राजीव खण्डेलवाल:
हाल ही में जनता के भारी जनसमर्थन से चुनकर आई मोदी सरकार का द्वितीय संसदीय सत्र के साथ ही परिक्षाओं का द्वौर शुरू हुआ। लोकसभा के पटल पर मोदी सरकार का प्रथम रेलवे बजट रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने पेश किया उसके बाद वित्तीय बजट वित्त मंत्री अरूण जेटली द्वारा रखा गया। मोदी सरकार के बजट को अधिकांश लोग, अर्थशास्त्री, शेयर बाजार के एक्सपर्ट, उद्योगपति सामान्य रूप से जनहितैसी मान रहे है, तो कुछ लोग इसे मिलाजुला मानकर आलो
तारीफ एवं आलोचना एक अलग मुद्दा है, परन्तु देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी एवं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की आलोचना को देखा जाय तो वह आश्चर्यचकित करती है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने इस बजट की विरोधाभाषी यह कहकर आलोचना की कि ’’बजट में कुछ भी नया नहीं है, उन्होने हमारी ही योजनाओं को आगे बढ़ाया है। सोशल सेक्टर के लिए बहुत कम दिया है‘‘। वहीं कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने यह कहकर अपनी अध्यक्ष के बयान को बढ़ाते हुए कहा ’’बजट अर्थव्यवस्था को गति देने में सक्षम नहीं है’’। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी हास्यास्पद आलोचना में कहा कि ’’खोदा पहाड़, निकला चूहा.. मनरेगा, एयरपोर्ट्स, एससी-एसटी, कृषि विकास योजना, नेशनल वॉटर प्लान..सब कांग्रेस ने शुरू किया था. कोई आधारभूत बदलाव नहीं है बजट में, कह सकते हैं कांग्रेस के बजट का विस्तार है’’, वे स्वयं अपने ही मुख से अपनी पार्टी के शासनकाल की आलोचना कर बैठते है। वहीं लोकसभा में कांग्रेस के नेताप्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि ‘‘गरीबो के बजाय उद्योपतियों को ध्यान में रखकर बजट बनाया गया है।’’
यदि कांग्रेस द्वारा की जा रही आलोचना पर विचार किया जाये तो यह आलोचना न तो तार्किक ही नजर आती है और न ही वास्तविकता के धरातल को ही छूती हुई नजर आती है। कांग्रेस जब यह कहती है कि इस बजट में कुछ भी नया नहीं है, सबकुछ पुराना है, तब तो निश्चित ही कांग्रेस को इसकी तारीफ करनी चाहिए कांग्रेस हमेशा अपनी पिछली मनमोहन सरकार की नीतियों को जनहितैषी मानते हुए उनका समर्थन करती रही है। इसलिए यदि अरूण जेटली ने कांग्रेस की उक्त पुरानी नीतियों को आगे बढ़ाया है तो फिर उसका खुले हृदय से वित्तमंत्री की पीठ थपथपाते हुए ताली बजाकर स्वागत कांग्रेस द्वारा क्यो नहीं किया जा रहा है? सिर्फ विपक्ष के नाते बजट की आलोचना करना कहां तक उचित है? आलोचना ही करनी है तो उन मुद्दो पर आलोचना की जानी चाहिए जो जनता के हित में नितांत आवश्यक थे लेकिन इस बजट में उनको छुआ तक नहीं गया लेकिन शायद ऐसी स्थिति यह नहीं।
बजट की आलोचना करने से पूर्व यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है कि इस समय देश की आर्थिक परिस्थियां कितनी कठिन है। आज वैश्विक आर्थिक परिस्थियों सहित इराक संकट विकराल रूप लिए सामने खड़ा है, जिनका निश्चित ही बजट पर असर पड़ना स्वाभाविक है। यहां इस तथ्य को स्वीकार किया जाना चाहिए कि कोई भी वीजन, डाक्युमेंट अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होता, इसलिए उसमें स्वस्थ आलोचना की गुंजाइस हमेंशा रहती है। लेकिन शायद कांग्रेस के पास ऐसा कोई तार्किक मुद्दा या आलोचनात्मक वीजन नहीं है। कह सकते है कि कांग्रेस विपक्ष का रोल निभाने में अनुभवहीन है। इसलिए लम्बे समय से सत्ता का सुख भोगने वाली कांग्रेस विपक्ष का रोल भी सही तरीके से निभा नहीं पा रही है। शायद उसे विपक्ष के नेता पद का इंतजार है। तभी वह विपक्ष का रोल तार्किक व मुद्दो पर निभा पायेगी।
।। जय हिंद।।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)
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