‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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वक्फ संपत्तियाँ और उनके विवाद: "लैंड जिहाद" की वास्तविकता और प्रशासनिक परिप्रेक्ष्य

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भारतीय संसद द्वारा वक्फ संशोधन अधिनियम पर विचार हेतु उसे जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेजा गया था। उक्त समिति के सदस्यों के हवाले से अधिनियम के मुद्दों पर कभी-कभी असहमति या किसी विवाद की खबरें बाहर आती रहती हैं। आइए, हम भी इस वक्फ बोर्ड एवं उसके संचालन के लिए बने वक्फ बिल पर विचार करें:

भारत में वक्फ बोर्ड के गठन और उसके बाद की घटनाओं पर विचार करते हुए कई गंभीर सवाल उठते हैं, जैसे कि क्या इसके पीछे भूमि कब्जे, "लैंड जिहाद", और अनुचित लाभ उठाने की कोई साजिश है। वक्फ बोर्ड के पास लगभग 9 लाख 40 हजार एकड़ भूमि होने का दावा किया जाता है, जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी अचल संपत्ति संस्थाओं में से एक बनाता है। हालांकि, इसके साथ ही वक्फ बोर्ड पर यह आरोप भी लगते हैं कि वह अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर विभिन्न भूखंडों पर कब्जा कर रहा है और उन्हें "वक्फ की संपत्ति" घोषित कर रहा है। यह प्रक्रिया कई लोगों द्वारा "लैंड जिहाद" के रूप में देखी जा रही है, जहां जमीन हड़पने के तरीके अपनाए जा रहे हैं।

इन आरोपों के बीच, यह सवाल भी उठता है कि क्या राजनीतिक तत्व, खासकर कांग्रेस-शासित राज्यों में, इस अतिक्रमण को बढ़ावा दे रहे हैं। कई मामलों में वक्फ बोर्ड द्वारा गाँव-गाँव को अपनी संपत्ति घोषित किया जा रहा है, और वहां रहने वालों पर धर्मांतरण या गाँव छोड़ने का दबाव डाला जा रहा है। इस बीच, यह चिंता भी जाहिर की जा रही है कि क्या सरकारी और निजी स्तर पर इन जमीनों के सौदों में संलिप्तता हो रही है, जिससे वक्फ बोर्ड के कब्जे के पीछे किसी प्रकार के घोटाले की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इन घटनाओं के बीच, वक्फ बोर्ड के खिलाफ गंभीर जांच और निगरानी की आवश्यकता को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।

वक्फ बोर्ड का इतिहास और संरचना:

वक्फ शब्द अरबी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है "दान की गई संपत्ति"। यह संपत्ति धार्मिक, शैक्षिक या समाज कल्याण के कार्यों के लिए दान की जाती है। भारतीय संविधान और वक्फ अधिनियम 1995 के तहत वक्फ बोर्ड का गठन हुआ, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय द्वारा दान की गई सम्पत्तियों की देखभाल करना और उनका सही तरीके से उपयोग सुनिश्चित करना था। वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों का प्रबंधन करते हुए धार्मिक संस्थाओं, मदरसों और मस्जिदों के लिए संसाधन प्रदान करता है।

वक्फ बोर्ड पर सरकारी, निजी और ऐतिहासिक भूमि कब्जे के आरोप:

हाल के वर्षों में वक्फ बोर्ड पर कई आरोप लग रहे हैं कि वह सार्वजनिक और निजी भूमि पर अनधिकृत कब्जा कर रहा है। खासतौर पर कांग्रेस शासित राज्यों में वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की घटनाएँ अधिक देखने को मिली हैं। आरोप यह है कि वक्फ बोर्ड "वक्फ संपत्ति" का बोर्ड लगाकर भूमि पर कब्जा कर लेता है, जिससे स्थानीय लोगों को नुकसान पहुँचता है। इस प्रक्रिया को "लैंड जिहाद" के रूप में संदर्भित किया जा रहा है, क्योंकि इसे भूमि कब्जे की एक योजनाबद्ध कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

वक्फ बोर्ड ने हाल के वर्षों में कई प्राचीन स्थलों और जमीनों पर स्वामित्व का दावा किया है, जिससे विभिन्न विवाद उत्पन्न हुए हैं। इनमें प्रमुख स्थानों में ताजमहल शामिल है, जिस पर वक्फ बोर्ड ने दावा किया, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसे खारिज करते हुए इसे राष्ट्रीय संपत्ति माना। इसी तरह, दिल्ली की जामा मस्जिद और लाल किला के भीतर की मस्जिद और आसपास के हिस्सों पर भी वक्फ बोर्ड ने अधिकार जताया, हालांकि इन पर ASI का नियंत्रण है। तमिलनाडु के तिरुचेंदुराई जैसे कई गाँवों में वक्फ बोर्ड ने 389 एकड़ भूमि का दावा किया है, जिसे 1954 के सर्वेक्षण के आधार पर वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया है, जिससे स्थानीय लोग बिना अनुमति के इसे नहीं बेच सकते।

केरल के मुनम्बम और चेराई गाँव में करीब 600 ईसाई परिवारों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति के दावों के कारण अपने घरों और जमीन पर अधिकार खोने का खतरा है। चर्च संगठनों ने इसे संसद की संयुक्त समिति में उठाया है, और उनका मानना है कि वक्फ बोर्ड का दावा अवैध है। इसके अलावा, कर्नाटक राज्य के 53 संरक्षित पुरातात्विक स्थलों पर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा किया है, जिनमें विजयपुरा जिले के गोल गुम्बज और इब्राहिम रौजा जैसे महत्वपूर्ण स्मारक भी शामिल हैं।

इन स्मारकों पर वक्फ बोर्ड ने 2005 में विजयपुरा के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर और वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष मोहसिन द्वारा उन्हें वक्फ संपत्ति के रूप में अधिसूचित किया था। इसके बाद वक्फ बोर्ड ने विजयपुरा के 43 स्मारकों पर कब्जा कर लिया और कई संरचनाओं में आधुनिक सुविधाएं जैसे सीमेंट, प्लास्टर, पंखे, एसी, और फ्लोरोसेंट लाइट्स जोड़ीं, जिससे उनकी ऐतिहासिकता और प्राचीनता प्रभावित हुई। ASI ने इन पर अपने अधिकार की रक्षा करने के लिए कई बार प्रयास किए हैं, लेकिन यह मामला अभी तक अनसुलझा है। इस प्रकार, इन दावों को लेकर स्थानीय समुदायों, धार्मिक संस्थानों और सरकार के बीच विवाद जारी हैं, और कानूनी प्रक्रियाएँ भी चल रही हैं, जिनका समाधान अदालतों और सरकारी निकायों द्वारा किया जा रहा है।

वक्फ संपत्तियों का अनुचित इस्तेमाल:

वक्फ संपत्तियाँ विशेष रूप से धार्मिक उद्देश्यों के लिए निर्धारित होती हैं, लेकिन इसके प्रबंधन में कई बार भ्रष्टाचार और अनियमितताएँ देखने को मिलती हैं। उदाहरण के लिए, वक्फ बोर्ड द्वारा कब्जाई गई जमीनों पर व्यापारिक गतिविधियाँ या अवैध निर्माण कार्य करने के आरोप लगते हैं। यह असंतोष और विरोध की भावना पैदा कर रहा है, क्योंकि कई बार यह महसूस होता है कि इन संपत्तियों का सही तरीके से उपयोग नहीं किया जा रहा। ऐसे मामलों में पारदर्शिता की कमी और प्रशासनिक लापरवाही भी देखी जाती है।

राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक लापरवाही:

कई आलोचकों का मानना है कि वक्फ बोर्ड द्वारा भूमि कब्जे की घटनाओं में राजनीतिक दलों का भी हाथ है। खासतौर पर कांग्रेस शासित राज्यों में यह आरोप ज्यादा उठते हैं कि वक्फ बोर्ड को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है। कई स्थानीय समुदायों ने आरोप लगाया है कि उनकी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर उनपर धर्मांतरण के लिए दबाव डाला जा रहा है, या फिर अपनी जमीन छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इस प्रकार की घटनाएँ समाज में असंतोष का कारण बन रही हैं और इसे राजनीतिक साजिश के रूप में देखा जा रहा है।

न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता:

वक्फ बोर्ड के द्वारा भूमि पर कब्जे और उनके दुरुपयोग के बढ़ते मामलों ने यह सवाल उठाया है कि क्या यह संस्था संविधान और न्याय व्यवस्था के तहत सही तरीके से काम कर रही है। अगर वक्फ बोर्ड बिना उचित निगरानी के अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहा है, तो यह निश्चित रूप से एक गंभीर चिंता का विषय है। इस समस्या का समाधान केवल पारदर्शिता और प्रशासनिक सुधारों से ही संभव है। एक स्वतंत्र न्यायिक आयोग की स्थापना की आवश्यकता है, जो वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की न्यायिक समीक्षा कर सके और यह सुनिश्चित कर सके कि कब्जे वैध थे या नहीं।

वक्फ संपत्ति के घोटाले और सवाल:

वक्फ बोर्ड के कार्यों पर भ्रष्टाचार और घोटाले के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। कई रिपोर्टों में यह सामने आया है कि वक्फ संपत्तियों का अवैध रूप से व्यापार हो रहा है, और इसमें कई सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं की संलिप्तता हो सकती है। खासतौर पर, सरकारी संपत्तियों को बिना उचित प्रक्रिया के वक्फ संपत्तियों के रूप में घोषित किया जा रहा है, जिससे भूमि अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या वक्फ बोर्ड को "लैंड जिहाद" के रूप में राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण मिल रहा है।

उठते सवाल:

वक्फ बोर्ड द्वारा भूमि कब्जे और इसके दुरुपयोग के बढ़ते मामलों ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या इसे बिना नियंत्रण के कार्य करने की अनुमति दी जा रही है। भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार देने का प्रावधान है, लेकिन वक्फ बोर्ड के कार्यों में समानता की भावना की अनदेखी हो रही है। अगर यह स्थिति इसी तरह बनी रही, तो समाज में असंतोष और तनाव बढ़ सकता है, जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। इसके समाधान के लिए, वक्फ बोर्ड के कार्यों में पारदर्शिता और प्रशासनिक सुधार की आवश्यकता है, ताकि इस संस्था को संविधान के अनुरूप चलाया जा सके और इसके दुरुपयोग को रोका जा सके।

सम्भावित समाधान:

  1. स्वतंत्र जांच आयोग: वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों की जांच के लिए एक स्वतंत्र आयोग की स्थापना की जाए।
  2. कानूनी समाधान: वक्फ अधिनियम का विलोपन या ऐसे संशोधन जिनसे संपत्ति मालिकों के अधिकारों की रक्षा हो सके।
  3. सामाजिक जागरूकता: भूमि अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए, ताकि लोग अपनी संपत्तियों की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठा सकें।

वर्तमान स्थिति में वक्फ बोर्ड की शक्तियों और अधिकारों पर संतुलन लाना जरूरी है, ताकि यह संस्था संविधान के अनुरूप कार्य कर सके और सभी समुदायों के लिए भूमि अधिकारों की रक्षा कर सके।

 

Krishna Baraskar (Advocate)
Betul, Email: krishnabaraskar@gmail.com
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इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM): पारदर्शिता, सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण

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हाल ही में एलन मस्क ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) के उपयोग पर अपने विचार व्यक्त किए, जिसमें उन्होंने EVMs को खत्म करने की बात कही। उनका मानना है कि इन मशीनों में हैकिंग का जोखिम, चाहे इंसान द्वारा हो या AI द्वारा, छोटा ही सही लेकिन फिर भी मौजूद है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस जोखिम को कम करने के लिए EVMs का उपयोग बंद कर देना चाहिए। 

हालांकि एलन ने ये बाते अमेरिका के विभिन्न राज्यों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मसीनो पर कही लेकिन इस चर्चा ने EVMs की सुरक्षा और पारदर्शिता पर नई बहस छेड़ दी है, जिसमें दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी दृष्टिकोण से तर्क प्रस्तुत किए हैं। एलन के बयान का सबसे ज्यादा असर हमारे देश भारत मे ही हुआ है। ऐसे मे यह लेख उक्त बहस मे अवश्य ही तथ्यों को स्पष्ट करने मे मदद करेगा। 

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का उपयोग दुनिया भर में चुनाव प्रक्रिया को सरल, सुरक्षित और तेज़ बनाने के लिए किया जाता है। विभिन्न देशों में EVM की संरचना और डिज़ाइन में भिन्नताएं हैं, जिनमें भारतीय और अमेरिकी EVM प्रमुख उदाहरण हैं। जहां भारतीय EVM पूरी तरह से ऑफलाइन और VVPAT प्रणाली के साथ काम करती हैं, वहीं कई अमेरिकी EVM आंशिक रूप से इंटरनेट से जुड़ी होती हैं। इन अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोणों के बीच, एलन मस्क का बयान कि "EVM हैक हो सकती हैं" इस विषय को और भी चर्चा के केंद्र में ले आया है। इस लेख में, हम EVM की संरचना, सुरक्षा, पर्यावरणीय प्रभाव, और बेलेट पेपर आधारित चुनाव प्रणाली की वापसी के संभावित परिणामों का विश्लेषण करेंगे।

भारतीय और अमेरिकी EVM की संरचना और सुरक्षा

भारतीय EVM:

  1. ऑफलाइन डिज़ाइन: भारतीय EVM पूरी तरह से ऑफलाइन होती है, जिसका अर्थ है कि ये इंटरनेट से कनेक्ट नहीं होती। इससे रिमोट हैकिंग की संभावनाएं न के बराबर हो जाती हैं।
  2. डिवाइस संरचना: भारतीय EVM दो मुख्य यूनिट्स—वोटिंग यूनिट (VU) और कंट्रोल यूनिट (CU)—से मिलकर बनी होती है। मतदाता VU में बटन दबाते हैं और वोट CU में दर्ज होता है।
  3. VVPAT (Voter Verified Paper Audit Trail): VVPAT प्रत्येक वोट के लिए कागजी प्रमाण प्रदान करता है। यह मतदाता को आश्वस्त करता है कि उनका वोट सही ढंग से दर्ज हुआ है और किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में ऑडिट का विकल्प उपलब्ध होता है।

अमेरिकी EVM:

  1. ऑनलाइन कनेक्टिविटी: कई अमेरिकी EVM इंटरनेट से आंशिक रूप से जुड़ी होती हैं, जिससे साइबर हमलों का जोखिम बढ़ता है। हालांकि, चुनाव से पहले और दौरान सख्त सुरक्षा उपाय किए जाते हैं।
  2. मल्टीपल सॉफ़्टवेयर लेयर्स: अमेरिकी EVM में विभिन्न सॉफ़्टवेयर लेयर्स होते हैं, जो उन्हें अधिक जटिल बनाते हैं और अतिरिक्त वेरिफिकेशन की आवश्यकता होती है।
  3. पेपर बैलेट विकल्प: अमेरिकी चुनावों में पेपर बैलेट का भी उपयोग होता है, जिससे चुनाव परिणाम की पुष्टि और ऑडिट में सहूलियत मिलती है।

एलन मस्क का बयान और उसका विश्लेषण

सबसे पहले तो एलन मस्क का यह बयान कि "EVM हैक हो सकती हैं" भारतीय नहीं बल्कि अमेरिकी EVM मशीन के बारे मे था। यह बयान तकनीकी रूप से सही हो सकता है, क्योंकि किसी भी डिजिटल डिवाइस को हैक करना संभव है। लेकिन भारतीय EVM के संदर्भ में इसे वास्तविकता में लागू करना काफी कठिन है:

  • ऑफलाइन नेचर: भारतीय EVM के ऑफलाइन डिज़ाइन के कारण इन्हें रिमोटली हैक करना असंभव है। इसके लिए फिजिकल एक्सेस की आवश्यकता होगी, जो चुनाव के दौरान सख्त निगरानी के अधीन होती है।
  • कई सुरक्षा परतें: भारतीय चुनाव आयोग द्वारा EVM की हैंडलिंग, ट्रांसपोर्ट, और स्टोरेज के दौरान कई स्तरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। इससे बाहरी व्यक्ति द्वारा हैकिंग की संभावना काफी कम हो जाती है।


EVM हैकिंग के खतरे और VVPAT का महत्व

अगर, किसी कारणवश, EVM से छेड़छाड़ की भी जाती है, तो VVPAT प्रणाली महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है:

  1. कागजी पर्ची का प्रमाण: VVPAT से हर वोटर को यह प्रमाण मिलता है कि उनका वोट सही जगह दर्ज हुआ है। अगर किसी मतदाता को गड़बड़ी लगती है, तो वह तुरंत आपत्ति दर्ज कर सकता है।
  2. ऑडिट और री-काउंटिंग: चुनाव के दौरान या उसके बाद, VVPAT पर्चियों का ऑडिट किया जा सकता है। अगर VVPAT पर्चियों और EVM में दर्ज वोटों की संख्या में अंतर पाया जाता है, तो पुनः मतगणना की जाती है।


EVM से चुनाव के पर्यावरणीय प्रभाव

EVM से चुनाव कराने के कुछ फायदे हैं, जिनका सीधा संबंध पर्यावरण से है:

  1. पेपर की बचत: EVM के उपयोग से मतपत्रों (बैलेट पेपर) की आवश्यकता समाप्त हो जाती है, जिससे पेड़ों की कटाई कम होती है और पर्यावरण की रक्षा में मदद मिलती है।
  2. कम ऊर्जा खपत: EVM को संचालित करने के लिए सीमित ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जबकि बैलेट पेपर के उत्पादन में जल और ऊर्जा की अधिक खपत होती है।


बैलेट पेपर आधारित चुनाव और पर्यावरणीय प्रभाव

अगर भारत में बैलेट पेपर पर वापसी होती है, तो इसके कई नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं:

  • पेपर की भारी खपत: भारत की विशाल जनसंख्या के कारण, करोड़ों बैलेट पेपर की छपाई के लिए भारी मात्रा में कागज की आवश्यकता होगी, जिससे लाखों पेड़ों की कटाई हो सकती है।
  • ऊर्जा और जल की खपत: बैलेट पेपर उत्पादन में अधिक ऊर्जा और जल की खपत होती है, जिससे पर्यावरण पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
  • कचरे का प्रबंधन: चुनाव के बाद बैलेट पेपर का निस्तारण एक बड़ी चुनौती हो सकती है, क्योंकि इसका प्रबंधन समय और संसाधनों की मांग करता है।


समय और श्रम शक्ति की तुलना: EVM बनाम बैलेट पेपर

  1. गिनती का समय: EVM के उपयोग से वोटों की गिनती घंटों में की जा सकती है, जबकि बैलेट पेपर की मैन्युअल गिनती में कई दिन लग सकते हैं। इससे चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और त्वरितता आती है।
  2. श्रम शक्ति की आवश्यकता: बैलेट पेपर से चुनाव कराने पर बड़ी संख्या में कर्मचारियों की आवश्यकता होती है, जबकि EVM का उपयोग श्रम शक्ति की मांग को कम करता है।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) ने भारत में चुनाव प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, तेज़ और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाया है। हालांकि, EVM से जुड़े तकनीकी और सुरक्षा संबंधी सवालों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। VVPAT जैसी तकनीकें इन सवालों का प्रभावी समाधान देती हैं, जिससे EVM प्रणाली की विश्वसनीयता बढ़ती है। वहीं, बैलेट पेपर पर वापसी पर्यावरणीय दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण होगी, क्योंकि इससे कागज की भारी खपत, पेड़ों की कटाई, और ऊर्जा की बढ़ती खपत जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। अतः, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, EVM का उपयोग भारत के लिए एक व्यवहारिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से टिकाऊ विकल्प साबित होता है।


Krishna Baraskar (Advocate) (DHN, BCA, LLB, M.Sc.-CS)

Mob: 9425007690, Email:- krishnabaraskar@gmail.com 

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पाकिस्तान और कनाडा: भारत की संप्रभुता पर ख़तरा या अपने स्वार्थों का खेल?

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भारत, एक लोकतांत्रिक और संप्रभु राष्ट्र के रूप में, लंबे समय से आतंकवाद और अलगाववादी ताकतों का सामना कर रहा है। पाकिस्तान और कनाडा, दोनों ही इस संदर्भ में भारत के लिए गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। पाकिस्तान अपनी आतंकवाद समर्थित नीतियों के माध्यम से जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है, वहीं कनाडा में खालिस्तान समर्थकों का प्रभाव बढ़ रहा है, जो पंजाब में खालिस्तानी गतिविधियों को समर्थन दे रहे हैं। यह स्थिति अंतरराष्ट्रीय संबंधों में जटिलताओं को जन्म देती है और भारत की सुरक्षा एवं संप्रभुता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद

पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते हमेशा से ही विवादों और संघर्षों से भरे रहे हैं। खासतौर पर, जम्मू और कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान की सरकार और सेना की भूमिका पर भारत कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सवाल उठाता रहा है। भारत के द्वारा प्रस्तुत किए गए सबूतों में यह साफ दिखाया गया है कि पाकिस्तान अपनी धरती से आतंकवादी संगठनों को प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान की मदद से काम करते हैं। इसके अलावा, भारत के सुरक्षा बलों ने कश्मीर घाटी में आतंकवादी गतिविधियों के लिए सीमा पार से होने वाले घुसपैठ के सबूत भी जुटाए हैं।

कनाडा और खालिस्तान का मुद्दा

दूसरी ओर, कनाडा के साथ भारत के संबंध भी पिछले कुछ वर्षों में तनावपूर्ण रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों की बढ़ती संख्या और उनकी गतिविधियाँ। कनाडा के कुछ खालिस्तान समर्थक संगठन खुलकर भारत के खिलाफ बयान देते हैं और खालिस्तान की मांग को समर्थन देते हैं। वे भारत के पंजाब में अलगाववादी मानसिकता को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं।

यहां तक कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भी इस विषय पर नरमी दिखाई है, जो भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों में बाधा बन रही है। इस संदर्भ में, भारत का मत है कि यदि कनाडा खालिस्तान समर्थकों के साथ सहानुभूति रखता है, तो उसे अपने ही देश के भीतर से खालिस्तान के लिए एक हिस्सा प्रदान कर देना चाहिए, बजाय इसके कि भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाए जाएँ।

तथ्य:

क्षेत्रफल की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश: कनाडा का क्षेत्रफल लगभग 9.98 मिलियन वर्ग किलोमीटर है, जो इसे रूस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बनाता है।

कनाडा और अन्य देशों का तुलना: दुनिया में कुल 195 देश हैं, जिनमें केवल रूस का क्षेत्रफल कनाडा से अधिक है। इसका अर्थ है कि कनाडा का क्षेत्रफल 193 देशों (रूस को छोड़कर) से बड़ा है।

कम जनसंख्या घनत्व: कनाडा का जनसंख्या घनत्व बहुत कम है, जो इसके बड़े क्षेत्रफल के बावजूद है। 2024 के अनुमान के अनुसार, इसकी जनसंख्या लगभग 3.9 करोड़ है। इस हिसाब से, कनाडा का जनसंख्या घनत्व लगभग 4 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर है।

भारत की तुलना में जनसंख्या घनत्व: भारत का क्षेत्रफल कनाडा से छोटा है, लेकिन इसका जनसंख्या घनत्व लगभग 464 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर है, जो कनाडा की तुलना में बहुत ज्यादा है।

जनसंख्या और क्षेत्रफल का अंतर: कनाडा का क्षेत्रफल बहुत बड़ा है, लेकिन जनसंख्या कम होने के कारण इसका जनसंख्या घनत्व बहुत कम है। यह इसे अपेक्षाकृत कम घनी आबादी वाला देश बनाता है।

खालिस्तान समर्थकों को जमीन देने का सवाल: अगर कनाडा में इतनी कम जनसंख्या और बड़ा क्षेत्रफल है, तो कनाडाई सरकार अपने देश के खालिस्तान समर्थकों को कनाडा में ही एक खालिस्तान देश क्यों नहीं देती? इसके बजाय, उसे भारत में खालिस्तान के लिए जमीन की आवश्यकता क्यों है?

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और भारत का रुख

भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान और कनाडा दोनों के खिलाफ मजबूत संदेश दिया है। भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र, FATF (Financial Action Task Force) और अन्य मंचों पर आवाज उठाई है। इसके कारण पाकिस्तान को कई बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर नीचा देखना पड़ा है और FATF की ग्रे लिस्ट में डाला गया है।

वहीं, कनाडा के साथ भारत की स्थिति भी स्पष्ट है। हाल ही में, भारत ने खालिस्तानी गतिविधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं और कनाडा के अधिकारियों से भी इस मुद्दे पर स्पष्टता मांगी है। भारत ने कनाडा से मांग की है कि वह अपने देश में सक्रिय खालिस्तानी तत्वों पर सख्त कार्रवाई करे और भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे।

पाकिस्तान और कनाडा की स्वार्थी नीतियाँ

यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान और कनाडा, दोनों ही अपने-अपने स्वार्थों के चलते भारत की संप्रभुता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। पाकिस्तान अपने देश की आंतरिक समस्याओं और आर्थिक संकट से ध्यान भटकाने के लिए कश्मीर के मुद्दे को जीवित रखना चाहता है। वहीं, कनाडा में राजनीतिक लाभ के लिए खालिस्तानी समर्थकों को तुष्ट करने की नीति अपनाई जा रही है।

कनाडा के लिए खालिस्तान का मुद्दा शायद भारत के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने का एक साधन हो सकता है, लेकिन भारत के लिए यह उसकी संप्रभुता और एकता का सवाल है। इसलिए भारत के लोग और सरकार इस मुद्दे पर किसी भी तरह की सख्ती से पीछे नहीं हटेंगे।

भारत की संप्रभुता की सुरक्षा और भविष्य की राह

पाकिस्तान और कनाडा की नीतियाँ भारत के खिलाफ स्पष्ट रूप से स्वार्थी हैं और इन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए। भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ और राजनयिक मिशन इन मुद्दों पर कड़ा रुख अपनाते हुए, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसके प्रति जागरूक कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय को समझना चाहिए कि आतंकवाद या अलगाववाद का समर्थन किसी भी देश की स्थिरता के लिए खतरनाक है। चाहे वह पाकिस्तान का कश्मीर के प्रति रवैया हो या कनाडा का खालिस्तानी समर्थकों के प्रति रुख, यह दोनों ही भारत की संप्रभुता के लिए खतरा बने हुए हैं। यदि ये देश वास्तव में मानवाधिकारों और लोकतंत्र की बात करते हैं, तो उन्हें पहले अपने घर में ही इसका पालन करना चाहिए।

पाकिस्तान और कनाडा की नीतियाँ भारत की संप्रभुता के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती हैं। पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देना और कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों की बढ़ती गतिविधियाँ भारत के लिए चिंताजनक हैं। इन मुद्दों का समाधान तभी हो सकता है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय इन दोनों देशों पर दबाव डाले और भारत की संप्रभुता का सम्मान सुनिश्चित करे। भारत को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाले देशों के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की जरूरत है, ताकि उसकी संप्रभुता और एकता सुरक्षित रह सके।


Krishna Baraskar (Advocate) Betul

Mob: 9425007690, Email:- krishnabaraskar@gmail.com

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सरकारों द्वारा जनता को फ्री में पैसे बांटने से देश की अर्थव्यवस्था और समाज को होने वाले नुकसान

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सरकारों द्वारा जनता के लिए फ्री योजनाएं चलाने से अनेक लाभ होते हैं, जैसे गरीबी निवारण, सामाजिक समरसता, स्वास्थ्य सुधार, शिक्षा में वृद्धि आदि। फिर भी, कुछ असरदार तथ्य भी हैं जिससे इन योजनाओं से अर्थव्यवस्था और समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है:-

1. अधिक व्यय: फ्री योजनाएं चलाने के लिए सरकार को अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है। यदि सरकार इन व्ययों को संचालित करने में असमर्थ होती है, तो यह ऋण में जा सकती है।

2. कर दर में वृद्धि: अधिक व्यय को संचालित करने के लिए सरकार को करों में वृद्धि करनी पड़ सकती है, जिससे उद्यमिता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

3. अनुचित उपयोग: कभी-कभी फ्री योजनाओं का अनुचित उपयोग होता है, जैसे लोग उन्हें अधिक और अवश्यक से ज्यादा उपयोग कर सकते हैं।

4. संविदानिक असंतुलन: कई बार, विशेष समुदायों या समूहों के लिए योजनाएं तैयार की जाती हैं, जिससे समाज में असंतोष और असंतुलन पैदा हो सकता है।

5. आलस्य और आशा पर आधारित समाज: अधिक फ्री योजनाओं की उपलब्धता से लोगों में खुद को आत्मनिर्भर बनाने की प्रेरणा कम हो सकती है।

6. भ्रष्टाचार: कई बार, फ्री योजनाओं में भ्रष्टाचार और दलाली की समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जिससे योजना का लाभ सही लोगों तक नहीं पहुंचता।

7. अस्थायी समाधान: कुछ फ्री योजनाएं सिर्फ समस्या के अस्थायी समाधान के रूप में कार्य करती हैं और वे मौलिक समस्याओं को हल नहीं करते।


इस प्रकार, जबकि सरकारी फ्री योजनाएं समाज के कुछ हिस्सों को लाभ पहुंचा सकती हैं, इससे संबंधित कुछ चुनौतियां भी होती हैं जिन्हें संबोधित करना महत्वपूर्ण है।
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मुस्लिमों के वोट बीजेपी को मिल कैसे सकते है?

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यूपी चुनाव में बीजेपी का अल्पसंख्यक समीकरण: इलेक्शन प्लान

भारतीय जनता पार्टी ने अमित शाह के नेतृत्व और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के सघन जनसंपर्क से यूपी में अभूतपूर्व जीत हासिल की है। इस जीत पर चुनावी विश्लेषकों से लेकर विपक्षी भी हैरान है, बहुत से विपक्षी इस जीत पर सवाल भी उठा रहे है। क्योंकि लोकसभा की ही भाँति विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने एंटी बीजेपी माने जाने वाले मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी भारी सफलता अर्जित की है। मायावती जी का एक बयान ध्यान देने योग्य है कि “मुस्लिमों के वोट बीजेपी को मिल कैसे सकते है?”

इस गणित को यदि समझना है तो वर्तमान राजनीति के चाणक्य अमित शाह की चुनावी स्ट्रेटेजी समझनी होगी। जातिवाद में बटे बहुसंख्यक वोट बैंक को मैनेज करने की कला की अमित शाह की काबिलीयत तो सभी जानते है। परंतु अमित शाह ने एक तरफ़ा वोट डालने वाले अल्पसंख्यक वोट बैंक में कैसे सेंध लगाई आइये देखते है।

अमित शाह ने सबसे पहले तो सभी 403 शीटों पर बहुसंख्यक उम्मीदवार खड़े कर स्पष्ट संकेत दिया की बीजेपी बहुसंख्यको की सबसे बड़ी हितैषी है, एवं बहुसंख्यको की भावनाओं और हितों का सदैव ध्यान रखेगी। अब रही अल्पसंख्यकों की बात तो:-

ट्रिपल तलाक:
फिर ट्रिपल तलाक और बहु विवाह प्रथा एक ऐसा मुद्दा है जो मुस्लिम समाज में महिला वर्ग के लिए दुखती रग है। इस रग पर उन्होंने हलके से हाथ फिराया। आज मुस्लिम वर्ग की ज्यादातर महिलाए इस प्रथा से पीड़ित है और इस प्रथा में बदलाव कि उम्मीद अमित शाह दिलाने में कामयाब हुए। अमित शाह ने इस मुद्दे से मुस्लिम परिवारों में सीधे महिला मतों को अपनी और मिला लिया मतलब की मुस्लिम समाज के आधे मतों में सेंध लगा दी ।

विश्वासनीयता:
विरोधी अकसर बीजेपी को मुस्लिम विरोधी पार्टी के रूप में प्रचारित करके मुस्लिम वोट बैंक का इस्तेमाल करते है। इसके लिए गुजरात दंगे का उदाहरण बार-बार दिया जाता है। अमित शाह के पास इसका भी तोड़ था, वे बीजेपी शासित राज्यों की मुस्लिम टीमों के माध्यम से यूपी की जनता को यह विश्वास दिला देने में कामयाब हुए की बीजेपी शासित राज्यों के मुस्लिम आज सबसे सुरक्षित है एवं सम्पन्नता की ओर बढ़ रहे है। गुजरात में मुस्लिम समाज में हो रहे चहुओर विकाश, मोदी जी के सबका साथ सबका विकाश के नारे और बीजेपी शासित प्रदेशों में मुस्लिमों की स्थिति ने बीजेपी के लिए फैलाये गए चुनावी डर की हवा निकाल दी।


जमीनी मेहनत:
अमित शाह जमीन से जुड़े और स्थानीय समस्याओं और मुद्दों को लेकर अल्पसंख्यकों को ये भरोसा दिलाने में कामयाब हुए की बीजेपी सिर्फ चुनावी वादे नहीं करेगी बल्कि जीतने के बाद सभी समस्याओं पर काम भी करेगी। इस काम में सबसे ज्यादा लोकसभा चुनाव में मिले समर्थन के बाद मोदी सरकार के द्वारा अल्पसंख्यकों के लिये किये गए विकाश कार्यों ने की।

मोदी सरकार की योजनाये:
पिछले ढाई साल में मोदी सरकार द्वारा चलाई गयी योजनाओं ने भी अल्पसंख्यको में पैठ बनायी जैसे जनधन अकाउंट, डिजिटल साक्षरता अभियान, जिनमे उज्वला योजना महिलाओं की रसोई तक पहुची और उसका उपहार महिलाओं ने पोलिंग बूथ तक पहुचकर वापस किया. वही नोट बंदी ने यह विश्वाश दिलाया कि मोदी जी बुरे लोगो के खिलाफ है और गरीबो के साथ है. अमित शाह और उनकी टीम यह विश्वास दिलाने में कामयाब हुई की नोटबंदी गरीबो और देश के हित में है.
इस तरह से अमित शाह महिला मतदाताओं में तो पकड़ बना ही पाये परंतु उन पुरुष मतदाताओं में भी स्वीकार हुए जिनके रिश्तेदार अन्य बीजेपी शासित राज्यों में खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे है। ऐसे ही स्थानीय मुद्दों और मोदी जी के कार्यों के प्रचार से स्थानीय मतदाताओं में भी सेंध लगाने में कामयाब हुए। इस कार्य में विपक्ष की कमजोर छवि ने भी बीजेपी की भरपूर मदद की।
Game plan




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