‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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कहानी: स्वच्छंदता और महत्वाकांक्षा: जीवन का सही पथ

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कृष्णा बारस्कर:
गांव के बीचों-बीच एक सुंदर बगीचा था, जहां पक्षियों का कलरव और पेड़ों की छांव ने इसे अद्भुत बना दिया था। इस बगीचे में दो मित्र, जीवन और प्रतिस्पर्धा, रहते थे।

जीवन एक आजाद पंछी था, जो हर सुबह सूरज की किरणों के साथ आसमान में उड़ने निकल पड़ता। वह बगीचे के हर कोने में गाना गाता, नदी के किनारे बैठकर सूरज को डूबते देखता, और फूलों की खुशबू में अपनी सुबह की शुरुआत करता। वह जो भी पाता, उसे खुशी से स्वीकार करता और हर पल का आनंद लेता।

दूसरी ओर प्रतिस्पर्धा हमेशा कुछ नया और बड़ा पाने के लिए व्यस्त रहता। उसका मानना था कि जीवन में केवल बेहतर पाने की कोशिश ही वास्तविक खुशी है। वह रोज़ नए-नए लक्ष्य तय करता और उन्हें पाने के लिए दिन-रात मेहनत करता। लेकिन हर बार जब वह एक लक्ष्य को हासिल करता, तो उसे कुछ और बड़ा पाने की चाह सताने लगती।

समय बीता और 40 साल बाद दोनों मित्र फिर से एक नदी के किनारे मिले। जीवन अभी भी उतना ही खुश था, जितना पहले था। उसने अपनी कहानी सुनाई: “मैंने हर दिन खुशी से बिताया। जो मिला, उसे अपनाया। मैंने आसमान को छुआ, हवाओं को महसूस किया और बगीचे की हर छोटी चीज़ का आनंद लिया।”

प्रतिस्पर्धा ने सिर झुकाया और कहा, “मैंने अपनी जिंदगी कुछ बडे़ लक्ष्यों के पीछे दौड़ते हुए बिता दी। जो पाया, उससे संतुष्ट नहीं हुआ, और जो नहीं पाया, उसकी चिंता करता रहा। आज मेरे पास सब कुछ है, लेकिन वह खुशी नहीं है जो तुम्हारे पास है।”

जीवन मुस्कुराया और बोला, “दोस्त, जीवन का असली सुख हर पल में छुपा है। जो वर्तमान में है, उसे अपनाओ। बड़ा पाने की चाह अच्छी है, लेकिन अपने आज को मत भूलो।”

उस दिन प्रतिस्पर्धा ने ठान लिया कि वह भी अब अपने जीवन का आनंद लेना शुरू करेगा।

कहानी का संदेश: संतुष्टि और वर्तमान में जीने का महत्व हमें सिखाता है कि सच्ची खुशी बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि छोटे-छोटे पलों को अपनाने में है।

 
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