भारत, एक लोकतांत्रिक और संप्रभु राष्ट्र के रूप में, लंबे समय से आतंकवाद और अलगाववादी ताकतों का सामना कर रहा है। पाकिस्तान और कनाडा, दोनों ही इस संदर्भ में भारत के लिए गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। पाकिस्तान अपनी आतंकवाद समर्थित नीतियों के माध्यम से जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है, वहीं कनाडा में खालिस्तान समर्थकों का प्रभाव बढ़ रहा है, जो पंजाब में खालिस्तानी गतिविधियों को समर्थन दे रहे हैं। यह स्थिति अंतरराष्ट्रीय संबंधों में जटिलताओं को जन्म देती है और भारत की सुरक्षा एवं संप्रभुता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद
पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते हमेशा से ही विवादों और संघर्षों से भरे रहे हैं। खासतौर पर, जम्मू और कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान की सरकार और सेना की भूमिका पर भारत कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सवाल उठाता रहा है। भारत के द्वारा प्रस्तुत किए गए सबूतों में यह साफ दिखाया गया है कि पाकिस्तान अपनी धरती से आतंकवादी संगठनों को प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान की मदद से काम करते हैं। इसके अलावा, भारत के सुरक्षा बलों ने कश्मीर घाटी में आतंकवादी गतिविधियों के लिए सीमा पार से होने वाले घुसपैठ के सबूत भी जुटाए हैं।
कनाडा और खालिस्तान का मुद्दा
दूसरी ओर, कनाडा के साथ भारत के संबंध भी पिछले कुछ वर्षों में तनावपूर्ण रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों की बढ़ती संख्या और उनकी गतिविधियाँ। कनाडा के कुछ खालिस्तान समर्थक संगठन खुलकर भारत के खिलाफ बयान देते हैं और खालिस्तान की मांग को समर्थन देते हैं। वे भारत के पंजाब में अलगाववादी मानसिकता को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं।
यहां तक कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भी इस विषय पर नरमी दिखाई है, जो भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों में बाधा बन रही है। इस संदर्भ में, भारत का मत है कि यदि कनाडा खालिस्तान समर्थकों के साथ सहानुभूति रखता है, तो उसे अपने ही देश के भीतर से खालिस्तान के लिए एक हिस्सा प्रदान कर देना चाहिए, बजाय इसके कि भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाए जाएँ।
तथ्य:
क्षेत्रफल की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश: कनाडा का क्षेत्रफल लगभग 9.98 मिलियन वर्ग किलोमीटर है, जो इसे रूस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बनाता है।
कनाडा और अन्य देशों का तुलना: दुनिया में कुल 195 देश हैं, जिनमें केवल रूस का क्षेत्रफल कनाडा से अधिक है। इसका अर्थ है कि कनाडा का क्षेत्रफल 193 देशों (रूस को छोड़कर) से बड़ा है।
कम जनसंख्या घनत्व: कनाडा का जनसंख्या घनत्व बहुत कम है, जो इसके बड़े क्षेत्रफल के बावजूद है। 2024 के अनुमान के अनुसार, इसकी जनसंख्या लगभग 3.9 करोड़ है। इस हिसाब से, कनाडा का जनसंख्या घनत्व लगभग 4 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर है।
भारत की तुलना में जनसंख्या घनत्व: भारत का क्षेत्रफल कनाडा से छोटा है, लेकिन इसका जनसंख्या घनत्व लगभग 464 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर है, जो कनाडा की तुलना में बहुत ज्यादा है।
जनसंख्या और क्षेत्रफल का अंतर: कनाडा का क्षेत्रफल बहुत बड़ा है, लेकिन जनसंख्या कम होने के कारण इसका जनसंख्या घनत्व बहुत कम है। यह इसे अपेक्षाकृत कम घनी आबादी वाला देश बनाता है।
खालिस्तान समर्थकों को जमीन देने का सवाल: अगर कनाडा में इतनी कम जनसंख्या और बड़ा क्षेत्रफल है, तो कनाडाई सरकार अपने देश के खालिस्तान समर्थकों को कनाडा में ही एक खालिस्तान देश क्यों नहीं देती? इसके बजाय, उसे भारत में खालिस्तान के लिए जमीन की आवश्यकता क्यों है?
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और भारत का रुख
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान और कनाडा दोनों के खिलाफ मजबूत संदेश दिया है। भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र, FATF (Financial Action Task Force) और अन्य मंचों पर आवाज उठाई है। इसके कारण पाकिस्तान को कई बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर नीचा देखना पड़ा है और FATF की ग्रे लिस्ट में डाला गया है।
वहीं, कनाडा के साथ भारत की स्थिति भी स्पष्ट है। हाल ही में, भारत ने खालिस्तानी गतिविधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं और कनाडा के अधिकारियों से भी इस मुद्दे पर स्पष्टता मांगी है। भारत ने कनाडा से मांग की है कि वह अपने देश में सक्रिय खालिस्तानी तत्वों पर सख्त कार्रवाई करे और भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे।
पाकिस्तान और कनाडा की स्वार्थी नीतियाँ
यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान और कनाडा, दोनों ही अपने-अपने स्वार्थों के चलते भारत की संप्रभुता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। पाकिस्तान अपने देश की आंतरिक समस्याओं और आर्थिक संकट से ध्यान भटकाने के लिए कश्मीर के मुद्दे को जीवित रखना चाहता है। वहीं, कनाडा में राजनीतिक लाभ के लिए खालिस्तानी समर्थकों को तुष्ट करने की नीति अपनाई जा रही है।
कनाडा के लिए खालिस्तान का मुद्दा शायद भारत के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने का एक साधन हो सकता है, लेकिन भारत के लिए यह उसकी संप्रभुता और एकता का सवाल है। इसलिए भारत के लोग और सरकार इस मुद्दे पर किसी भी तरह की सख्ती से पीछे नहीं हटेंगे।
भारत की संप्रभुता की सुरक्षा और भविष्य की राह
पाकिस्तान और कनाडा की नीतियाँ भारत के खिलाफ स्पष्ट रूप से स्वार्थी हैं और इन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए। भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ और राजनयिक मिशन इन मुद्दों पर कड़ा रुख अपनाते हुए, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसके प्रति जागरूक कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को समझना चाहिए कि आतंकवाद या अलगाववाद का समर्थन किसी भी देश की स्थिरता के लिए खतरनाक है। चाहे वह पाकिस्तान का कश्मीर के प्रति रवैया हो या कनाडा का खालिस्तानी समर्थकों के प्रति रुख, यह दोनों ही भारत की संप्रभुता के लिए खतरा बने हुए हैं। यदि ये देश वास्तव में मानवाधिकारों और लोकतंत्र की बात करते हैं, तो उन्हें पहले अपने घर में ही इसका पालन करना चाहिए।
पाकिस्तान और कनाडा की नीतियाँ भारत की संप्रभुता के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती हैं। पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देना और कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों की बढ़ती गतिविधियाँ भारत के लिए चिंताजनक हैं। इन मुद्दों का समाधान तभी हो सकता है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय इन दोनों देशों पर दबाव डाले और भारत की संप्रभुता का सम्मान सुनिश्चित करे। भारत को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाले देशों के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की जरूरत है, ताकि उसकी संप्रभुता और एकता सुरक्षित रह सके।
Krishna Baraskar (Advocate) Betul
Mob: 9425007690, Email:- krishnabaraskar@gmail.com
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