महिला केंद्रित कानूनों के प्रभाव में पुरुषों की अनदेखी: मानव शर्मा और अन्य पीड़ितों की त्रासदीपूर्ण कहानी तथा आंकड़े
Krishna Baraskar (Adv.)
एक दर्द भरी पुकार और आंकड़ों की चुप्पी
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के रिक्रूटमेंट मैनेजर मानव शर्मा ने अपनी आत्महत्या से पहले 6.57 मिनट का एक वीडियो रिकॉर्ड किया, जिसमें उन्होंने अपने घरेलू जीवन में अनुभव किए गए दर्द और मानसिक प्रताड़ना को उजागर किया। वीडियो में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “द लॉ नीड टू प्रोटेक्ट मैन” – यानी कानून को पुरुषों की सुरक्षा भी करनी चाहिए।
- पीड़ित का नाम: मानव शर्मा
- कारण का संक्षेप: घरेलू जीवन में पत्नी द्वारा लगातार प्रताड़ना, मानसिक अत्याचार और कानूनी सुरक्षा की कमी।
अन्य दर्दनाक उदाहरण और उनके आंकड़े
- बेंगलुरु के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की त्रासदीबेंगलुरु में कार्यरत अतुल सुभाष ने भी अपने घरेलू उत्पीड़न और मानसिक दबाव के चलते आत्महत्या कर ली।
- पीड़ित का नाम: अतुल सुभाष
- कारण का संक्षेप: पत्नी एवं ससुराल वालों द्वारा लगातार उत्पीड़न और मानसिक यातना, जिसके चलते सुरक्षा एवं न्याय की उम्मीद टूट गई।
- इंदौर के एक युवक का दर्द भरा अनुभवइंदौर में एक युवक (नाम सार्वजनिक नहीं) ने दहेज के झूठे आरोपों और घरेलू प्रताड़ना के दबाव में आत्महत्या कर ली।
- पीड़ित का नाम: इंदौर के एक युवक (नाम उपलब्ध नहीं)
- कारण का संक्षेप: दहेज से संबंधित झूठे आरोपों और मानसिक पीड़ा के कारण, जिसमें सुसाइड नोट में अपनी मां से माफी मांगते हुए अपने दर्द का इज़हार किया।
आंकड़ों की रोशनी में – पुरुषों की आत्महत्याओं का परिदृश्य
हाल ही में सामने आए आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि पुरुषों की आत्महत्याएँ तेजी से बढ़ रही हैं:
- 2021 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में 1.64 लाख से अधिक लोगों ने आत्महत्या की। इनमें से 81,000+ विवाहित पुरुष और लगभग 28,000 विवाहित महिलाएं शामिल थीं।
- 2021 में लगभग 33.2% पुरुषों ने पारिवारिक समस्याओं और 4.8% ने वैवाहिक समस्याओं के कारण आत्महत्या की।
- 2015 से 2022 के बीच कुल 8.09 लाख से अधिक पुरुषों ने आत्महत्या की, यानी हर साल लगभग 1 लाख से अधिक पुरुष सुसाइड करते हैं, जबकि हर वर्ष आत्महत्या करने वाली महिलाओं की संख्या केवल 43,314 तक सीमित रहती है।
- 2022 में कुल 1.70 लाख पुरुष आत्महत्या करने वाले मामलों में से 83,713 शादीशुदा पुरुष थे।
- उसी वर्ष, 21.7% (लगभग 37,587 मामलों) में पारिवारिक समस्याओं को आत्महत्याओं का प्रमुख कारण बताया गया, जबकि केवल 3.28% (लगभग 5,576 मामलों) में वैवाहिक झगड़े, दहेज विवाद, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स या तलाक जैसी समस्याएँ शामिल थीं।
- आत्महत्या के तरीकों में से 58.2% पुरुषों ने फांसी, 25.4% ने जहर और 5% ने पानी में डूबने तथा 2.9% ने चलती गाड़ियों या ट्रेनों के नीचे आने के माध्यम से आत्महत्या की।
महिला केंद्रित कानूनों का परिदृश्य और पुरुष समाज की अनदेखी
भारत में महिलाओं की सुरक्षा हेतु कई कानून, जैसे कि पूर्व में धारा 498A (जो अब धारा 85 और 86 के तहत आता है) लागू किए गए हैं। इन कानूनों का उद्देश्य घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना है। हालांकि, इन कानूनों का कभी-कभी दुरुपयोग भी हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस बात पर चेतावनी दी है कि बिना ठोस सबूत के घरेलू उत्पीड़न के आरोप, विशेषकर दहेज प्रताड़ना के मामलों में, केवल महिला को ‘लीगल टेरर’ का शिकार बना सकते हैं।
इस संदर्भ में, 2023 में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता महेश कुमार तिवारी ने राष्ट्रीय पुरुष आयोग की स्थापना की मांग की, ताकि घरेलू हिंसा के शिकार विवाहित पुरुषों की बढ़ती आत्महत्याओं से निपटा जा सके।
कानूनों की समीक्षा – सुप्रीम कोर्ट से अपील
इन दर्दनाक घटनाओं और आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि कानूनी ढांचे में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है। महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, परंतु पुरुषों की सुरक्षा और संवेदनशीलता को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट से यह अपील है कि वे इस मुद्दे पर गहराई से विचार करें और सुनिश्चित करें कि कानून सभी वर्गों के लिए समान रूप से न्यायसंगत हों। उदाहरण के तौर पर, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अश्विनी दुबे ने भी कहा है कि मानव शर्मा के पास तलाक जैसे वैकल्पिक कानूनी रास्ते मौजूद थे, पर उनकी मानसिक स्थिति ने उन्हें आत्महत्या के कगार पर ला खड़ा किया।
एक समावेशी न्याय व्यवस्था की ओर
मानव शर्मा, अतुल सुभाष और इंदौर के युवक की त्रासदी तथा इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि केवल एकतरफा कानून व्यवस्था समाज में दीर्घकालिक असंतुलन पैदा करती है। यदि हम एक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज की कल्पना करते हैं, तो आवश्यक है कि पुरुष और महिला – दोनों के अधिकार और सुरक्षा समान रूप से सुनिश्चित किए जाएं। कानूनों की समीक्षा और संतुलित सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाने से ही भविष्य में ऐसी त्रासदियाँ दोहराई न जाएँगी।
टिप्पणी: आँकड़े विभिन्न समाचार पत्रों एवं टीवी चैनलों से संकलित किए गए है, अतः वास्तविकता से भिन्न हो सकते है।
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