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रामलीला ग्राउन्ड पर हुई सभा की विफलता अन्ना अथवा ममता की ?

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बच्चे जब हिन्दी स्कूल में पढते है तब 'अ' आ' 'इ' 'ई' 'उ' 'ऊ' का पाठ पढाया जाता है। 'अ' के साथ 'आ' ही होता है। 'अ' और 'म' नही होता है। 'अन्ना' और 'ममता' की रैली की उस असफलता का राज इसी में छुपा है। 'अ' और 'म' का कोई मेल ही नही था। बेमेल  कार्य करने का प्रयास किया गया और इसलिए उसकी असफलता तो निश्चित ही थी। यदि 'अ' का 'आ' से गठबंधन किया होता तो उसमे सफलता निहित थी, क्यांेकि वही सही उच्चारण था।'अ' का 'आ' से गठबंधन का अर्थ 'अन्ना' का 'अरविंद' के साथ सहयोग होकर यदि रामलीला मैदान पर सभा हुई होती तो दृश्य निश्चित ही दूसरा होता। तीन वर्ष पूर्व अन्ना जब रामलीला मैदान पर  अनशन पर बैठे थे, तब केजरीवाल उनसे जुडे थे, और केजरीवाल ने अपने मीडिया मेनेजमंेट के द्वारा उक्त ऐतिहासिक आंदोलन को सफलता दिलाई थी। लेकिन आज परिस्थितियां बदली हुई है। यदि आज अन्ना 'ममता' के बदले अरविंद के साथ होते तो निश्चित रूप से यदि उक्त सभा केा पहले जैसी सफलता नही भी मिली होती तो भी इस तरह की असफलता भी नही मिलती । अतः इस बात से यह सिद्ध होता है कि अन्ना और अरविंद केजरीवाल की जोड़ी जो एक प्राकृतिक जोड़ी थी कही ज्यादा सफल रहती।
        बात अन्ना-ममता की है। यह अन्ना की ममता के प्रति ममता थी या ममता का अन्ना के प्रति सम्मान। हमारी संस्कृति में बुजर्ग को ''अन्ना'' कहा जाता है जिस कारण बुजुर्ग के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है। दोनो ने संयुक्त रूप से साझेदारी करने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रही। दोनो ने एक दूसरे पर आरोप लगाया। अन्ना ने कहा वह सभा ममता ने बुलाई  थी। वही ममता ने पलटवार कर यह कहा उक्त सभा अन्ना ने बुलाई थी। मै तो सब काम छोडकर बंगाल से सभा मे अपने वादे को निभाने आई थी। तथ्यो के परिशीलन से यह स्पष्ट है कि इस सभा का आयेाजन ममता द्वारा किया गया था। आवश्यक प्रशासनिक अनुमति ममता की पार्टी द्वारा ली गई थी क्योकि वे बंगाल से बाहर जाकर राष्ट्रव्यापी फैलाव  के खातिर अन्ना के प्रभाव का उपयोग करना चाहती थी। लेकिन सभा की पूरी तरह से असफलता ने दोनेा सत्यवादी नेताओ को असत्य कहने के लिए मजबूर कर दिया जैसा कि सभा मे नही आने पर अन्ना ने तीन तरह की बाते कही। मीटिंग मैने नही बुलाई, मेरे पत्रकार साथी संतोष भारतीय ने झूटा कहा, मै बीमार होने के कारण मीटिंग मे नही गया। वैसे यह सत्य भी है दो ($) तो ($) ही होते ही है लेकिन दो (-) (-) भी प्लस ($) होते है लेकिन यहां पर यहां एकदम विपरीत हो गई यहां देा ($) ($) माईनस (-) मे बदल गये। वाह री राजनीति, कहां क्या सिद्धांत लग जावे,कौन सा फार्मूला लागू हो जाय कही बीज गणित तो कही फिजिक्स। एक दम विपरीत परिस्थिति। अन्ना व ममता दोनो का अपने  अस्तित्व पर भाग्य की विडबंना ($) ($) पास आकर भी अलगाव हो गया व चुम्बक के देा समान धु्रव दूर भाग गये वैसे ही जैसे विद्युत के दो समान धु्रवो के पास आते ही अंधकार हो जाता है, प्यूज उड़ जाने के कारण।
        उपरोक्त परिस्थिति से यह बात स्पष्ट है कि आज भी अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल का गठजोड हो जाये और उसके साथ ममता जुड जाये (ए$ए$एच  (हजारे) ़$ के (केजरीवाल) $ एम (ममता) ) वैसे भी ।।ड (आम) में तीनो शब्द जुड़े हुये है तो शायद यह श्रंखला जेड तक पूरी होकर देश की दशा को बदल सकती है, आगे ला सकती है।
                      (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)
 
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