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आखिर “दिल्ली” की जनता के बीच कौन है ‘‘भगोडा’’?

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                        इस समय दिल्ली प्रदेश में सरकार बनने की संभावनाएं से लेकर राष्ट्रपति शासन बढाने/ ंविधानसभा भंग करने की चर्चाए चल रही है। लेकिन इन सबके बीच जो महत्वपूर्ण आरोप-प्रत्यारोप लगाये जा रहे है वह ''भगोडा'' को लेकर है। आखिर, इस दिल्ली की जनता का ''भगोड़ा'' कौन ? इसके लिए यह जानना होगा कि ''भगोड़ा'' किसे कहा जाता है।
''भगोडा'' का सामान्य अर्थ है, व्यक्ति का अपनी जिम्मेदारी से भागना। ''जिम्मेदारी'' भी कई प्रकार की हो सकती है। स्वस्फुरित थोपी गई, जबरदस्ती या ओढी हुई जिम्मेदारी अथवा किसी के द्वारा दी गई जिम्मेदारी को स्वीकार करना, या संवैधानिक जिम्मेदारी। उपरोक्त परिपेक्ष में क्या केजरीवाल ''भगोड़ा'' जैसा उन्हे लगातार विभिन्न राजनैतिक पार्टीयो से लेकर मीडिया द्वारा न केवल आरोपित किया जा रहा है, बल्कि उनके लगातार आरोपो के दबाव से शायद दब कर 'आप' केजरीवाल का इस संबंध में दिया गया स्पष्टीकरण भी अप्रत्यक्ष रूप से इसे गल्ती मान रहा है।
                        दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 32 सीट पाकर भाजपा सबसे बडे दल बना। दूसरे नम्बर का दल प्रथम बार चुनाव में उतरी 'आप' पार्टी को 28 सीट मिली। देश की सबसे पुरानी पार्टी 'कॅाग्रेस' को मात्र 8 सीटे प्राप्त हुई। लोकतंत्र में जब लोकसभा/विधान सभा के आम चुनावों में किसी पार्टी या गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है, तब सबसे बड़ी पार्टी को ही सामान्यतया सरकार बनाने का अधिकार होता है व ऐसी परिपाटी भी है। राष्ट्रपति/ राज्यपाल भी सामान्यतः इसी आधार पर सरकार बनाने के लिये निमंत्रित करते हैं। यह पहला मौका नहीं है जब विधान सभा या लोक सभा चुनाव में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहींे मिला। इसके पूर्व भी लोंकसभा व विधानसभाओं के आम चुनावो में पूर्ण बहुमत प्राप्त न होने पर सबसे बडे दल के नेता को सरकार बनाने के लिए आमत्रित किया गया था। यद्यपि पूर्व में लोकसभा में सबसे बडे दल के नेता के रूप में आमंत्रित नेता ने विनम्रता पूर्वक निमंत्रण अस्वीकार कर दिया था। लेकिन विधानसभा मे ऐसे ''निमंत्रण'' कोे कई बार स्वीकार किया जाकर सरकार बनाई गई। कुछ मामलो में वह बहुमत सिघ्द कर पायी लेकिन कुछ मामलो मे नही कर पाई और अंततः इस्तीफे देने पड़े।                         जब सबसे बडी पार्टी होने के बावजूद भाजपा ने राज्यपाल के निमत्रण को ठुकराया और सरकार नहीं बनाई तो वह 'भगोडा' नही कहलाई। दूसरी बडी पार्टी 'आप' जिसने यह कहकर कि न समर्थन देगे न समर्थन मांगेगे के आधार पर, एक तरफा, बिना मंागे, बिना शर्त, कांग्रेस का समर्थन प्राप्त हुआ व भाजपा ने भी मुददो के आधार पर, सशर्त समर्थन देने के वायदे के बाद, तीन दिन तक ना नुकर के बाद 18 मुददा्े पर आधारित सरकार का गठन कर, उन मुददो के लिये अन्य पार्टियो से समर्थन मांगा गया। 'आप' पार्टी को जनता द्वारा बहुमत न देने के बावजूद सबसे बडी पार्टी न होने के बाद भी मुददो पर बनाई गई सरकार का मुददे पर समर्थन न मिलने पर "आप''का सरकार का इस्तीफा देना कैसे भगोड़ा कहलायेगा, प्रश्न यह है। इस देश मे सरकार की कालावधि पूर्ण करने के पूर्व सरकार का यह प्रथम इस्तीफा नहीं है। इसके पूर्व भी कई प्रदेशो में इस तरह की घटनाये घटित होकर बीच अवधि मे ही कई सरकारो ने इस्तीफे दिये है। लेकिन किसी भी इस्तीफा देने वाली सरकार को इसके पूर्व भगोड़ा नहीं कहा गया। तब फिर 'आप' के केजरीवाल को ही क्यो भगोडा कहा जाये? यदि जिम्मेदारी सेे भागना भगोडा है, तो 'आप' को जनता ने बहुमत न देकर जिम्मेदारी नही सौपी थी। उन्हेाने मुददे के संमर्थन के आधार पर जिम्मेदारी स्वयं स्वीकार की थी। सिद्धांत के खातिर मुददे पर अडे़ रहने के कारण, समर्थन वापसी के कारण उन्हे इस्तीफा देना पडा। भाजपा को किसी ने 'भगोडा' नही कहा और न ही काग्रेस को जिसनें लोकपाल बिल के मुददे पर समर्थन वापसी की धमकी देकर खिलाफ वोट डालकर इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया, उसे भी भगोड़ा नहींे कहा गया।                        अतः में मैं एक कहानी का उदाहरण देकर 'भगोड़ा' तय करने का कार्य जनता के विवेक पर छोडता हूॅ।दिल्ली की यमुना नदी के तट के दूसरे ओर कुछ नागरिक जो कई दिनो से बाढ़ के कारण भूखे, बीमार होकर असहाय थे। दिल्ली के नागरिको ने आव्हान किया कि नदी के उस पार जाकर उन असहाय व्यक्ति की सेवा सुश्रुसा की जावे। विभिन्न राजनैतिंक पार्टिया 'भाजपा' 'आप' 'कांग्रेस' व अन्य पार्टिया व उनके नेतागण सिर्फ जनता की सेवा के नाम पर राजनीति चमकाते रहते है ऐसा दावा हमेशा उनका रहता है। जनता के आहवान पर ये सेवा करने वाले राजनेता लोग जो नदी के इस छोर पर खडे हुए थे, दूसरे छोर के असहाय व्यक्तियो को देख रहे थे, को तट की दूसरी उस ओर जाकर उन्हेे निकालने का निर्णय राजनेताओ द्वारा लिया गया। लेकिन तभी तेजी से बाढ़ आ गई जिसका ''विकराल रूप'' देखकर सर्वप्रथम भाजपा' के लोग जो संख्या में बहुसंख्यक थे द्वारा आगे न बढने की मजबूरी दर्शित करते हुए वे सब वापिस लौट गये। इसी बीच 'कंाग्रेस' व 'आप' ने एक दूसरे की ओर देखा। काग्रेस ने यह मेसेज दिया कि उसे 'नाव' बनाकर नदी की बाढ़ को पार कर किया जावे। क्योकि वह लोकतंत्र की सबसे बडी सेवाभावी पार्टी अपने को मानती है। चंूकि 'आप' पर सबसे ज्यादा नागरिक सेवा का नया भूत सवार था अतः उन्होने कांग्रेस की नाव बनाकर नदी पार करने का प्रयास किया। लेकिन जेैसे ही नाव आगे बडी कंाग्रेस ने अपनी आदत के मुताबिक आरोपो की झडी लगा दी, जिसके थपेडो से नाव को नुकसान पहुंचकर उसमे छेद होने लगे। तब नाव को डूबने की आशंका से 'आप' को लगा कि वह काग्रेस के साथ वे स्वयं भी डूब जायेगे। तब उन्होने वापिस तट पर आने का निर्णय लिया और इस प्रकार सरकार का इस्तीफा हो गया।
आगे आपका निर्णय है!
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)
 
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