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महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा और उपेक्षा: भारतीय कानूनों की भूमिका और संरक्षण

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भारतीय कानून वैवाहिक दुर्व्यवहार और उपेक्षा के मुद्दों को कई कानूनी प्रावधानों के माध्यम से संबोधित करता है, जिनका उद्देश्य घरेलू हिंसा, दुर्व्यवहार और उपेक्षा के शिकार व्यक्तियों, विशेष रूप से महिलाओं, को सुरक्षा प्रदान करना है। इस लेख में हम इन प्रावधानों का गहन विश्लेषण करेंगे और संबंधित कानूनी धाराओं और अधिनियमों का उल्लेख करेंगे जो इन मामलों में राहत और सुरक्षा प्रदान करते हैं।

1. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 - PWDVA)

इस अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करना है, जिसमें शारीरिक, मानसिक, यौन, मौखिक और आर्थिक शोषण शामिल हैं। यह अधिनियम महिलाओं को उनके दुर्व्यवहार करने वाले पति या रिश्तेदारों के खिलाफ न्यायिक राहत दिलाने के लिए कानूनी प्रक्रिया प्रदान करता है।

  • अधिकार और सुरक्षा उपाय: महिलाओं को सुरक्षा आदेश, निवास आदेश, मौद्रिक राहत, मुआवज़ा आदेश और हिरासत आदेश प्राप्त करने का अधिकार है।
  • सुरक्षा अधिकारी और सेवा प्रदाता: PWDVA के तहत, पीड़िता की मदद के लिए सुरक्षा अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं की नियुक्ति की जाती है, जो महिला को शिकायत दर्ज करने और आवश्यक मदद दिलाने में सहायता करते हैं।
  • धारा 3 की परिभाषा: PWDVA की धारा 3 के तहत घरेलू हिंसा की परिभाषा विस्तृत है, जो यह सुनिश्चित करती है कि महिलाओं को शारीरिक ही नहीं, बल्कि अन्य प्रकार के दुर्व्यवहारों के लिए भी न्याय मिल सके।

2. भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 85 और 86

कई महिलाएं अपने घर में भी सुरक्षित नहीं होतीं और पति या ससुराल वालों द्वारा मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान की जाती हैं।

  • BNS धारा 85: इसमें पति या उसके रिश्तेदार द्वारा महिला पर की गई क्रूरता पर कार्यवाही का प्रावधान है, जिसमें शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की क्रूरता शामिल है। IPC 498A में सुधार करके यह धारा लागू की गई है।
  • धारा 85 के अंतर्गत अपराध: इसमें शारीरिक उत्पीड़न, मानसिक उत्पीड़न, यौन शोषण, आर्थिक शोषण, सामाजिक बहिष्कार, जबरदस्ती घरेलू काम, संतान उत्पत्ति का दबाव, दहेज उत्पीड़न और अवैध तरीके से पत्नी को घर से निकालना शामिल है।
  • सजा का प्रावधान: दोषी पाए जाने पर 3 वर्ष तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।
  • शिकायत कैसे दर्ज करें: पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज कराकर घटना की पूरी जानकारी दें और सबूत व मेडिकल रिपोर्ट पुलिस को सौंपें।

3. दहेज निषेध अधिनियम, 1961 (Dowry Prohibition Act, 1961)

दहेज निषेध अधिनियम का उद्देश्य शादी के पहले और बाद में दहेज की मांग के खिलाफ महिलाओं को सुरक्षा देना है।

  • दहेज की परिभाषा: इस अधिनियम के तहत दहेज किसी भी संपत्ति, उपहार, या धनराशि के रूप में है, जो शादी के संबंध में मांग या दिया जाता है।
  • दंड का प्रावधान: अगर कोई व्यक्ति दहेज मांगता है या उसे देता है, तो उसे कारावास और जुर्माने की सजा हो सकती है।

4. भरण-पोषण कानून (Maintenance Law)

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का धारा 144 का सारांश:

धारा 144 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी, बच्चे या माता-पिता की देखभाल करने में असफल होता है, तो प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट इस स्थिति में आदेश दे सकते हैं कि वह व्यक्ति मासिक भत्ता प्रदान करे। यह भत्ता उस दर पर निर्धारित किया जाएगा जो मजिस्ट्रेट उचित समझेगा। मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित कर सकता है कि यदि किसी महिला का पति उसे पर्याप्त भरण-पोषण नहीं दे रहा है, तो उसकी देखभाल का खर्च उसके पिता से लिया जा सकता है।

  1. भत्ता का निर्धारण: मजिस्ट्रेट भरण-पोषण के लिए आदेश जारी कर सकते हैं, जो आदेश की तिथि से लागू होगा।
  2. आदेश का उल्लंघन: यदि कोई व्यक्ति आदेश का पालन नहीं करता है, तो मजिस्ट्रेट उसे दंडित कर सकते हैं, जिसमें एक महीने तक की जेल भी शामिल हो सकती है।
  3. पति का प्रस्ताव: यदि पति अपनी पत्नी को भरण-पोषण की पेशकश करता है लेकिन वह उसके साथ रहने से इनकार करती है, तो मजिस्ट्रेट उसके कारणों पर विचार कर सकता है।
  4. व्यभिचार की स्थिति: यदि पत्नी व्यभिचार कर रही है या बिना उचित कारण के पति के साथ रहने से इनकार कर रही है, तो उसे भत्ता प्राप्त नहीं होगा।
  5. आदेश का निरसन: यदि मजिस्ट्रेट को यह प्रमाणित होता है कि पत्नी व्यभिचार कर रही है या दोनों पक्ष आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं, तो आदेश को रद्द किया जा सकता है।

यह संक्षेप धारा 144 के तहत भरण-पोषण के अधिकारों और दायित्वों का विवरण प्रदान करता है।

5. पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 (Family Courts Act, 1984)

पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना का उद्देश्य वैवाहिक विवादों का त्वरित और संवेदनशील निपटान करना है।

  • कानूनी प्रक्रिया: पारिवारिक न्यायालयों में पति-पत्नी के बीच विवादों जैसे तलाक, भरण-पोषण, और हिरासत के मामलों की सुनवाई की जाती है।
  • सहायक वातावरण: यह न्यायालय एक मैत्रीपूर्ण वातावरण में विवादों का निपटारा करने का प्रयास करते हैं ताकि दोनों पक्षों के बीच समझौता हो सके।

6. कानूनी सहायता और समर्थन सेवाएं

भारत सरकार और कई गैर-सरकारी संगठन (NGOs) महिलाओं को कानूनी सहायता, परामर्श, और पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करते हैं।

  • निशुल्क कानूनी सहायता: राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW), राज्य महिला आयोग, और कानूनी सहायता प्राधिकरण (Legal Services Authority) जैसी संस्थाएँ निशुल्क कानूनी सेवाएँ प्रदान करती हैं।
  • महिलाओं की सुरक्षा के लिए हेल्पलाइन: महिलाओं के लिए कई हेल्पलाइन नंबर और सेवा केंद्र भी उपलब्ध हैं, जो उन्हें त्वरित सहायता और परामर्श प्रदान करते हैं।

भारतीय कानून का ढांचा वैवाहिक दुर्व्यवहार और उपेक्षा के पीड़ितों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा के लिए मजबूत है। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, BNS की धारा 85, दहेज निषेध अधिनियम, भरण-पोषण कानून, और पारिवारिक न्यायालय जैसे प्रावधान पीड़ितों को राहत और न्याय दिलाने में सहायक हैं। हालांकि, इन कानूनों के दुरुपयोग को रोकने और प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए सतर्कता और सुधार की आवश्यकता है। समाज में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की भावना को बढ़ावा देकर वैवाहिक संबंधों में समानता और समर्पण सुनिश्चित किया जा सकता है।

कृष्णा बारस्कर (अधिवक्ता) बैतूल

Email: krishnabaraskar@gmail.com

 
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