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न्याय की अवधारणा! सबको समान न्याय ! कठोर सजा! अपराधी प्रवृत्ति में कमी ?

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राजीव खण्डेलवाल :
सलमान खान के हिट एंड़ रन मामले में आये निर्णय के झरोखे से यदि न्याय की उक्त अवधारणा को देखा जाय तो लगभग 13 साल बाद एक बिग सेलिब्रिटी सलमान खान का निर्णय आ ही गया जो न्याय की इस मूलभूत अवधारणा को प्राथमिक रूप से सही सिद्ध करता है कि (जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड) न्याय में देरी होना अन्याय तुल्य है।  

सामान्य रूप से जब किसी रोड़ दुर्घटना में कोई व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है तो चालक पर लापरवाही का प्रकरण धारा 304 अ के अन्तर्गत दर्ज कर आरोपी को जमानत पर छोड़ दिया जाता है जिसमें अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है। धारा 304 (2) में अपराध दर्ज होने पर अपराध गैर जमानती होकर उसमें दस साल तक की सजा का प्रावधान है। तदनुसार उक्त पुराने प्रकरण में सलमान खान को दी गई सजा यदि बहुत कठोर नहीं है तो कम भी नहीं कही जा सकती है। भारतीय आपराधिक जूरी एडेन्स का एक आधार यह भी है कि कड़ी सजा होने के प्रावधान से अपराधी डरंे जिससे अपराध में कमी आयेगी। क्या उक्त सिंद्धान्त केे लक्षण सलमान खान के केस के निर्णय में दिख रहे है? 

जब से सलमान खान को सजा मिली है तब से इलेक्ट्रानिक मीडिया व प्रिन्ट मीडिया ने उन्हें लगातार सुर्खियों में रखकर अपनी न केवल टीआरपी बढाने का प्रयास किया बल्कि जाने अनजाने में घोषित अपराधी की टीआरपी भी बढाई है। मीडिया चेनल्स यदि निर्णय के पूर्व व बाद के सलमान के चहेतों की तुलना करें तो पाएॅगे कि निर्णय के बाद सलमान के चहेते बहुत ज्यादा बढ़ गए है।  अर्थात् कठोर सजा होने के बावजूद समाज ,सेलेब्रिटीज ,राजनीतिज्ञ फिल्मी क्षेत्रों से लेकर प्रश्ंासक हर कोई के दिल में सलमान खान के प्रति अपराध बोध या अपराधी होने के भाव आये हे ऐसा लगता नहीं है। पं्रशसक सहित सभी क्षेत्रों के व्यक्तियों ने सलमान की लगभग प्रशंसा ही की है आलोचना नहीं। अपितु इन सभी के मन में सलमान के प्रति पीड़ित दया भाव ही ज्यादा झलकता है। इस अपराध के संबंध में न तो उन्हे सीख दी गई, न ही ,उन्हें कोसा गया, न ही उनमें स्वयं में कोई सीख लेने की तत्परता ही दिखी जैसा कि सजा देने के प्रभाव से उत्पन्न होना चाहिए था। हमारी भारतीय संस्कृति में जब कोई हमारा परिचित व्यक्ति स्वर्गवासी हो जाता है तो उसकी अवगुणों की आलोचना करने के बजाय उसके सदगुणों की प्रशंसा ही करते हैं। सलमान के संबंध में भी शायद इसी सास्ंकृतिक मनोदशा को अपनाया गया है। यदि यह सही है तो न्याय प्रक्रिया की इस अवधारणा पर पुर्नविचार करना आवश्यक होगा कि कठोर सजा से अपराधिक प्रवृत्ति को कैसे रोका जा सकता है। 

हमारे देश में कानून का मूलमंत्र ही यह है कि कानून सबके लिए एक ही है व बराबर है। चूंकि सलमान खान एक सेलेब्रिटी है तो यह भी देखना होगा कि उसके केस में क्या कानून के इस आधार का पालन हो पाया है। सेलेब्रिटी होने से लाभ व नुकसान दोनो होते है। उपरोक्त निर्णय पर यदि इस आधार पर विचार किया जाय तो सेलेब्रेटी होने के कारण सलमान खान की सजा कुछ

कठोर लगती है जैसा कि सलमान खान के डिफेन्स वकील ने दो निर्णयों (परेरा व नन्दा केस ) का उदाहरण देकर जताने का प्रयास किया है। दूसरी ओर सेलेब्रिटी होने से उन्हें यह फायदा भी मिला कि उसी दिन उनको अंतरिम जमानत दे दी गई जहॉ न्यायालय देर शाम तक ही बैठी रही जिसमें सामान्यतया दो चार दिन लग जाते है तथा सजायाप्ता अपराधी को तुरन्त जेल जाना पड़ता है। सलमान पर दिया गया निर्णय न्याय प्रणाली को यह अवसर प्रदान करता है कि उसको हम और ज्यादा जनहितैषी व सुलभ तथा शीघ्र प्राप्य बनाने के लिये क्या प्रयास कर सकते है। इस विषय पर समस्त संबधित आवश्यक पक्षों को गहनता से विचार करना चाहिए। 
                               (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)   
 
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