परिवर्तन करके प्राप्त की जा सकती है इसके लिए परिवारों में युवतियों की परवरिस में थोड़े से बदलाव की जरूरत है, वहीं सरकार को चाहिए कि ‘‘शिक्षा’’ में ‘‘शारिरिक शिक्षा’’ जोड़े ताकि लड़किया ‘‘सेल्फ डिफेंस’’ सीखकर स्वयं की रक्षा स्वयं सके।
अंततः
हमारे देश में एक परम्परा है कि जिस प्रकार ‘‘आरक्षित वर्गाे’’ की कमिंया कोई भी नहीं गिना सकता उसी प्रकार महिलाओं पर भी कोई उंगली नहीं उठा सकता। अगर कोई महिलाओं के धीरे-धीरे छोटे होते जा रहे कपड़ों पर कुछ कह दे तो हंगामा खड़ा हो जाता है। कोई महिलाओं को बलात्कार रोकने के लिए अच्छी सलाह दे-दे तो बड़ा संकट आ जाता है। आज केवल और केवल महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध में शामिल अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की बात होती है। अपराध के मूल पर बहस करने को कोई तैयार नहीं है। अब आवश्यकता आन पड़ी है एक नये विषय पर बहस करने की ‘‘महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों और हिंसा के मूल कारण’’।
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(व्यस्तता के कारण बड़ी जल्दबाजी में लिखा है कुछ करेक्शन और कुछ मुद्दे जरूर छूट गये होंगे, कुछ बाते अतिरिक्त भी हो सकती है। उन्हे आगे फुरसद से सुधारने का प्रयास करूंगा। जय रामजी की।)
शेर को यदि पिंजरे में रखा जाये तो उसे अपनी शक्ति का भान नहीं हो पाता...यही स्थिति कमोबेश नारी के लिए बना दी गयी है...हमारा पूरा समाज दूसरों पर राज करने को उद्दत दिखाई देता है...इसीलिए दबंगई को सराहा जा रहा है...न्याय-व्यवस्था यदि कायम हो तो सृष्टि की आधी रचना अपनी सृजनशीलता को सहजता से विकसित कर सकती है...
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